यूरोपीय यूनियन की ओर से कराए गए एक अध्ययन से पता चला है कि चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट को भारत की भी 7 कंपनियों से हथियारों से जुड़ा सामान पहुंच रहा है. भारत के साथ ही 20 देशों की 51 और कंपनियां भी इसमें शामिल हैं.
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यह अध्ययन दुनिया भर के तनावग्रस्त इलाकों में हथियारों की आपूर्ति का अध्ययन करने वाली संस्था कंफ्लिक्ट आर्मामेंट रिसर्च यानि सीएआर ने किया है. संस्था की वेबसाइट में 'ट्रेसिंग दि सप्लाई आॅफ कंपोनेंट्स यूज्ड इन इस्लामिक स्टेट' नाम से प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस्लामिक स्टेट को हथियारों से जुड़ी सामग्री की आपूर्ति करने में भारत के अलावा तुर्की, ब्राजील और अमरीका के साथ ही 20 देशों की तकरीबन 51 कंपनियां शामिल हैं. बीस महिनों तक किए गए इस शोध के मुताबिक इन कंपननियों के ऐसे उत्पाद इस्लामिक स्टेट के पास पहुंच रहे हैं जिनका इस्तेमाल वह इंप्रोवाइस्ड एक्स्प्लोसिव डिवाइसेज यानि आईईडी बनाने के लिए करता है.
वेबसाइट पर छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक इन भारतीय कंपनियों में गल्फऑइल कॉर्पोनेशंस, सोलर इंडस्ट्रीज, प्रीमियर एक्सप्लोसिव्स, राजस्थान एक्सप्लोसिव्स, चामुंडी एक्सप्लोसिव्स, इकॉनोमिक एक्स्प्लोसिव्स और आइडियल इंडस्ट्रियल एक्सप्लोसिव्स शामिल हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है हथियारों के अलावा भारत की एक और कंपनी नोकिया सॉल्यूशंस एंड नेटवर्क की ओर से आईएस को मोबाइल फोनों की सप्लाई भी हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ''सीएआर के जमीनी जांच दल के दस्तावेजों के मुताबिक डेटोनेटर्स, डेटोनेटिंग कार्ड और सेफ्टी फ्यूज बनाने वाली भारत की 7 कंपनियां इसमें शामिल हैं. भारतीय कानून के मुताबिक इस किस्म की सामग्री के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है. सीएआर की ओर से दर्ज की गई सारी सामग्री कानूनी तौर पर भारत सरकार की ओर से जारी किए गए लाइसेंस से ही लेबनान और तुर्की की संस्थाओं को निर्यात की गई थी.''
बीते कुछ सालों से इस्लामिक स्टेट का ईराक और सीरिया के बड़े हिस्से में कब्जा है. इन दोनों ही देशों से तुर्की की सीमा लगती है. तुर्की का कहना है कि उसने चरमपंथी सुन्नी इस्लामिक संगठन आईएस को हथियारों की आपूर्ति रोकने के लिए मजबूत कदम उठाए हैं. लेकिन सीएआर की इस रिपोर्ट के मुताबिक इस्लामिक स्टेट को हथियारों से जुड़ा सामान पहुंचाने वाली कंपनियों में सबसे अधिक 13 कंपनियां तुर्की की हैं और इसके बाद दूसरा नंबर भारत का है जिसकी 7 कंपनियों से इस्लामिक स्टेट को हथियार बनाने का सामान पहुंच रहा है.
सीएआर के कार्यकारी निदेशक जेम्स बेवन का कहना है, ''इन निष्कर्षों से इराक और सीरिया में आईएस की सेनाओं के बारे जागरूकता बढ़ने में मदद मिलेगी कि वे स्थानीय स्तर पर और बाहर से भी हथियार और रणनितिक सामग्री को जुटाने में काफी हद तक आत्मनिर्भर हैं.''
कंफ्लिक्ट आर्मामेंट रिसर्च को 2011 में दुनिया भर के तनावग्रस्त इलाकों में हथियारों की आपूर्ति के अध्ययन के लिए बनाया गया था.
आरजे/आईबी (रॉयटर्स)
कौन है हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
स्वीडन के थिंक टैंक सिपरी की रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया में हथियारों का आयात करने वाले देशों में एशिया और मध्यपूर्व के देश सबसे आगे हैं. इनमें भी टॉप पर है भारत जहां पर्याप्त स्वदेशी हथियारों का निर्माण नहीं हो रहा है.
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#1 भारत
दुनिया भर में आयात किए जाने वाले कुल हथियारों का 14 फीसदी केवल भारत में आता है. हथियारों का आयात भारत में चीन और पाकिस्तान से तीन गुना ज्यादा है. सिपरी की रिपोर्ट में इसका कारण “भारत की अपनी आर्म्स इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धी स्वदेशी हथियार डिजाइन कर पाने में असफल रहना” बताया गया है. सबसे ज्यादा हथियार रूस (70%), अमेरिका (14%) और इस्राएल (4.5%) से आते हैं.
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#2 सऊदी अरब
पहले के मुकाबले बीते पांच सालों में सऊदी अरब में हथियारों का इंपोर्ट 275 प्रतिशत बढ़ा. सीरिया और यमन में जारी युद्ध की स्थिति का भी इस बढ़त में हाथ है. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका और ब्रिटेन से आ रहे हैं. सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार "तेल के दामों में आई कमी के बावजूद, मध्य पूर्व में हथियारों की बड़ी खेप आना जारी रहेगा क्योंकि बीते पांच सालों में कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर हुए हैं."
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#3 चीन
विश्व के कुल आयात में करीब 4.7 फीसदी हिस्सेदारी वाला चीन धीरे धीरे अपने हथियारों की जरूरत खुद पूरी करने की ओर अग्रसर है. 2006-11 के मुकाबले 2011-15 में आयात में 25 फीसदी की कमी दर्ज हुई. 21वीं सदी के शुरुआती सालों में चीन दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक हुआ करता था. अब तीसरे स्थान पर है.
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#4 संयुक्त अरब अमीरात
बीते पांच सालों में उसके पहले के पांच सालों की अपेक्षा पूरे मध्यपूर्व इलाके में हथियारों का आयात 61 फीसदी बढ़ा. इसी दौरान केवल संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में आयात में 35 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. जबकि कतर में यह 279 फीसदी बढ़ गया. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका (65%) से आते हैं. हाल ही में यूएई ने फ्रांस से 60 नए रफाएल लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा किया है.
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#5 ऑस्ट्रेलिया
सरकार हथियारों की खरीद 65 फीसदी तक बढ़ा कर बीते पांच सालों में ऑस्ट्रेलियाई सेना को मजबूत बना रही है. ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट कंगारू नाम के एक बड़े प्रोजेक्ट के तहत 12.4 अरब डॉलर की कीमत पर अमेरिका से 72 स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 खरीदेगा. हालांकि अभी एफ-35 जेटों के निर्माण और विकास की प्रक्रिया में कुछ बाधाएं आती दिख रही हैं. कई सेना विशेषज्ञ इसे रूस के सुखोई सू-35 से कम खूबियों वाला बताते हैं.
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#6 तुर्की
तुर्की विदेशी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करने की ओर प्रयासरत है. दो द्वीपों वाले इस देश में अब ज्यादा से ज्यादा द्विपक्षीय टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की योजनाएं चलाई जा रही हैं. ऑस्ट्रेलिया की ही तरह तुर्की भी नाटो का सदस्य देश है. और उसने भी अमेरिका से एफ-35 जेट विमानों की खरीद की है. तुर्की नाटों के साथ मिलकर अपना खुद का युद्धक टैंक बनाने की कोशिश कर रहा है.
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#7 पाकिस्तान
चीनी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार पाकिस्तान ही है. हाल ही में इस्लामाबाद ने डीजल से चलने वाली आठ चीनी पनडुब्बियां, टाइप 41 युआन, खरीदने का सौदा किया है. इसके अलावा पाकिस्तानी तोपखाने और हवाई बेड़े अभी भी अमेरिका से आयात होते हैं.
केवल पांच सालों में आयातकों की सूची में 43वें स्थान से 8वें पर आने वाले इस कम्युनिस्ट देश में सबसे ज्यादा हथियार रूस से आ रहे हैं. पांच सालों के अंतराल में आयात में करीब 700 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. दक्षिण चीन सागर में जारी संघर्ष के कारण वियतनाम अपनी जलसेना और वायुसेना की लड़ाकू क्षमता को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.