अमेरिका रूस के साथ की गई एक अहम हथियार संधि से आधिकारिक रूप से बाहर निकलने जा रहा है. अब दोनों एक दूसरे पर निशाना साधने वाली बैलेस्टिक परमाणु मिसाइलों की होड़ छेड़ सकते हैं.
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यह संधि निरस्त्रीकरण की राह पर मील का पत्थर थी. शीतयुद्ध के चरम पर 1987 में अमेरिकी राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन और सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस संधि (आईएनएफ) पर हस्ताक्षर किए. संधि के अमल में आते ही अमेरिका और सोवियत संघ के बीच छिड़ा शीत युद्ध शांत पड़ने लगा. संधि के तहत दोनों पक्षों ने 500 से 5,500 किलोमीटर रेंज वाली मिसाइलों पर प्रतिबंध लगा दिया.
22 साल बाद 2019 की शुरुआत में अमेरिका और नाटो ने रूस पर इस संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया. पश्चिमी देशों के मुताबिक रूस नए किस्म की क्रूज मिसाइलें तैनात कर रहा है. अमेरिका ने फरवरी में आईएनएफ संधि छोड़ने की घोषणा की. अब वह औपचारिक रूप से खत्म हो गया है. मॉस्को अमेरिका और पश्चिमी देशों के आरोपों को खारिज कर चुका है. अमेरिका का कहना है कि उसके पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि रूस 9M729 मिसाइलें तैनात कर चुका है. इन मिसाइलों को SSC-8 नाम से भी जाना जाता है. नाटो में अमेरिका के साझेदार देश भी इन आरोपों पर सहमत हैं.
सबसे लंबी मारक क्षमता वाली मिसाइलें
कई देश एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में वार करने वाली मिसाइल बनाना चाहते हैं. एक नजर सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Tass/D. Rogulin
R-36M (16,000 किलोमीटर)
रूस की R-36M दुनिया की सबसे लंबी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल है. 8.8 टन वजन वाली यह सबसे भारी मिसाइल भी है. एक से छह मॉडलों वाली इस मिसाइल की क्रूजिंग स्पीड 28,440 किलोमीटर प्रति घंटा है.
चीन की इस इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल को नाटो CSS-4 भी कहता है. इस मिसाइल की जद में अमेरिका भी आता है. मिसाइल छह रि-एंट्री व्हिकल भी ढो सकती है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Wei Yao
R-29RMU सिनेवा (11,547 किमी)
यह रूस की तीसरी पीढ़ी की इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल है. इसे पनडुब्बी से भी लॉन्च किया जा सकता है. 2007 में सेना में शामिल यह मिसाइल 2030 तक इस्तेमाल की जा सकेगी. इसे बेहद सटीक मिसाइल भी माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
UGM-133 ट्राइटेंड (11,300 किमी)
UGM-133 ट्राइटेंड अमेरिकी मिसाइल है. इसे पनडुब्बी से छोड़ा जाता है. माना जाता है कि ये मिसाइलें 2042 तक सैन्य सेवा में रहेंगी. यह एक साथ आठ परमाणु बम ले जा सकती है. यह मिसाइल करीब 21,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार हासिल कर सकती है.
तस्वीर: Reuters/U.S. Department of Defense/Missile Defense Agency
डॉन्गफेंग 31A (11,200 किमी)
1,000 किलोग्राम वजनी थर्मल न्यूक्लियर बम को ढोने वाली यह चीनी मिसाइल 2006 में सेना में शामिल की गई. पनडुब्बी से लॉन्च करने के लिए इसे एक वर्जन जुलांग-2 भी बनाया गया.
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RT-2UTTKh टोपोल-M, (11,000 किमी)
यह रूसी मिसाइल टोपोल आईसीबीएम की एडवांस वर्जन है. यह बैलेस्टिक मिसाइल परमाणु विकिरण और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स के दौरान भी काम कर सकती है. इसकी अधिकतम क्रूजिंग स्पीड 26.280 किलोमीटर प्रति घंटे बताई जाती है.
तस्वीर: Reuters/Ministry of Defence of the Russian Federation
मिनटमैन-3 (10,000 किमी)
यह मिसाइल जून 1970 से अमेरिकी सेना में शामिल है. एक साथ कई हथियार ले जाने और फिर से धरती की कक्षा में दाखिल होने की क्षमता वाली यह दुनिया की पहली इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल है. इसकी क्रूजिंग स्पीड 24,140 किमी प्रति घंटा बतायी जाती है.
तस्वीर: Getty Images
M51 ICBM, (10,000 किमी)
2010 में फ्रांसीसी सेना में शामिल की गई यह मिसाइल पनडुब्बी से छोड़ी जाती है. यह भी धरती की कक्षा में वापस लौटकर छह अलग अलग जगहों पर हमला कर सकती है.
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UR-100N (10,000 किमी)
रूस की यह मिसाइल बहुत ही पुरानी है. तत्कालीन सोवियत संघ ने यह मिसाइल शीतयुद्ध के दौरान 1975 में सेना में शामिल की. इसकी भार ढोने की क्षमता बहुत ज्यादा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
RSM-56 बुलावा (10,000 किलोमीटर)
रूसी नौसेना ने इस मिसाइल को परमाणु पनडुब्बी पर तैनात किया है. यह मिसाइल 500 मीटर दूर हुए परमाणु हमले में भी सुरक्षित रह सकती है.
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आरोपों से इनकार के बावजूद 2018 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए नई पीढ़ी के हथियार विकसित करने का एलान किया. रूसी राष्ट्रपति ने किसी भी रडार और मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भेदने वाली हाइपरसॉनिक मिसाइल समरसेट विकसित करने का भी दावा किया. ध्वनि की गति से पांच गुना तेज रफ्तार भरने वाली ऐसी मिसाइल पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलेगी और फिर वायुमंडल में दाखिल होकर कहीं भी हमला कर सकेगी. पुतिन ने कहा कि नई पीढ़ी के हथियारों के सामने मिसाइल डिफेंस सिस्टम नाकाम साबित होंगे. यह मिसाइल मौजूदा दौर की सबसे भारी आईसीबीएम मिसाइल से भी ज्यादा बम ढो सकेगी.
आईएनएफ संधि के साथ ही अमेरिका और सोवियत संघ इस बात भी सहमत हुए थे कि प्रतिबंधित मिसाइलों वाले इलाके की गहन जांच की गई. इन संधियों के बाद पांच साल के भीतर दोनों पक्षों ने 2,692 मिसाइलें नष्ट कीं. परमाणु हथियार ढोने वाली ऐसी दर्जनों मिसाइलें तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी में भी तैनात की गई थीं.
2002 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अमेरिका को एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि से बाहर निकाल लिया. इस संधि के तहत हमलावर बैलेस्टिक न्यूक्लियर मिसाइल नष्ट करने के लिए हथियार विकसित करने पर पाबंदी थी. अमेरिकी फैसले के बाद 2007 में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने एलान किया है कि आईएनएफ संधि रूस के हित में नहीं हैं. इसके बाद नए गुपचुप तरीके से हथियार विकसित करने की होड़ शुरू हो गई. 2014 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा आईएनएफ संधि से बाहर आना चाहते थे, लेकिन यूरोपीय संघ के दबाव में वह ऐसा नहीं कर सके.
परमाणु हथियारों से लैस एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जा कर मार करने वाली आईसीबीएम बनाने पर सबसे पहले नाजी जर्मनी में काम शुरू हुआ था.
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तबाही का सामान
इंटरकंटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल या आईसीबीएम का मतलब है ऐसी नियंत्रित मिसाइल जो कम से कम 5500 किलोमीटर की दूरी तक जा कर मार कर सके. यानी ऐसी मिसाइल जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जा कर तबाही मचा सके.
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एक मिसाइल कई हथियार कई निशाने
ये मिसाइलें पहले तो सिर्फ परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थीं लेकिन फिर इन्हें पारंपरिक और रासायनिक हथियार ले जाने के काबिल भी बनाया गया. मौजूदा दौर की आधुनिक आईसीबीएम का मतलब है ऐसी मिसाइल जो कई हथियार एक साथ ले कर जा सके. साथ ही मिसाइल हर हथियार को अलग निशाने पर गिराने में सक्षम हो.
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निशना छोटा हो या बड़ा
शुरुआती आईसीबीएम निशाना लगाने के हिसाब से ज्यादा सटीक नहीं थे इसलिए उन्हें बड़े ठिकानों पर हमला करने के लिए तैयार किया गया था जैसे कि पूरे शहर या फिर ऐसी ही किसी जगह को निशाना बनाना हो. दूसरी और तीसरी पी़ढ़ी के आईसीबीएम में सटीक निशाना लगाने की काबिलियत आ गयी और उन्हें छोटे छोटे ठिकानों पर हमला करने के लिए भी तैयार किया जाने लगा.
तस्वीर: Reuters/Host Photo Agency/RIA Novosti
वेर्हनर फॉन ब्राउन
दुनिया में पहली बार आईसीबीएम नाजी जर्मनी ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका को निशाना बनाने के लिए तैयार की. वेर्हनर फॉन ब्राउन ने इसे बनाया था. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ब्राउन अमेरिका चले गए और वहां की सेना के लिए मिसाइल कार्यक्रम के विकास में जुट गए, खासतौर से आईएसीबीएम के.
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अमेरिका और रूस ने की पहल
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मन डिजाइन के आधार पर ही अमेरिका और सोवियत संघ आईसीबीएम के निर्माण में जुट गए. रूस का पहला लक्ष्य ऐसे आईसीबीएम तैयार करना था जो यूरोपीय देशों तक मार कर सके.
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पहली कामयाबी रूस को मिली
रूस ने 15 मई 1957 को पहली बार आईसीबीएम का परीक्षण किया लेकिन महज 400 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद ही रॉकेट गिर गया. इसके कुछ ही महीनों बाद अगस्त 1957 में आईसीबीएम ने सफलतापूर्वक 6000 किलोमीटर की दूरी तय की. दो साल बाद ही रूस ने हमला करने में सक्षम पहला आईसीबीएम तैनात कर दिया.
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अमेरिका ने भी कोशिशें तेज की
अमेरिका रॉकेट की तकनीक में सोवियत संघ से काफी पीछे था और उस वक्त हुए कुछ अंतरराष्ट्रीय समझौतों ने भी दोनों देशों के आईसीबीएम कार्यक्रम में बाधा डाली. उस दौर में दोनों देशों का ध्यान एंटी बैलिस्टिक मिसाल तंत्र बनाने पर भी रहा. इन सबके बाद भी 1980 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने आईसीबीएम कार्यक्रम की नींव रखी.
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चीन ने भी बनाया आईसीबीएम
शीत युद्ध के दौरान रूस से मनमुटाव के बाद चीन भी इस होड़ में शामिल हो गया और 1975 में उसने अपना पहला आईसीबीएम तैयार कर लिया. इसकी तैनाती होते होते 1981 का साल आ गया और 1990 तक उसने कम से कम 20 आईसीबीएम तैयार कर लिये थे.
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भारत भी आईसीबीएम की दौड़ में
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों के पास लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें मौजूद हैं. इनमें से रूस, अमेरिका और चीन के पास आईसीबीएम भी है. भारत ने 2012 में 5000 हजार किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि 5 मिसाइल का परीक्षण कर आईसीबीएम क्लब में शामिल होने का दावा किया है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Indian Ministry of Defence
इस्राएल और उत्तर कोरिया
इस्राएल ने जेरिको 3 मिसाइल तंत्र तैयार किया है जिसे 2008 से सेवा में शामिल कर लिया गया. इसे भी आईसीबीएम का दर्जा दिया जाता है. उत्तर कोरिया भी अब अपने पास आईसीबीएम होने का दावा कर रहा है.