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असम में 30 लाख लोगों से छिनेगा वोटिंग का हक?

प्रभाकर मणि तिवारी
१० दिसम्बर २०१८

विश्व मानवाधिकार दिवस के मौके पर भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में रहने वाले लगभग 30 लाख लोगों के मानवाधिकार पर अनिश्चितता के काले बादल गहराने लगे हैं.

Indien National Register of Citizens | Assam, Einsicht in Entwurf
तस्वीर: Reuters

राज्य में एनआरसी के अंतिम मसौदे से बाहर रहे 40 लाख लोगों में से अंतिम सूची में शामिल होने के लिए अब तक महज 10 लाख यानी एक-चौथाई लोगों ने ही आवेदन जमा किया है.

दावे और आपत्तियां जमा करने की प्रक्रिया 25 सितंबर को शुरू हुई थी. दावे जमा करने की अंतिम तिथि 15 दिसंबर करीब आने के साथ ही राज्य में एक बार फिर अनिश्चितताएं और आशंकाएं बढ़ रही हैं. यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या इसकी समयसीमा बढ़ाई जाएगी?

अभी यह भी साफ नहीं है कि जिन लोगों ने आवेदन जमा नहीं किया है उनका भविष्य क्या होगा. लेकिन एनआरसी से जुड़े लोगों का कहना है कि पहले दौर में उन लोगों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है.

एनसीआरसी में शामिल होने के लिए चाहिए ये दस्तावेज

दरअसल, एनआरसी के मसौदे से बाहर रहे लोगों को अपने दावों के समर्थन में सही दस्तावेज जुटाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. नए नियमों के तहत ऐसा कोई दस्तावेज स्वीकार नहीं किया जा सकता जिसे 15 अगस्त, 2015 के बाद जारी किया गया हो. इससे लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

बरपेटा के गोबरधाना गांव के रहने वाले इमान अली का नाम तो अंतिम मसौदे में शामिल है लेकिन उनके बेटे अलामीन अली का नाम उसमें नहीं है. उसके जन्म प्रमाणपत्र को फर्जी कहते हुए खारिज कर दिया गया था.

बेटे की नागरिकता साबित करने के लिए उन्होंने अलामीन के स्कूल से एक प्रमाणपत्र बनवाया है. लेकिन एनआरसी सेवा केंद्र में यह कहते हुए उसका आवेदन स्वीकार नहीं किया गया कि वह प्रमाणपत्र नया यानी 15 अगस्त, 2015 के बाद बना है.

इमान अली सवाल करते हैं, "अब मैं क्या कर सकता हूं? मेरे पास बेटे की नागरिकता साबित करने के लिए दूसरा कोई दस्तावेज नहीं है.” राज्य के लाखों लोग ऐसी ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं.

इसी जिले में एक निजी स्कूल के मालिक नजरुल अली अहमद लोगों को दावे जमा करने में सहायता करते रहे हैं. वह कहते हैं, "अगस्त, 2015 के बाद जारी दस्तावेजों पर पाबंदी मसौदे से बाहर रहे लोगों के दावों की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है.”

एनसीआरसी पर आखिर इतना हंगामा क्यों?

असम में एनआरसी के प्रदेश संयोजक ने कहा है कि एनआरसी में नाम शामिल करने का दावा पेश करने के लिए लोग दो सूचियों से बाहर के दस्तावेज दोबारा पेश नहीं कर सकते. संयोजक दफ्तर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पहले दिए गए दस्तावेजों को फिर से जमा करने की जरूरत नहीं है.

कोई भी व्यक्ति या तो पहले जमा किए गए दस्तावेजों के आधार पर पुनर्विचार के लिए दावा पेश कर सकता है या फिर वह ए और बी सूची में शामिल दस्तावेजों के सहारे ऐसा कर सकता है. सूत्रों का कहना है कि 40 लाख में से सिर्फ 10 लाख लोगों का दावा दाखिल करना इस बात का सबूत है कि एनआरसी का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया बिल्कुल सही थी.

ध्यान रहे कि बीती 30 जुलाई को एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित होने के बाद लगभग 40 लाख लोगों के नाम इससे बाहर हो गए थे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र पर एनआरसी के बहाने बंगालियों को खदेड़ने की साजिश रचने का आरोप लगाती रही हैं. उनका कहना है कि बंगाल में एनआरसी तैयार करने की अनुमित नहीं दी जाएगी.

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन लोगों के नाम एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं होंगे, उनका भविष्य क्या होगा. एनआरसी से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि पहले कदम के तौर पर उनसे मताधिकार वापस लिया जा सकता है.

एक अधिकारी कहते हैं, "जिन लोगों के नाम मसौदे में नहीं थे, उनको अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जा चुका है. अगर कुछ लोग अपना नाम एनआरसी में शामिल नहीं कराना चाहते तो इसका मतलब है कि उनके पास इसके लिए जरूरी दस्तावेज नहीं हैं. दावों की प्रक्रिया यह प्रक्रिया 25 सितंबर से चल रही है.”

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दूसरी ओर, राज्य सरकार एनआरसी में शामिल होने के दावों की अंतिम तारीख पर असमंजस में है. लेकिन एनआरसी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अब समयसीमा बढ़ने की उम्मीद कम ही है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि राज्य में बिना दस्तावेज वाले लोगों के भविष्य को लेकर योजना तैयार करने के लिए केंद्र सरकार उच्च स्तरीय समिति बनाएगी.

दिल्ली में बीते सप्ताह केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, गृह सचिव राजीव गौबा और आईबी के निदेशक राजीव जैन की मौजूदगी में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया. इस समिति में केंद्र और असम सरकार के प्रतिनिधि शामिल होंगे.

बैठक में शामिल राज्य सरकार के एक अधिकारी बताते हैं, "प्रस्तावित उच्चस्तरीय समिति यह फैसला करेगी कि बिना दस्तावेज वाले लोगों के साथ क्या किया जाए. समिति सभी उपलब्ध विकल्पों पर विचार करेगी. यह समिति दावे जमा करने की मियाद पूरी होने के बाद काम शुरू करेगी.”

जो भी हो, फिलहाल तो राज्य के लगभग 30 लाख लोगों का भविष्य अनिश्चयता के भंवर में फंस गया है. इन लोगों को खुद भी नहीं मालूम कि उनका भविष्य क्या होगा? धुबड़ी जिले के हाशिम अली सवाल करते हैं, "क्या हमें असम छोड़ कर जाना होगा? हमारे पुरखे तो दशकों से यहां रह रहे हैं.”

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