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कानून और न्याय

असम में एनआरसी से बाहर रह गए लोगों का क्या होगा

प्रभाकर मणि तिवारी
६ सितम्बर २०१९

भारत सरकार का कहना है कि एनआरसी सूची से बाहर रह गए लोगों को फिलहाल न तो डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा और न ही विदेशी माना जाएगा. जानिए उनके लिए कैसी है आगे की राह.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

असम के नगांव जिले के सुरेंद्र सरकार की आंखों में भविष्य को लेकर चिंता साफ देखी जा सकती है. सुरेंद्र राज्य के उन 19 लाख से ज्यादा लोगों में शामिल हैं जिनके नाम बीते सप्ताह प्रकाशित एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं है. वह कहते हैं, "मेरा और मेरे तीन बेटों के नाम नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) में शामिल नहीं हो सके हैं. हालांकि हमने तमाम जरूरी दस्तावेज जमा किए थे. अब हमारा भविष्य अधर में लटक गया है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार हमें जेल में भेजेगी या फिर यहां से खदेड़ देगी.”

माना जा रहा है कि यह सूची देश की सबसे बड़ा मानवीय त्रासदी पैदा कर सकती है. हालांकि सरकार ने भरोसा दिया है कि ऐसे लोगों को फिलहाल न तो डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा और न ही विदेशी माना जाएगा. लेकिन एनआरसी में शामिल होने की लड़ाई हार जाने के बाद ऐसे लोगों के समक्ष अब विदेशी न्यायधिकरणों में जाकर खुद को भारतीय साबित करने की बेहद जटिल चुनौती है.

इतनी बड़ी तादाद में लोगों के एनआरसी से बाहर रहने की वजह से ही सत्तारुढ़ बीजेपी से लेकर कांग्रेस और दूसरे तमाम गैर-सरकारी व मानवाधिकार संगठन एनआरसी में विसंगितयों के आरोप लगा रहे हैं. इसके खिलाफ कुछ संगठन सुप्रीम कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच यह 19 लाख लोग बेहद तनाव व असमंजस में हैं. उनको यह नहीं सूझ रहा है कि अब आगे अपनी नागरिकता कैसे साबित करें.

कैसी है आगे की राह

एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर हुए 19 लाख लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनकी नागरिकता का फैसला अब कब कैसे होगा? केंद्रीय गृह मंत्रालय और असम सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि एनआरसी की सूची से बाहर हुए लोगों को हिरासत में नहीं लिया जाएगा. ऐसे लोग पहले विदेशी न्यायधिकरण में अपील कर सकते हैं और वहां अनुकूल फैसला नहीं होने की स्थिति में वे लोग हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी जा सकते हैं.

असम के नगांव में एनआरसी में नाम शामिल करवाने के लिए देखी गईं थीं लंबी लंबी कतारें.तस्वीर: Reuters

असम सरकार ने एनआरसी से बाहर रहे लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देने का एलान किया है. इन मामलों में आम लोगों की सहायता करने के लिए 200 वकीलों का एक समूह बनाया गया है. गौहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील बिजन महाजन कहते हैं, नागरिकता कानून 2003 के नियम संख्या आठ के तहत एनआरसी से बाहर रहे लोगों को फिलहाल विदेशी नहीं माना जाएगा. लेकिन इस भरोसे के बावजूद सरकार से लोगों को भरोसा उठता जा रहा है. धुबड़ी के मोहम्मद शकील कहते हैं, "हमारे पास जितने दस्तावेज थे वह तो पहले ही जमा कर दिए थे. लेकिन उससे नागरिकता साबित नहीं हुई. अब न्यायधिकरणों के सामने पेश करने के लिए नए दस्तावेज कहां से ले आएं?”

ऑल असम लॉयर्स एसोसिएशन के संयुक्त सचिव ताइलन दास बताते हैं, "जिनके नाम एनआरसी से बाहर हैं सरकार ऐसे लोगों को नोटिस भेजेगी. नोटिस मिलने के 120 दिनों के भीतर वह लोग विदेशी न्यायाधिकरण के सामने अपील कर सकते हैं. जिन लोगों के पास वैध कागजात होंगे उनको मुफ्त कानूनी सहायता दी जाएगी.” 

नए डिटेंशन सेंटरों का निर्माण

केंद्र व राज्य सरकार बार बार कहते रहे हैं कि एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों को तत्काल राज्यविहीन या विदेशी घोषित कर हिरासत में नहीं लिया जाएगा. असम सरकार अगले तीन महीने में दो सौ नए विदेशी न्यायधिकरणों की स्थापना करेगी. असम सरकार के गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि इस साल के आखिर तक राज्य में विदेशी न्यायधिकरणों की संख्या बढ़ा कर 521 तक की जाएगी.

इस बीच, सरकार न्यायाधिकरणों में भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाने वाले लोगों को रखने के लिए 11 नए डिटेंशन सेंटर बना रही है. राज्‍य की छह जेलों को पहले ही डिटेंशन सेंटरों में बदला जा चुका है. वहां नौ सौ से ज्यादा लोग रह रहे हैं. ग्वालपाड़ा के मतिया इलाके में लगभग 46 करोड़ की लागत से असम का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर बनाया जा रहा है. इसमें तीन हजार लोगों को रखने की व्यवस्था होगी.

क्या करेगी सरकार

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि एनआरसी की कवायद दरअसल बर्रे के छत्ते में हाथ डालने की तरह साबित हुई है. बीजेपी को इससे बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम सामने आने की उम्मीद थी. लेकिन इस सूची से बाहर रहने वालों में ज्यादातर हिंदू हैं. एक मानवाधिकार कार्यकर्ता जितेन डेका सवाल करते हैं, "अगर यह लाखों लोग विदेशी न्यायधिकरणों में भी अपनी साबित करने में नाकाम रहे तो क्या सरकार उनको भी बांग्लादेश भेजेगी?” यही सवाल धुबड़ी जिले में रहने वाले मोहम्मद शकील का भी है. लेकिन लाख टके के इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है.

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चलने वाली एनआरसी की कवायद के बाद अब इसमें बड़े पैमाने पर सामने आने वाली विसंगितयों को दूर करना भी अदालत की ही जिम्मेदारी है. ऐसे में इन 19 लाख लोगों की उम्मीदें अब सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं. तब तक इन लाखों लोगों की आंखों से नींद गायब ही रहेगी.

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