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असली अर्थव्यवस्था हो रही है प्रभावित

८ अक्टूबर २००८

विश्व के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दर में आधे प्रतिशत की कटौती को सही क़दम बताते हुए डॉयचे वेले के समीक्षक राल्फ़ वेंकेल का कहना है कि वित्तीय बाज़ार का संकट इस बीच असली अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है.

तस्वीर: AP

अमेरिकी बैंकिंग संकट सारी दुनिया में फैल गया है. उसने सिर्फ़ वित्तीय बाज़ारों में ही घबड़ाहट पैदा नहीं की है. इस बीच संकेत हैं कि वित्तीय बाज़ारों का संकट असली अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, प्रगति में बाधा डाल रहा है, वृद्धि और रोज़गार को नुकसान पहुंचा रहा है.

बैंकों में नहीं रहा आपासी भरोसातस्वीर: DW-Bildmontage

निवेशकों, उद्यमों और उपभोक्ताओं का भरोसा हिल गया है. अमेरिका में कर्ज़ से ख़रीदे गए लाखों घर नीलाम किए जा रहे हैं. इसका असर ख़रीदारी पर हो रहा है. अमेरिका में खुदरा व्यापार करने वाली बड़ी कंपनियों के व्यवसाय में पांच प्रतिशत की कमी आई है. आधे से अधिक अमेरिकी सोचते हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत और ख़राब होगी.

स्थिति और बिगड़ेगी. क्योंकि वर्तमान वित्तीय संकट की मुख्य समस्या बैंकों के बीत आपसी भरोसे की समाप्ति है. किसी को पता नहीं कि किसके खातों में सड़े अंडे हैं. इसलिए वे एक दूसरे को धन देने में घबड़ा रहे हैं जिसका असर न सिर्फ़ बैंकों के बीच कर्ज़ लेने पर पड़ रहा है बल्कि असली अर्थव्यवस्था को कर्ज़ देने पर भी. धन अर्थव्यवस्था की चक्की का तेल होता है. तेल ख़त्म हुआ तो पिस्टन थमा और उसके साथ अर्थव्यवस्था की मोटर रुकी.

इसके पहले संकेत दिख रहे हैं. अमेरिका में कारों की बिक्री में भारी कमी आई है. और इसकी वजह यह है कि हर कंपनी का ग्राहकों को कर्ज़ देने के लिए अपना बैंक है. ये बैंक भी वित्तीय बाज़ारों से धन लेते हैं, जो वर्तमान स्थिति में मुश्किल होता जा रहा है. बैंक आपसी व्यापार में भी चौकन्ने हो गए हैं. वे एक दूसरे को जोखिम अधिभार के साथ ही कर्ज़ दे रहे हैं जिसकी वजह से उद्यमियों के लिए निवेश महंगा हो गया है. संयंत्रों का आधुनिकीकरण और विस्तार मुश्किल हो गया है.

उत्पादन में कटौती का फ़ैसला

दरअसल कर्ज़ का संकट असली अर्थव्यवस्था तक पहुंच चुका है. जर्मनी में भी. ओपेल, फ़ोर्ड, बीएमडब्ल्यू अपना उत्पादन कम कर रहे हैं. मर्सिडिज़ अपने कामगारों को समय से पहले क्रिसमस की छुट्टी पर भेज रहा है. सब कुछ कड़ी सर्दियों की ओर इशारा करता है.

एक दिलासा है कि केंद्रीय बैंकों ने स्थिति की गंभीरता को समझा है और 1929 के विश्वव्यापी आर्थिक संकट के विपरीत अरबों बाज़ार में डाल रहे हैं. इसके साथ वे बाज़ार को धन की आपूर्ति की बैंकों की भूमिका निभा रहे हैं. छह केंद्रीय बैंकों ने एक साथ लिए गए फ़ैसले में ब्याज़ दर आधा प्रतिशत घटा दिया है, बाज़ार को शांत करने और धन को सस्ता करने के लिए. मशीन से तेल की फ़िल्म नहीं समाप्त होनी चाहिए, नहीं तो मोटर रुक जाएगी. दोषी को खोजना और कड़े क़ानून बाद में भी बन सकते हैं, इस समय तो फर्स्ट एड की ज़रूरत है और उसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

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