असम पुलिस के एनकाउंटर में मरने वाला किसान निकला
१३ मार्च २०२३असम पुलिस ने सफाई दी है कि यह गलत पहचान का मामला था. मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस की इस कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाया है. विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस मामले की जांच सीआईडी को सौंपी थी. अब उसकी रिपोर्ट से साफ हो गया है कि मरने वाला किसान ही था, डकैत नहीं.
ताजा मामला
असम के उदालगुड़ी में बीते 24 फरवरी को पुलिस ने एक मुठभेड़ में केनाराम बोडो नामक एक डकैत को मार गिराने का दावा किया था. उसके परिजनों ने कहा था कि मृतक का नाम केनाराम नहीं बल्कि डिम्बेश्वर मुसाहरी था. वह एक छोटा किसान था, पुलिस के दावे के मुताबिक कोई खतरनाक अपराधी या डकैत नहीं.
पहले मृतक का शव बोडो की मां को सौंपा गया जिसने शिनाख्त के बाद उसे अपना पुत्र बताया था. अंतिम संस्कार के बाद डिम्बेश्वर के परिजनों ने उसे अपने घर का सदस्य बताया. उन्होंने इस मामले में पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी. विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री ने दो मार्च को इस घटना की जांच के आदेश दिए थे. पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सीआईडी जांच के दौरान शव को क्रब से निकाल कर डीएनए जांच की गई. उससे पता चला कि वह शव केनाराम का नहीं बल्कि डिम्बेश्वर का था. पुलिस ने तब दावा किया था कि इस मुठभेड़ में दो पुलिस वाले भी घायल हो गए थे.
अब उस शव को मुसाहरी के परिजनों को सौंप दिया गया है. जांच रिपोर्ट जल्दी ही सरकार को सौंप दी जाएगी. मुसाहरी के परिजनों का कहना है कि पुलिस ने उनके बेटे को मार डाला. अब उनको इंसाफ चाहिए.
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पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस को जिस केनाराम की तलाश थी वह बोडो उग्रवादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) का पूर्व सदस्य था और असम व मेघालय में डकैती के कई मामलों में पुलिस उसे ढूंढ रही थी.
डिम्बेश्वर के बड़े बाई बानेश्वर ने पत्रकारों को बताया, "22 फरवरी को गांव में एक शादी थी. उससे दो दिन पहले केनाराम वहां आया था. लेकिन तब हम उसका नाम नहीं जानते थे. वही हमारे भाई को साथ लेकर 23 को गांव से कहीं बाहर चला गया.” बानेश्वर के मुताबिक, डिम्बेश्वर गांव में खेती करता था और अपनी पत्नी व तीन बच्चों के साथ रहता था.
पुलिस मुठभेड़ों पर सवाल
मई, 2021 में हिमंता बिस्वा सरमा के नेतृत्व में बीजेपी सरकार के सत्ता संभालने के बाद राज्य में पुलिस की हिरासत और मुठभेड़ में मरने वालों की बढ़ती तादाद पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बीती 27 जनवरी को इस मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद उसे खारिज कर दिया था. याचिका में हिमंता सरकार के सत्ता में आने के बाद हिरासत में बढ़ते मौत के मामलों की सीबीआई जांच की मांग की गई थी. इसके बाद अकेले इस साल फरवरी में पुलिस हिरासत में कम से कम चार मौतें हो चुकी हैं.
दिल्ली के एडवोकेट और मानवाधिकार कार्यकर्ता आरिफ जवादर ने 8 दिसंबर, 2021 को गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर सीबीआई या कोर्ट के अधीन एसआईटी गठित कर मई 2021 से हुई पुलिस मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग की थी. सितंबर 2022 में दायर एक अन्य हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा था कि मई 2021 से असम में 171 मुठभेड़ हुई और जिनमें 56 मौतें हुई हैं.
फर्जी एनकाउंटर पर फिर घिरी योगी सरकार
मानवाधिकार कार्यकर्ता वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हिमंत बिस्वा सरमा के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले तेजी से बढ़े हैं.”
उधर, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने बीजेपी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पुलिस पर खुलेआम हत्या करने का आरोप लगाया है. विधायक अखिल गोगोई आरोप लगाते हैं, "सरकार फर्जी मुठभेड़ों के जरिए असम में गैर-न्यायिक हत्याओं को अंजाम दे रही है." विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए लोगों को असली मुद्दों से भटकाने का प्रयास कर रही है.