बर्बर तरीके से लोगों की जान लेने में वो जरा भी नहीं हिचके. जिस सिस्टम को वो नापंसद करते थे, अब उसी सिस्टम से रहमदिली की उम्मीद कर रहे हैं. लेकिन सिस्टम परेशान है.
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युद्ध के दौरान इस्लामिक स्टेट के सफाए के बहुत कोशिशें हुईं, लेकिन सैकड़ों लड़ाके फिर भी बच गए. इनमें से कई यूरोपीय संघ के नागरिक हैं. कइयों को इराकी प्रशासन या सीरिया के उग्रवादी संगठनों ने हिरासत में रखा है. कई यूरोपीय देश बिल्कुल भी नहीं चाहते कि इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने वाले उनके ये नागरिक वापस यूरोप लौटें.
इस्लामिक स्टेट के पैर उखाड़ने में इराक की मदद करने वाले यूरोपीय नेता, जिहादियों को इराकी न्याय तंत्र के सहारे सजा दिलवाने में राहत महसूस कर रहे हैं. इराक सरकार का कहना है कि इस्लामिक स्टेट के लिए सक्रिय रूप से लड़ने या अहम भूमिका निभाने वालों को ही मौत की सजा दी जाएगी.
यूरोपीय संघ बहुत ही मुखर होकर दुनिया भर में मौत की सजा का विरोध करता रहा है. यूरोपीय संघ ने इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने का भी विरोध किया था. लेकिन अब यूरोपीय संघ इराक और सीरिया में पकड़े गए अपने ही नागरिकों के भविष्य पर चुप्पी साधे हुए है.
आईएस की क्रूरता
आइसिस आतंकी गुट आईएस अगले पांच साल में भारत सहित दुनिया के बड़े हिस्से को अपने प्रभाव में लेना चाहता है. यह बात पाकिस्तान में मिले एक आईएस दस्तावेज से पता चली है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
रणनीति
32 पेज का कथित दस्तावेज जिहाद का इतिहास बताते हुए सामयिक रणनीति बयान करता है.
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खुली लड़ाई
जिहादी संगठन की हिंसक अंतरराष्ट्रीय रणनीति के अंत में खुली लड़ाई की बात कही गई है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca
क्रूरता
आईएस अपने विरोधियों को हिंसक तरीके से मारता रहा है और उसकी तस्वीर रिलीज करता रहा है.
बर्बर
अफगानिस्तान में उसने तालिबान समर्थकों को लाइन में बिछाकर भूमिगत सुरंगों से उड़ा दिया.
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press/M. Dairieh
समर्थन
आईएस को पश्चिमी देशों से भी लड़ाके मिल रहे हैं. आईएस के प्रोपेगैंडा वीडियो में एक जर्मन लड़ाका.
तस्वीर: Propagandavideo Islamischer Staat
निशाना
आईएस दस्तावेज में पश्चिमी देशों के बदले भारत को जिहाद का अगला युद्धक्षेत्र बताया गया है.
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कत्लेआम
सीरिया और इराक के जिन इलाकों में आईएस ने कब्जा किया है, वहां कत्लेआम मचाया है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
सेक्स दासता
इराक के यजीदी इलाके में आईएस ने मर्दों को मार डाला और औरतों तथा बच्चियों को बंधक बनाया.
तस्वीर: Reuters/Rasheed
तोड़ फोड़
इराक के मोसुल शहर में आईएस के लड़ाकों ने प्राचीन धरोहरों की बेरहमी से तोड़ फोड़ की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/IS/Internet
धरोहर
इराक के पालमिरा शहर पर कब्जे के बाद दुनिया को वहां के विश्व धरोहरों की चिंता सता रही है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
दरिंदगी
आईएस के लड़ाकों ने पालमिरा के प्राचीन धरोहरों के विशेषज्ञ 81 वर्षीय खालेद अल असद को मार डाला.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
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सजा ए मौत की आउटसोर्सिंग
जिहादी गतिविधियों पर नजर रखने वाले बेल्जियम के विशेषज्ञ पीटर फान ओस्टाआयेन यूरोपीय संघ की दुविधा से वाकिफ हैं, वह सवाल करते हैं, "क्या हम इराक के सहारे मौत की सजा की आउटसोर्सिंग कर रहे हैं? यह एक नैतिक सवाल है. लेकिन इस दौरान हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि ये जो लोग पकड़े गए हैं, उन्हें वापस लौटकर फिर से हमारे समाज में फिट बैठना होगा और यह देखना होगा कि हम उनके साथ क्या करेंगे?"
एक जर्मन महिला को तो इराकी अदालत मौत की सजा सुना चुकी है. उसे "संसाधन संबंधी सहयोग मुहैया करने और आपराधिक कृत्यों में आतंकवादी संगठन की मदद करने" का दोषी करार दिया गया. महिला ने अपना अपराध कबूल करते हुए कहा कि वह इस्लामिक स्टेट के इलाके में गई और उसने अपनी दो बेटियों की शादी भी आईएस के लड़ाकों से की. दोषी महिला की मौत की सजा के खिलाफ अपील की जा सकती थी, लेकिन जर्मनी ने ऐसा नहीं किया.
सीरिया में कुर्द संगठन इस्लामिक स्टेट से जुड़े लोगों पर कार्रवाई कर रहे हैं. कुछ कुर्द कार्यकर्ता और उनके अमेरिकी साझेदार यूरोपीय संघ के देशों पर अपने नागरिकों को वापस लेने का दबाव डाल रहे हैं. इसके चलते यूरोपीय संघ चिंता में है. एगमॉन्ट इंस्टीट्यूट के आतंकवाद विशेषज्ञ थोमस रेनार्ड कहते हैं, "यूरोपीय सरकारों के लिए हालात बहुत असहज हो गए हैं. इस बात का डर है कि किसी बिंदु पर आकर कुर्द दबाव बढ़ा देंगे." कैदियों की रिहाई की चेतावनी देते हुए कुर्द राजनीतिक मांगें मनवाने की कोशिश करेंगे. हो सकता है कि वो कुछ कैदियों को रिहा भी कर दें.
उसूलों में उलझा यूरोप
यूरोप को यह चिंता यूं ही नहीं है. यूरोपीय न्यायिक तंत्र में लचीलापन है, जिसके चलते आतंकवादी देर सबेर रिहा हो ही जाएंगे. फ्रांस की एक महिला का उदाहरण देते हुए रेनार्ड कहते हैं, उसे इराक में आतंकवादी अपराधों का दोषी करार दिया गया और कुछ महीने की सजा दी गई. सजा के बाद उसे फिर यूरोप लौटने के लिए रिहा कर दिया गया. रेनार्ड के मुताबिक अब उस महिला को दोबारा न्याय के कठघरे में नहीं लाया जा सकता क्योंकि वह अपने अपराध के लिए सजा भुगत चुकी है, "यूरोपीय प्रशासन के लिए यह चुनौती है. अगर हम इराकी प्रशासन को नेतृत्व सौंपने का फैसला करेंगे तो हमें वहां दी जाने वाली सजा को स्वीकार करना होगा, हो सकता है कि कुछ मामलों में हमें यह पसंद न आए."
इन्होंने इराक से आईएस को समेट दिया..
अगस्त 2014 में जब इराक में हैदर अल अबादी ने नई सरकार बनायी तो बहुत से लोगों को यकीन था कि वह नाकाम रहेंगे. असल में यह वह दौर था जब इस्लामिक स्टेट की ताकत लगातार बढ़ रही थी. लेकिन तीन साल में अबादी ने पासा पलट दिया.
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मिशन पॉसिबल
जिसे बहुत से लोग मिशन इंपॉसिबल करार दे चुके थे, उसे हल्की सफेद दाढ़ी रखने वाले इराकी पीएम अबादी ने संभव कर दिया. उन्होंने इराकी सेना को फिर से खड़ा किया और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों की मदद से आईएस के कब्जे वाले 90 फीसदी हिस्से से उसे भगा दिया है. अबादी ने देश के उत्तरी हिस्से में कुर्द पेशमर्गा लड़ाकों से भी विवादित हिस्सों को फिर से हासिल किया है.
चुनौतियां
मध्य पूर्व मामलों के जानकार फनर हदाद कहते हैं, "अबादी के बारे में माना जाता था कि वह कमजोर हैं, कड़े फैसले नहीं ले सकते और उनका रवैया कुछ ज्यादा ही मेलमिलाप वाला है." जब उन्होंने नूरी अल मालिकी से सत्ता की बागडोर ली तो जिहादी खतरों के अलावा उनके सामने बेहताशा भ्रष्टाचार, लचर बुनियादी ढांचा और तेल के गिरते दामों जैसी चुनौतियां थीं.
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मोर्चे पर पीएम
अबादी ने इन चुनौतियों को स्वीकार किया और फिर वह मोर्चों पर जाकर और सैनिकों के साथ खड़े होकर सैन्य कामयाबियों का एलान करते रहे. इराकी व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए भी उन्होंने कई सुधार किये. इन सभी कदमों पर उन्हें इराकी जनता का समर्थन भी मिला है.
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सोशल मीडिया पर सक्रिय
अबादी सोशल मीडिया पर भी बहुत सक्रिय हैं. फेसबुक पर उन्हें 25 लाख लोग फॉलो करते हैं. उनके एक समर्थक ने हाल में फेसबुक पर लिखा, "वह इराक के इतिहास में सबसे अच्छे प्रधानमंत्री हैं. वह बोलते कम हैं और काम ज्यादा करते हैं."
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सुन्नियों में भी लोकप्रिय
जानकार भी कहते हैं, जिन क्षेत्रों में इराक के दूसरे प्रधानमंत्री नाकाम रहे, अबादी ने वहां कामयाबी के झंडे गाड़े. इराक में एक हालिया सर्वे में पाया गया है कि 75 प्रतिशत लोग शिया प्रधानमंत्री अबादी का समर्थन करते हैं. यहां तक इराक के अल्पसंख्यक सुन्नी समुदाय में भी वह लोकप्रिय हैं.
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शुरुआती जिंदगी
दावा पार्टी के सदस्य अबादी का जन्म 1952 में बगदाद में हुआ, लेकिन इराक में सद्दाम हुसैन के शासनकाल के दौरान ज्यादातर समय अबादी निर्वासन में रहे. ब्रिटेन में रह कर उन्होंने मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की.
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सद्दाम का दौर
अबादी के दो भाइयों को सद्दाम हुसैन के शासन में गिरफ्तार कर मौत की सजा दी गयी. उनका कसूर बस इतना था कि वह दावा पार्टी के सदस्य थे. इसी आरोप में उनके तीसरे भाई को दस साल तक जेल में रखा गया. दावा पार्टी सद्दाम के शासन का विरोध करती थी.
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इराक वापसी
2003 में जब सद्दाम को सत्ता से बेदखल किया गया तो अबादी इराक लौटे. तानाशाही सरकार के पतन के बाद बनी अंतरिम सरकार में अबादी को संचार मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी. 2006 में वह संसद के सदस्य बने और उन्हें अर्थव्यवस्था, निवेश और पुर्ननिर्माण समिति और वित्त समिति का चेयरमैन बनाया गया.
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अहम जिम्मेदारी
जुलाई 2014 में अबादी को संसद का डिप्टी स्पीकर बनाया गया. इसके एक महीने बाद ही उन्हें सरकार बनाने का मौका मिला. तीन साल में शायद उनकी सबसे बड़ी कामयाबी देश की सेना और पुलिस को फिर से खड़ा करना है, जो दशकों से लचर अवस्था में थी. वह हजारों सैनिकों और सुरक्षाकर्मियों में जोश का संचार करने में कामयाब रहे.
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लंबा सफर
अबादी के नेतृत्व में इराकी सुरक्षा बलों ने इराक में आईएस के कब्जे वाले 90 फीसदी हिस्से को मुक्त करा लिया है. यह आईएस की "खिलाफत" के लिए बहुत बड़ा झटका है. इसी कामयाबी ने अबादी को आम लोगों के बीच लोकप्रियता दिलायी है. लेकिन इराक को स्थिर करने के राह में अभी उन्हें लंबा रास्ता तय करना होगा.
जर्मनी की 17 साल की किशोरी लिंडा के मामले में जर्मन अधिकारियों ने दखल दिया. इस्लामिक स्टेट के लड़ाके से शादी करने वाली लिंडा को आजीवन कैद की सजा दी गई. इराकी अधिकारियों के मुताबिक उम्र कम होने की वजह से उसे मौत की सजा नहीं दी गई. लिंडा जर्मनी लौटना चाहती है. ज्यादातर यूरोपीय देश ऐसे दोषियों को पुलिस की सुरक्षा में वापस ला रहे हैं. 10 साल से कम उम्र के बच्चों के मामले में यूरोपीय देश ज्यादा परेशान नहीं हैं. ऐसे बच्चों को फिर से समाज में शामिल करने का काम किया जाएगा.
बेल्जियम की दो महिलाएं भी सीरिया के हिरासत केंद्र में बंद हैं. सीरिया और इराक में इस्लामी खिलाफत का सपना देख चुकी ये महिलाएं अब चाहती हैं कि उन्हें कैद की सजा बेल्जियम में दी जाए ताकि उनके बच्चे वहां स्कूल भी जा सकें. बेल्जियम के न्याय मंत्री ने इस केस के बारे में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
ह्यूमन राइट्स वॉच की नदीम हौरी मौत की सजा के मुद्दे पर यूरोपीय संघ की इस चुप्पी की आलोचना कर हैं, "यह यूरोपीय संघ का एक अहम अभियान था. अब इराक के चलते इस मुद्दे की अनदेखी करना लक्ष्यों के प्रति बहुत गलत संदेश भेजेगा और दुनिया के दूसरे हिस्सों से मौत की सजा खत्म करवाने की उनकी कोशिशों को पीछे धकेलेगा."