भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दादरी में हुई हत्या को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताने के साथ ही विपक्ष पर विवाद को हवा देने का आरोप भी जड़ दिया. आलोचक सांप्रदायिक माहौल पर प्रधानमंत्री की टिप्पणियों को कमजोर बता रहे हैं.
विज्ञापन
उत्तर प्रदेश के दिल्ली से लगे दादरी में मुहम्मद अखलाक नाम के एक शख्स की लोगों ने गोमांस रखने के आरोप में पीट पीट कर हत्या कर दी थी. अफवाह थी कि उसके घर पर बीफ यानि गोमांस रखा है और उसके परिवार ने उसे खाया है. मई 2014 से केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही देश के कई बीजेपी प्रशासित राज्यों में गोहत्या और गोमांस की बिक्री से सबंधित नए प्रतिबंध लगे हैं.
दादरी की घटना ने देश-विदेश का ध्यान भारत में ताकतवर हो रही हिन्दू राष्ट्रवादी ताकतों की ओर खींचा है. ऐसे में देश के प्रधानमंत्री के इतने लंबे समय बाद चुप्पी तोड़ने पर विपक्षी नेता उनकी आलोचना कर रहे हैं.
बांग्ला दैनिक आनंद बाजार पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में मोदी ने पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली को मुंबई में कॉन्सर्ट ना करने देने के मुद्दे पर भी बात की. इसे "अनावश्यक" बताते हुए मोदी ने कहा, "बीजेपी कभी ऐसी हरकतों का समर्थन नहीं करती. विपक्ष बीजेपी पर संप्रदायवाद का आरोप जड़ने की कोशिश कर रहा है और इस कोशिश में वे खुद ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे हैं."
प्रधानमंत्री मोदी कई बार पहले भी देश में धार्मिक एकता की अपील करते रहे हैं लेकिन आलोचकों का मानना है कि दादरी जैसी घटनाओं की कड़े शब्दों में निन्दा ना करके मोदी ने कट्टjपंथी हिन्दुओं को बढ़ावा दिया है. खास तौर पर सत्ताधारी बीजेपी के उन नेताओं को जो दादरी कांड जैसी घटनाओं पर कई मुसलमान विरोधी बयान देते रहे हैं.
इस बीच भारत में मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के खतरे में पड़ने की बात पर देश के दो दर्जन से अधिक सम्मानित लेखकों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए हैं या अकादमी की कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया है. इनमें लेखिका शशि देशपांडे भी हैं जो इतने दिनों के बाद आए प्रधानमंत्री मोदी के दादरी कांड पर बयान को बेहद कमजोर मान रही हैं.
गौहत्या पर हत्या कितनी जायज?
दादरी में गोमांस रखने की अफवाह के बाद भीड़ ने एक व्यक्ति का कत्ल कर डाला. इस घटना पर हमने लोगों से पूछी उनकी राय. जवाब परेशान करने वाले हैं.
तस्वीर: AP
50 साल के मोहम्मद अखलाक की जान एक अफवाह के कारण गयी, जो वॉट्सऐप के जरिए फैली. वॉट्सऐप संदेशों में लिखा गया कि उसने गाय को काटा है. फेसबुक पर कई लोगों ने इस हत्या को जायज बताया है. हालांकि कुछ ऐसे समझदार भी मिले जो मिलजुलकर रहने का आग्रह कर रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/Stringer
योगेंद्र पांडेय ने लिखा है, "दादरी मे जो कुछ हुआ, वह किसी भी सभ्य समाज मे स्वीकार्य नहीं है, पर क्या यह सच्चाई नहीं है कि इसी तरह ईशनिंदा की अफवाह उड़ाकर हर साल सैकड़ों निर्दोष पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब मुल्कों में मौत के घाट उतार दिए जाते हैं? क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती ही है."
तस्वीर: Shaikh Azizur Rahman
फरीद खान ने लिखा है, "इन कट्टरवादी ताकतों का मुकाबला मिलजुल कर और आपसी ऐतेमाद कायम करके ही किया जा सकता है. आजकल जिस तरह उकसावे की राजनीति करके मुसलमानों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वह ना तो किसी प्रकार उचित है, न ही इस देश की एकता व अखंडता के लिए शुभ संकेत है. कल को अगर यही मजलूम मुसलमान मजबूर होकर हथियार उठा ले, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?"
तस्वीर: S. Rahman/Getty Images
कुलदीप कुमार मिश्र ने बीफ के निर्यात की ओर ध्यान दिलाते हुए सवाल किया है, "गोमांस के निर्यात में भारत ने विश्व रिकार्ड बना डाला! ब्राजील को पीछे छोड़ कर पहले स्थान पर कब्जा! (2015 का आंकड़ा दिया जा रहा है!) और देश में गाय का मांस खाने पर प्रतिबंध लगता है."
तस्वीर: Shaikh Azizur Rahman.
अजय राज सिंह ठाकुर की टिप्पणी, "भीड़ ने जो किया, वह निश्चित ही बहुत गलत और असभ्य था. कुछ भी करने से पहले उस बात कि सच्चाई को जानना चाहिए था. गौ माता और नारियां, दोनों का समान रूप से सम्मान होना चाहिए. ऐसा व्यवहार बहुत ही खेदजनक और शर्मनाक है!!"
तस्वीर: Getty Images
कमलकिशोर गोस्वामी लिखते हैं, "हजारों बार देखा है मैंने भारतीय लोकतंत्र को तार तार होते. सत्तर बरस की आजादी लाखों बरस की सभ्यता और ऐसा जंगलीपन. सौ लोगों की भीड़ जो अब कई गांवों में तब्दील हो गई है. सोशल मिडिया पर लोग इतना गंद लिख रहे हैं एक दूसरे के खिलाफ पर कुछ नहीं हो रहा. क्या कहें ऐसे लोकतंत्र पर और क्या कहें उन महानुभवों को जिन्होंने हमें ऐसे लोकतंत्र का तोहफा दिया."
तस्वीर: DW
हरिओम कुमार का कहना है, "जिन देशों की आबादी ज्यादा होती है उन देशो में लोकतंत्र काम नहीं करता. खासकर जिन देशों की एक बहुत बड़ी आबादी अनपढ़ हो." इसी तरह रली रली ने लिखा है, "लगाया था जो उसने पेड़ कभी, अब वह फल देने लगा; मुबारक हो हिन्दुस्तान में, अफवाहों पे कत्ल होने लगा." गोपाल पंचोली ने एक अहम बात कही, "गाय और सूअर, फिर आ गई अंग्रेजों वाली राजनीति!"