आंध्र प्रदेश में पत्रकारिता से जुड़े लोगों पर हमले की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. आंध्र प्रदेश में जब से वाईएसआर कांग्रेस की सरकार बनी है, आरोप लग रहे हैं कि पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ी हैं.
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14 अक्टूबर को तेलगू अखबार आंध्र ज्योति के पत्रकार टी सत्यनारायण की पूर्वी गोदावरी के टूनी क्षेत्र में खौफनाक तरीके से हत्या कर दी जाती है. पत्रकार के परिवार का आरोप है कि यह हत्या बदले की भावना से की गई. 11 अगस्त को मशहूर तेलगू साप्ताहिक पत्रिका जमीन रायथू के संपादक डोलेंद्र प्रसाद पर नेल्लोर जिले में हमला होता है. प्रसाद वाईएसआर कांग्रेस के विधायक पर हमले का आरोप लगाते हैं. इसी तरह से 23 सितंबर को पत्रकार नागार्जुन रेड्डी पर भी हमला होता है. आंध्र के आंगोल जिले में धारदार हथियार से हमले में रेड्डी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं. ये कुछ मामले इस ओर इशारे करते हैं कि भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में पत्रकार कितने असुरक्षित हैं. टी सत्यनारायण की हत्या के मामले में आंध्र प्रदेश के डीजीपी ने जांच के आदेश जारी किए हैं.
सत्ता से क्यों डरे पत्रकार?
मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक पंकज श्रीवास्तव कहते हैं, "पत्रकारों पर हमले के कई मामले सामने आए हैं जिसमें साफतौर पर दिखता है कि वे हमले राजनीति से प्रेरित हैं. केवल आंध्र प्रदेश ही नहीं देश भर में आज हालात ऐसे ही हैं. आंध्र प्रदेश में देखने को मिल रहा है कि सरकार के खिलाफ जब आप लिखते हैं तो सरकार या उससे जुड़ी एजेंसियां आपको किसी ना किसी तरीके से प्रताड़ित करने की कोशिश करती हैं." हैदराबाद से निकलने वाले सियासत अखबार के पत्रकार मोहम्मद मुबशिरुद्दीन खुर्रम कहते हैं, "सत्ता परिवर्तन होने के बाद पत्रकार ही सॉफ्ट टार्गेट बनाए जाते हैं. शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में पत्रकारों पर हमले ज्यादा होते हैं जिससे शहर में रहने वाले पत्रकारों तक चेतावनी भेजी जा सके."
इन पत्रकारों को मिली अपना काम करने की सजा
मीडिया की आजादी पर कहीं कम खतरा है तो कहीं ज्यादा. वन फ्री प्रेस कॉलिशन का उद्देश्य इसी को उजागर करना है. संस्था ऐसे पत्रकारों के बारे में जागरूक करना चाहती है जिनकी जान को या तो खतरा बना हुआ है या फिर जान ली जा चुकी है.
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वन फ्री प्रेस कॉलिशन
मार्च 2019 में "वन फ्री प्रेस कॉलिशन" की स्थापना हुई जो कि दुनिया भर के मीडिया संस्थानों का ऐसा मंच है जहां अभिव्यक्ति की आजादी पर चर्चा होती है. डॉयचे वेले भी इससे जुड़ा है. हर महीने प्रेस फ्रीडम से जुड़े दस मामलों की सूची जारी की जाएगी. जानिए अप्रैल 2019 की सूची में कौन कौन है.
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मिरोस्लावा ब्रीच वेलदुसेआ, मेक्सिको
मार्च 2017 में मेक्सिको की मिरोस्लावा ब्रीच की हत्या कर दी गई. मिरोस्लावा नेताओं और माफिया के संबंधों पर रिपोर्टिंग कर रही थीं. हत्या से पहले तीन बार उन्हें धमकियां मिली थीं. फिलहाल एक संदिग्ध हिरासत में है और मामला अदालत में चल रहा है.
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मारिया रेसा, फिलीपींस
13 फरवरी 2019 को फिलीपींस के नेशनल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने मारिया रेसा को गिरफ्तार किया. उन पर साइबर कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज था. अगले दिन उन्हें रिहा तो कर दिया गया लेकिन उनकी कंपनी रैपलर पर टैक्स संबंधी मामले शुरू कर दिए गए. 28 मार्च को रैपलर के कई पत्रकारों के खिलाफ वॉरंट जारी किए गए.
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त्रान थी नगा, वियतनाम
अदालत में महज एक दिन की पेशी के बाद इन्हें नौ साल की कैद की सजा सुना दी गई. इन पर आरोप है कि इन्होंने सरकार के खिलाफ प्रचार किया. त्रान थी को नकारात्मक प्रोपेगैंडा चलाने का दोषी पाया गया क्योंकि उन्होंने ऐसे कई वीडियो बनाए थे जो प्रशासन की आलोचना करते थे और भ्रष्टाचार को दर्शाते थे.
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आजिमजोन अस्कारोव, किर्गिस्तान
इन्होंने देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाई और कई रिपोर्टें बनाईं. अपने इस जुर्म की सजा के तौर पर ये नौ साल जेल में बिता चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के आग्रहों के बावजूद किर्गिस्तान सरकार सजा खत्म करने के लिए राजी नहीं है.
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राणा अयूब, भारत
भारत में राणा अयूब एक जाना माना नाम है. राणा स्वतंत्र पत्रकार हैं और अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर आवाज उठाती रही हैं. इसके लिए उन्हें लगातार ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता रहा है. राणा को जान से मार देने की धमकियां मिलीं, उनके चेहरे को मॉर्फ कर नग्न तस्वीरों के साथ लगाया गया और उनका पता और फोन नंबर सार्वजानिक किया गया.
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मिगेल मोरा और लुसिया पिनेडा उबाउ, निकारागुआ
दिसंबर 2018 में निकारागुआ पुलिस 100% नोटिसियास नाम के टीवी चैनल के दफ्तर में पहुंची और स्टेशन डायरेक्टर मिगेल मोरा और न्यूज डायरेक्टर लुसिया पिनेडा उबाउ को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पत्रकारों को नफरत और हिंसा फैलाने के जुर्म में कैद किया गया है. उन्हें उनके कानूनी अधिकारों से भी वंचित रखा जा रहा है.
तस्वीर: 100% Noticias
आना निमिरियानो, दक्षिण सूडान
इन्हें सरकार की ओर से अपना अखबार "जूबा मॉनिटर" बंद करने को कहा गया है. आए दिन इनके पत्रकारों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और इनका सारा समय उन्हें जेल से रिहा कराने में लग जाता है. इनके काम को भी लगातार सेंसर किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद इन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं.
तस्वीर: IWMF
अमादे अबुबकार, मोजाम्बिक
जनवरी 2019 को इन्हें सैन्य हमले से भागते परिवारों की तस्वीर खींचते हुए गिरफ्तार किया गया था. कई दिन सेना की कैद में गुजारने के बाद इन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन इनकी रिहाई के कोई आसार नहीं दिखते क्योंकि बिना कानूनी कार्रवाई के ही इन्हें कैद में रखा जा रहा है.
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क्लाउडिया डुकु, कोलंबिया
2010 में इंटरनेशनल वुमेंस मीडिया फाउंडेशन ने इन्हें "करेज इन जर्नलिज्म" पुरस्कार से नवाजा था. क्लाउडिया का अपहरण किया गया, उन्हें मानसिक रूप से टॉर्चर किया गया और गैरकानूनी रूप से उन पर लगातार नजर रखी गई. अदालत ने क्लाउडिया और उनकी बेटी की प्रताड़ना के आरोप में खुफिया सेवा के तीन उच्च अधिकारियों को दोषी पाया लेकिन जनवरी 2019 में ये सब रिहा हो गए.
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ओसमान मीरगनी, सूडान
फरवरी 2019 में अल तयार नाम के अखबार के मुख्य संपादक मीरगनी को गिरफ्तार किया गया. अब तक यह नहीं बताया गया है कि उन पर क्या आरोप लगाए गए हैं. रिपोर्टों के अनुसार कैद में उनकी सेहत लगातार बिगड़ रही है. गिरफ्तारी से ठीक पहले वे सूडान में सरकार के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों पर लिख रहे थे.
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पिछले दिनों आंध्र प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने सचिव स्तर के अधिकारियों को ऐसा अधिकार दे दिया जिससे मीडिया जगत सकते में हैं. इस अधिकार के तहत राज्य में ये अफसर मीडिया संस्थानों पर "गलत या बेबुनियाद" खबरें दिखाने या छापने पर मुकदमा कर सकते हैं. ऐसा अधिकार अब तक सिर्फ जनसंपर्क और सूचना विभाग के पास ही था. मुबशिरुद्दीन कहते हैं, "हम दावा करते हैं कि हैदराबाद आईटी सेक्टर है लेकिन हमें ही सूचना को जनता तक पहुंचाने से रोका जा रहा है. हमारा काम है सच को बाहर लाना लेकिन इस तरह के कानून से तो लगता है कि हम आपातकाल के दौर में जी रहे हैं. "
हालांकि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस आदेश का संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी कर आंध्र प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है. सरकार की दलील है कि वह 'फेक न्यूज और मनगढ़ंत समाचार' को छपने से रोकने के लिए ऐसा कर रही है.
पंकज श्रीवास्तव कहते हैं, "राजनीति में गुंडा तत्वों की भरमार हो गई है और ऐसे में पत्रकार ही निशाना बन रहे हैं. मीडिया में गैर जरुरी मुद्दे उठाए जा रहे हैं, जनता से जुड़े मुद्दे पर मुख्यधारा मीडिया में बात बहुत कम या ना के बराबर हो रही है. इस दौर में अगर पत्रकार सच लिखने की कोशिश करता है तो उसे बहुत जोखिम उठाना पड़ रहा है."
सचिवालय में पत्रकारों की रोक
पड़ोसी राज्य तेलंगाना में प्रेस की आजादी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अस्थायी सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश पर बैन है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने पिछले महीने राज्य के मुख्य सचिव को बीआरकेआर भवन में स्थित अस्थायी सचिवालय में पत्रकारों की एंट्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए थे. पत्रकारों के प्रवेश को रोकने पर अधिकारियों ने कहा था कि सचिवालय में शिफ्टिंग का काम चल रहा है और फाइलों के गुम होने का खतरा है. इस फैसले को लेकर पत्रकारों ने कड़ा विरोध जताया था और कहा कि यह फैसला उन्हें आपातकाल की याद दिला रहा है.
मीडिया के जानकारों का कहना है कि इस तरह के फैसले प्रेस को दबाने के लिए होते हैं. अगर मीडिया चाहे तो एकता दिखाते हुए इन फैसलों का विरोध कर उसे पलटवा सकती है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ताजा रिपोर्ट बताती है कि पत्रकारों के लिए भारत की स्थिति खराब है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के 2019 के सूचकांक में भारत 140वें स्थान पर है. इस सूची में कुल 180 देश शामिल हैं. 140वें स्थान के साथ भारत को रेड जोन में रखा गया है.
पत्रकारों के लिए भारत से ज्यादा सुरक्षित अफगानिस्तान है. दक्षिण एशिया में पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा देश भूटान है. जानिए रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 में कौन सा देश कहां खड़ा है?