जर्मनी के अपराधिक आंकड़ें कहते हैं कि जर्मनी दुनिया के सुरक्षित मुल्कों में से एक है. लेकिन हैरानी की बात है कि यहां के लोगों को अब देश कम सुरक्षित महसूस हो रहा है.
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen
विज्ञापन
ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा कि जर्मनी किसी दिन अपराध से जुड़े आंकड़ें पेश करेगा. लेकिन रिफ्यूजी संकट के बाद से जर्मनी के भीतर काफी कुछ बदल गया है. विशेषज्ञ मानते हैं जर्मनी के लोगों के भीतर असुरक्षा घर कर रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक इसका एक बड़ा कारण मीडिया है जो खराब खबर को ही अच्छी खबर मान कर पेश करता है. आज जर्मनी के लोग भले ही देश को असुरक्षित मान रहे हो, लेकिन आंकड़ें इसे सुरक्षित कहते हैं. जर्मनी में साल 2017 के दौरान करीब 57 लाख आपराधिक मामलें दर्ज किए गए. जो पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी कम हैं.
जर्मनी के मशहूर अपराधविज्ञानी क्रिश्टियान प्फाइफर इस असुरक्षा के लिए मीडिया समेत कई कारणों को दोष देते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में क्रिश्टियान कहते हैं, "अगर आप टीवी पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों पर ध्यान दें तो आपको सारी बात समझ आ जाएगी. हर रात टीवी पर अपराध से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती हैं. जिनमें हत्याएं, खून-खराबा साफ नजर आता है. ऐसे में जाहिर है लोग अधिक चिंता करने लगते हैं. फिर चाहे अपराध दर घटी ही क्यों न हो, लोगों की मनोस्थिति तो प्रभावित होती ही है." उन्होंने कहा कि जर्मनी में असुरक्षा की भावना इसलिए पैदा हो रही है क्योंकि यहां काफी विदेशी आ गए हैं. इसलिए लोगों के भीतर से "मेरे गृहक्षेत्र" वाली भावना कम होती जा रही है.
क्रिश्टियान कहते हैं, "जर्मनी एक प्रक्रिया से गुजर रहा है. यह ठीक वैसा ही महसूस कर रहा है जैसे कि कोई अन्य देश बहुत सारे रिफ्यूजियों या प्रवासियों के आने के बाद करता." उन्होंने कहा कि असुरक्षा की भावना सबसे अधिक बड़े शहरों में हैं. जहां बीते सालों में प्रवासियों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है. लेकिन इसकी वजह अपराध का बढ़ना नहीं बल्कि गृहक्षेत्र या अपनी जमीं जैसी भावना का कम होना है. क्रिश्टियान के मुताबिक गृहक्षेत्र एक ऐसी भावना होती है. जिससे लोग मानसिक रूप से जुड़े से होते हैं.
आप्रवासियों का मुद्दा
हालांकि अब पुलिस आपराधिक मामलों में आप्रवासियों की बजाय विदेशियों पर अधिक ध्यान देती है. अब यहां शरणार्थियों को भी आप्रवासी कहा जाने लगा है. शरणार्थी वे लोग हैं, जिन्हें अभी जर्मनी सिर्फ इसलिए रख रहा है, क्योंकि उन्हें फिलहाल वापस नहीं भेजा जा सकता. वे लोग भी शरणार्थी ही कहलाते हैं जो बिना किसी कानूनी अनुमति के यहां रह रहे हैं या जिन्हें इसलिए सुरक्षा दी गई है क्योंकि उनके अपने देशों में युद्ध चल रहा है. इसके अलावा वे भी शरणार्थी हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सहायता कार्यक्रम के तहत रखा यहां गया है. पुलिस रिकॉर्डों के मुताबिक आप्रवासी पृष्ठभूमि के लोग जेब-काटना, बलात्कार, यौन शोषण, चोरी, डकैती जैसे अपराधों में अधिक शामिल होते हैं. क्रिश्टियान कहते हैं कि इसका एक कारण ये भी है कि विदेशियों पर जर्मन लोगों की तुलना में आरोप लगाने के मामले दोगुने होते हैं.
10 सबसे खतरनाक शहर
ये 10 जगह ऐसी हैं जहां दुनिया में सबसे ज्यादा कत्ल होते हैं. 2015 में ये दुनिया के सबसे खतरनाक शहर दर्ज हुए. वर्ल्ड एटलस डॉट कॉम के मुताबिक हर एक लाख लोगों पर यहां कितने लोग मारे जाते हैं, जानिए...
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Felix
नंबर 10
कोलंबिया के शहर कैली के लोग खुशमिजाज और साल्सा पसंद हैं लेकिन शहर मशहूर हो गया है कातिलों के कारण. यहां हर एक लाख लोगों पर 64.27 कत्ल हुए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Escobar
नंबर 9
दक्षिण अफ्रीकी शहर केप टाउन में हर एक लाख लोगों पर 65.53 कत्ल हुए.
तस्वीर: Public Domain
नंबर 8
पालमिरा दक्षिणी-पश्चिमी कोलंबिया में है. यहां 70.88 के औसत से लोग कत्ल हुए.
तस्वीर: AP
नंबर 7
वेनेजुएला का तीसरा सबसे बड़ा शहर वैलेन्सिया दुनिया का सातवां सबसे खतरनाक शहर है. यहां हर एक लाख लोगों पर 72.31 कत्ल हुए.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot
नंबर 6
नंबर 6 पर है होंडुरस का शहर दिस्तरीतो सेंट्रल जहां कत्ल का औसत रहा 73.51.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
नंबर 5
वेनेजुएला की पेट्रो-कैपिटल मैटुरिन में एक लाख लोगों पर कत्ल का औसत 86.45 रहा.
तस्वीर: Reuters/C. Eduardo Ramirez
नंबर 4
अपनी हाई एनर्जी नाइट लाइफ के लिए मशहूर अकापुलको नंबर चार पर है. मेक्सिको के इस शहर में कत्ल का औसत रहा 104.73.
तस्वीर: P. Pardo/AFP/Getty Images
नंबर 3
अल सल्वाडोर की राजधानी सैन सल्वाडोर ने हर एक लाख लोगों पर 108.54 कत्ल देखे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Cabezas
नंबर 2
सैन पेड्रो सुला, होंडुरस. यह पिछले साल पहले नंबर पर था. इस साल दूसरे नंबर पर आ गया. यहां हर एक लाख लोगों पर 111.03 कत्ल हुए.
तस्वीर: Imago/blickwinkel
नंबर 1
और दुनिया का सबसे खतरनाक शहर रहा वेनेजुएला की राजधानी कराकस. यहां हर एक लाख लोगों पर 119.87 कत्ल हुए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Barreto
10 तस्वीरें1 | 10
युवाओं पर होता है संदेह
शरणार्थी संकट के पहले भी युवाओं के चलते परेशानियां पैदा होती थी. क्रिश्टियान के मुताबिक, "14-30 साल के जवान लड़कों वाले समूह को साल 2014 में रिफ्यूजी संकट शुरू होने से पहले भी समस्याएं पैदा करने वाले माना जाता था." क्रिश्टियान कहते हैं कि हर चार में से एक शरणार्थी युवा है. उत्तरी अफ्रीका से आने वाले अप्रवासियों में यह आंकड़ा हर दो पर एक है. इन युवाओं के जर्मनी में रहने के आसार बेहद ही कम हैं क्योंकि वह पीछे अपनी पत्नियां और गर्लफ्रेंड छोड़ कर आए हैं. क्रिश्टियान यहां महिलाओं की कमी को बेहद अहम मानते हैं. वह कहते हैं कि महिलाएं कई मुद्दे बातचीत से हल कर लेती हैं. ऐसे में जब वे यहां नहीं हैं तो हो सकता है कि पुरुषों का व्यवहार हाथ से निकल जाए. लेकिन क्रिश्टियान ये भी मानते हैं कि जर्मनी की भी अपनी सीमाएं हैं. सामाजिक लाभ को लेकर भी सरकार एक हद तक ही काम कर सकती है.
कम मदद, अधिक निवेश
लेकिन क्रिश्टियान के लिए जर्मनी के वित्त मंत्री ओलाफ शॉल्त्स की सहायता राशि घटाने वाली योजना को समझना मुश्किल है. लेकिन वह विकास मंत्री गेर्ड म्यूलर की योजना को बेहतर मानते हैं. क्रिश्टियान कहते हैं कि म्यूलर की योजना अच्छी है. हाल में जर्मनी के अखबार आउसबुर्गर आलगेमाइने ने म्यूलर के हवाले से कहा था कि सरकार, इराक, नाइजीरिया, ट्यूनीशिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता देने के लिए करीब 50 करोड़ डॉलर का खर्च करेगी. क्रिश्टियान के मुताबिक इन योजनाओं के चलते रिफ्यूजियों को उनके अपने देशों में नई संभावनाएं दिखेंगी. साथ ही जर्मनी के अपराध आंकड़ों के लिए भी यह अच्छा होगा.
9 तस्वीरें, जिन्होंने दुनिया बदल दी
तुर्की के तट पर मिले एक बच्चे के शव ने दुनिया भर को झकझोर दिया था. तस्वीर ने एक पल में शरणार्थी संकट की बहस को मानवीय बना दिया. एक नजर उन तस्वीरों पर जिन्होंने दुनिया पर गहरा असर किया.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Rslan
नेपाम की बच्ची
दक्षिणी वियतनाम के गांव पर हुए नेपाम बम हमले के बाद जान बचाने के लिए भागते बच्चे. धमाके के बाद नौ साल की बच्ची जलते कपड़ों को फाड़कर दौड़ने लगी. तस्वीर में दिखाई पड़ने वाली बच्ची अब कनाडा में सकुशल रहती है. इस तस्वीर ने वियतनाम युद्ध के प्रति पश्चिमी जनमानस की सोच बदल दी. फोटोग्राफर निक उट को 1973 में इसके लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images
डस्ट लेडी
धूल से सनी महिला. ये तस्वीर न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए 11 सिंतबर 2001 के आतंकवादी हमले के दौरान ली गई. तस्वीर में दिखने वाली महिला मैर्सी बोर्डर्स आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन गई. उन्हें डस्ट लेडी कहा गया. हमले की वजह से वह पेट के कैंसर का शिकार हुई. 26 अगस्त 2015 को उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AFP
टैंक मैन
5 जून 1989, सामने खड़े होकर टैंकों को रोकने की कोशिश करता एक शख्स. यह तस्वीर चीन के तियानानमेन चौक में हुए अत्याचार की प्रतीक है. 4 जून को इसी जगह पर चीन की सेना ने प्रदर्शनकारियों को बर्बर तरीके से कुचला. जेफ विडनर ने यह तस्वीर ली. इस शख्स को थोड़ी देर बार गिरफ्तार कर लिया गया. आज तक उनके बारे में कुछ पता नहीं है.
तस्वीर: Reuters/A. Tsang
बेन ओनेजॉर्ग की मौत
2 जून 1967 को पुलिस ने ईरान के शाह की राजकीय यात्रा का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ बल प्रयोग किया. एक पुलिसकर्मी ने जर्मन छात्र बेनो ओनेजॉर्ग को गोली मारी. उनकी मौत के बाद जर्मनी में वामपंथी आंदोलन कट्टर हो उठा. हादसे के वक्त ओनेजॉर्ग की पत्नी गर्भवती थी.
तस्वीर: AP
कैनेडी की हत्या
अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की डलास में हत्या. कैनेडी की हत्या उनकी सरकारी कार में हुई. अब्राहम जैप्रूडर कैनेडी के काफिले का वीडियो बना रहे थे, तभी राष्ट्रपति के सिर पर गोली लगी. जैप्रूडर इस तस्वीर को प्रकाशित नहीं करना चाहते थे, लेकिन यह तस्वीर सामने आ गई. जांच और जिज्ञासा के चलते इसे हजारों बार बारीकी से देखा जा चुका है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
म्यूनिख नरसंहार
1972 के ओलंपिक खेलों के दौरान म्यूनिख में इस्राएली ओलंपिक टीम के 11 सदस्यों को बंधक बनाया गया. बाद में उनकी हत्या कर दी गई. आतंकवादी फलीस्तीनी संगठन ब्लैक सितंबर के थे. यह तस्वीर बालकनी से नीचे झांकते एक अपहर्ता की है.
तस्वीर: dapd
अफगान लड़की
स्टीव मैकरी का यह पोट्रे 1985 में नेशनल जियोग्राफिक में प्रकाशित हुआ. तस्वीर से पता नहीं चलता है कि पाकिस्तान में 12 साल की यह अफगान लड़की किन हालात में जी रही है. लेकिन यह तस्वीर अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले और शरणार्थी संकट का प्रतीक बन गई. शरबत गुला नाम की इस लड़की को 2002 में फिर खोजा गया. उसने अपनी यह मशहूर तस्वीर पहले नहीं देखी थी.
तस्वीर: STAN HONDA/AFP/Getty Images
एक बार फिर सीरिया
सीरिया में सरकार विरोधियों ने पांच साल के एक बच्चे का फुटेज जारी किया है. संतरी रंग की कुर्सी पर बैठा यह बच्चा खून और धूल से लथपथ है. बच्चे की पहचान ओमरान दाकनीश के रूप में हुई है.