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असुरक्षा में जी रहे दंगा पीड़ित

८ अक्टूबर २०१३

मुजफ्फरनगर के दंगे से विस्थापित लोग अभी भी शिविरों में रह रही है. अभाव भरी जिंदगी जी रहे लोग अपनी बेटियों की शादियां कर रहे हैं. अब तक करीब 90 लड़कियों की सामूहिक शादियां हो चुकी हैं.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo

भयानक साम्प्रदायिक दंगे से बच निकली दर्जनों गर्भवती महिलाओं को भी इन शिविरों में शरण लेना पड़ी है. बिना किसी चिकित्सकीय सुविधा के इन अभागी महिलाओं के बच्चे अपने आशियानों के बजाए इन शिविरों में आखें खोल रहे हैं. अब तक करीब तीन दर्जन बच्चे पैदा हुए जिनमें से कुछ की मौत भी हो गई. मेटरनिटी होम की किसी भी सुविधा से महरूम अधिकांश नवजात बच्चों की माएं बुरी तरह से बीमार हैं. प्रशासन ने चिकित्सा का कुछ इंतिजाम किया है लेकिन वह बच्चों की पैदाइश के लिए बिल्कुल नाकाफी है. बुजुर्ग औरतें दाई का काम कर रही हैं.

भारत की राजधानी दिल्ली से महज सवा सौ किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर के हाल के दंगों में 50 से अधिक लोग मारे गए और 55 हजार लोग विस्थापित हुए. इनमें आधे तो वापस अपने गांव चले गए लेकिन बाकी लोग अभी भी इन शिविरों में हैं. सैकड़ों पॉलीथीन के टेंट में जिंदगी गुजार रहे हैं. लांक, बहावड़ी, खरड़, फुगाना, सिंभालका, कुटबा, मुंडेभर और काकड़ा गांवों के लोग वापस अपने अपने गावों में जाने को तैयार नहीं है. वे अपने साथ हुए विश्वासघात को भुला नहीं पा रहे हैं.

रिजवान, असगर, यासीन और शाहिद दर्द भरी आवाज में पूछते हैं कि कसूर क्या था हमारा. इतना ही नहीं, इन शिविरों में रह रहे बच्चों के अभिभावकों ने अपने अपने गांवों के स्कूलों से टीसी भी निकलवा ली है. वे अब उन स्कूलों में उन्हें नहीं पढ़ाएंगें. शिविरों के आस पास के स्कूलों में पढ़ाएंगे. मुजफ्फरनगर से करीब 30 किलोमीटर दूर बुढ़ाना रोड पर और करीब 20 किलोमीटर दूर भोपा रोड पर बने शिविरों को तो अब जिला प्रशासन ने स्थायी आबादी बसाने का इरादा कर लिया है. इन शिविरों में कुछ तकनीकी दिक्कतें भी आ रही हैं. मसलन कैराना रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी नरेंद्र कुमार ने मलकपुर के शरणार्थी शिवर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी कि वन विभाग की जमीन पर "अज्ञात हजारों मुसलमानों" ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया है. हालांकि उन्होंने किसी कार्रवाई से इनकार किया.

तस्वीर: Reuters

कुछ लोग इस डर और दहशत का फायदा भी उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं. माकपा नेता भारत भूषण के मुताबिक शाहपुर के पास कैंपों में पिछले दिनों कुछ प्रभावशाली युवकों ने शोर मचाया कि दंगाई आए दंगाई आए और जब महिलाएं और लड़कियां खेतों में भागीं तो वहां उनके साथ बलात्कार किया. दंगे में सामूहिक बलात्कार की कुछ एफआईआर अब जाकर दर्ज हो पाई हैं. दंगे में हुए बलात्कार की शिकार महिलाओं का दर्द है कि सभी बलात्कारी जान पहचान के थे. कुछ तो उम्र में छोटे थे. मुजफ्फरनगर की एसपी क्राइम कल्पना सक्सेना इसकी पुष्टि भी करती हैं. इस पर कोई गिरफ्तारी नहीं होने पर कहती हैं कि सारे केस दंगों की जांच के लिए बनी एसआईसी को दे दिए गए हैं.

शिविरों में महिलाओं की बदहाली देख जमीयते उलेमाए हिंद ने लड़कियों की शादियों का बीड़ा उठाया और पहली बार सितम्बर में 27 और फिर अक्टूबर के पहले हफ्ते में 70 जोड़ों का सामूहिक निकाह जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की देख रेख में सम्पन्न हुआ. शादियां करने के पीछे इनका तर्क था कि और कोई रास्ता बचा नहीं है. लड़कियों की सुरक्षा बहुत बड़ा मसला है. मौलाना इसरार का तर्क है कि दंगों में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकार ने नौकरी भी दी है और मुआवजा भी. इससे ये लोग नई शादी शुदा जिंदगी शुरु कर सकते हैं.

राष्ट्रीय एकता परिषद

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ मुजफ्फरनगर दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद दिल्ली में राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक बुलाई जिसमें गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए. हमेशा की तरह इसमें हुए भाषण सुर्खियां बने पर दंगे रोकने की कारगर रणनीति नहीं बनी. यूपी के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम खां कहते हैं कि एकता परिषद को जब तक संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जाता जिसके तहत उसकी सिफारिशें मानना बाध्यता हो, तब तक ये दिखावी संस्था से ज्यादा कुछ नहीं. उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भी एकता परिषद की बैठक हुई थी, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

रिपोर्ट: एस वहीद, लखनऊ

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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