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प्रेस स्वतंत्रता

आंध्र प्रदेश में प्रेस को दबाने की कोशिश

आमिर अंसारी
६ नवम्बर २०१९

आंध्र प्रदेश में पत्रकारिता से जुड़े लोगों पर हमले की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. आंध्र प्रदेश में जब से वाईएसआर कांग्रेस की सरकार बनी है, आरोप लग रहे हैं कि पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ी हैं.

Symbolbild Zensur Pressefreiheit
तस्वीर: picture alliance / Stefan Rupp

14 अक्टूबर को तेलगू अखबार आंध्र ज्योति के पत्रकार टी सत्यनारायण की पूर्वी गोदावरी के टूनी क्षेत्र में खौफनाक तरीके से हत्या कर दी जाती है. पत्रकार के परिवार का आरोप है कि यह हत्या बदले की भावना से की गई. 11 अगस्त को मशहूर तेलगू साप्ताहिक पत्रिका जमीन रायथू के संपादक डोलेंद्र प्रसाद पर नेल्लोर जिले में हमला होता है. प्रसाद वाईएसआर कांग्रेस के विधायक पर हमले का आरोप लगाते हैं. इसी तरह से 23 सितंबर को पत्रकार नागार्जुन रेड्डी पर भी हमला होता है. आंध्र के आंगोल जिले में धारदार हथियार से हमले में रेड्डी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं. ये कुछ मामले इस ओर इशारे करते हैं कि भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में पत्रकार कितने असुरक्षित हैं. टी सत्यनारायण की हत्या के मामले में आंध्र प्रदेश के डीजीपी ने जांच के आदेश जारी किए हैं.

सत्ता से क्यों डरे पत्रकार?

मीडिया विजिल के संस्थापक संपादक पंकज श्रीवास्तव कहते हैं, "पत्रकारों पर हमले के कई मामले सामने आए हैं जिसमें साफतौर पर दिखता है कि वे हमले राजनीति से प्रेरित हैं. केवल आंध्र प्रदेश ही नहीं देश भर में आज हालात ऐसे ही हैं. आंध्र प्रदेश में देखने को मिल रहा है कि सरकार के खिलाफ जब आप लिखते हैं तो सरकार या उससे जुड़ी एजेंसियां आपको किसी ना किसी तरीके से प्रताड़ित करने की कोशिश करती हैं." हैदराबाद से निकलने वाले सियासत अखबार के पत्रकार मोहम्मद मुबशिरुद्दीन खुर्रम कहते हैं, "सत्ता परिवर्तन होने के बाद पत्रकार ही सॉफ्ट टार्गेट बनाए जाते हैं. शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में पत्रकारों पर हमले ज्यादा होते हैं जिससे शहर में रहने वाले पत्रकारों तक चेतावनी भेजी जा सके."

पिछले दिनों आंध्र प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने सचिव स्तर के अधिकारियों को ऐसा अधिकार दे दिया जिससे मीडिया जगत सकते में हैं. इस अधिकार के तहत राज्य में ये अफसर मीडिया संस्थानों पर "गलत या बेबुनियाद" खबरें दिखाने या छापने पर मुकदमा कर सकते हैं. ऐसा अधिकार अब तक सिर्फ जनसंपर्क और सूचना विभाग के पास ही था. मुबशिरुद्दीन कहते हैं, "हम दावा करते हैं कि हैदराबाद आईटी सेक्टर है लेकिन हमें ही सूचना को जनता तक पहुंचाने से रोका जा रहा है. हमारा काम है सच को बाहर लाना लेकिन इस तरह के कानून से तो लगता है कि हम आपातकाल के दौर में जी रहे हैं. "

हालांकि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस आदेश का संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी कर आंध्र प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है. सरकार की दलील है कि वह 'फेक न्यूज और मनगढ़ंत समाचार' को छपने से रोकने के लिए ऐसा कर रही है.

पंकज श्रीवास्तव कहते हैं, "राजनीति में गुंडा तत्वों की भरमार हो गई है और ऐसे में पत्रकार ही निशाना बन रहे हैं. मीडिया में गैर जरुरी मुद्दे उठाए जा रहे हैं, जनता से जुड़े मुद्दे पर मुख्यधारा मीडिया में बात बहुत कम या ना के बराबर हो रही है. इस दौर में अगर पत्रकार सच लिखने की कोशिश करता है तो उसे बहुत जोखिम उठाना पड़ रहा है." 

सचिवालय में पत्रकारों की रोक

पड़ोसी राज्य तेलंगाना में प्रेस की आजादी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अस्थायी सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश पर बैन है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने पिछले महीने राज्य के मुख्य सचिव को बीआरकेआर भवन में स्थित अस्थायी सचिवालय में पत्रकारों की एंट्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए थे. पत्रकारों के प्रवेश को रोकने पर अधिकारियों ने कहा था कि सचिवालय में शिफ्टिंग का काम चल रहा है और फाइलों के गुम होने का खतरा है. इस फैसले को लेकर पत्रकारों ने कड़ा विरोध जताया था और कहा कि यह फैसला उन्हें आपातकाल की याद दिला रहा है.

मीडिया के जानकारों का कहना है कि इस तरह के फैसले प्रेस को दबाने के लिए होते हैं. अगर मीडिया चाहे तो एकता दिखाते हुए इन फैसलों का विरोध कर उसे पलटवा सकती है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ताजा रिपोर्ट बताती है कि पत्रकारों के लिए भारत की स्थिति खराब है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के 2019 के सूचकांक में भारत 140वें स्थान पर है. इस सूची में कुल 180 देश शामिल हैं. 140वें स्थान के साथ भारत को रेड जोन में रखा गया है.

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