पश्चिमी देशों के लिए शरणार्थियों का आना सिरदर्द बना हुआ है, तो खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वालों के लिए उनका जाना. कभी धमका कर, तो कभी बच्चों की दुहाई दे कर लोगों को बाहर जाने से रोकने में लगा है आईएस.
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उस एक तस्वीर ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया. बोद्रुम के तट पर पड़ा तीन साल का आयलान कुर्दी. उसकी लाल टीशर्ट खिसक कर थोड़ा ऊपर आ गयी थी, जूते पूरी तरह गीले हो चुके थे. पहली नजर में लगता था जैसे आयलान वहां सो रहा हो. लेकिन उसका चेहरा पानी में डूबा हुआ था, नन्हा आयलान मर चुका था.
सितंबर में इस तस्वीर को दुनिया भर के अखबारों और सोशल मीडिया में हजारों बार दिखाया गया. क्योंकि भूमध्यसागर में डूबे उस बच्चे की यह एक तस्वीर पूरे शरणार्थी संकट को बयान कर रही थी.
और सिर्फ अखबारों में ही नहीं, "दाबिक" में भी यह तस्वीर छपी. "दाबिक" इस्लामिक स्टेट द्वारा चलाई जाने वाली पत्रिका है. इसे अंग्रेजी में छापा जाता है और इसका ऑनलाइन संस्करण भी है. अन्य अखबारों की तरह इसमें भी तस्वीर के साथ लेख लिखा गया था और इसका शीर्षक था, "द डेंजर - ऑफ एबनडनिंग दारुल इस्लाम" यानि इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण वाले इलाके को छोड़ कर जाने का जोखिम.
बच्चों का वास्ता
इस तस्वीर का आईएस ने अपने मकसद के लिए इस्तेमाल करना चाहा. लेख में कई धार्मिक नेताओं के बयानों द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की गयी है कि एक सच्चा मुसलमान कभी "इस्लामिक स्टेट" को पीठ दिखा कर भाग नहीं सकता. लोगों को डराने के लिए यह भी लिखा गया है कि "ऐसे गद्दारों" को पश्चिमी देशों में जा कर किस तरह शराब और ड्रग्स के नशे से भरी ऐसी दुनिया में जीने पर मजबूर होना पड़ेगा, जहां इस्लाम के लिए कोई जगह नहीं है. यहां तक कि उन्हें अपने बच्चों का वास्ता भी दिया गया कि सीरिया और लीबिया से जा रहे लोगों की तरह अपने बच्चों के जीवन से खिलवाड़ ना करें.
आईसिस, आईसिल, आईएस या दाएश?
खुद को "इस्लामिक स्टेट" कहने वाले आतंकी संगठन का सही नाम क्या है? आखिर क्यों जगह जगह इसके लिए अलग अलग नाम का इस्तेमाल किया जाता है?
तस्वीर: Getty Images
आईएसआई
आज जिसे इस्लामिक स्टेट के नाम से जाना जाता है, दरअसल उसकी शुरुआत अल कायदा से हुई. 2006 में इराक में मौजूद अल कायदा ने खुद को इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक का नाम दिया. तब यह आईएसआई कहलाया.
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press
आईसिस
फिर 2013 में संगठन अल कायदा से अलग हो गया और इसके लीडर अबु बक्र अल बगदादी ने नाम के आगे "अल-शाम" भी जोड़ दिया. तब यह इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड अल-शाम कहलाया. अंग्रेजी में इसे इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया यानि आईसिस कहा जाने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/Balkis Press
क्या है अल-शाम?
अरबी भाषा में सीरिया को शाम कहा जाता है. हालांकि "अल शाम" एक बेहद पुराना शब्द है जो सीरिया, लेबनान, इस्राएल, फलीस्तीन और जॉर्डन को एक साथ संबोधित करता है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca
आईसिल
भूमध्यसागर के करीब जिस इलाके को अरबी में अल-शाम कहा जाता है, लगभग उसी को अंग्रेजी में लैवेंट पुकारा जाता है. यहीं से एक नया अनुवाद हुआ और संगठन को अब इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लैवेंट यानि आईसिल कहा जाने लगा.
जून 2014 में इस आतंकी संगठन ने घोषणा की कि वह अपने नाम के आगे से इराक और सीरिया हटा रहा है. तब से वह आईएस के नाम से जाना जाने लगा है. अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र अब भी आइसिल का प्रयोग करते हैं और फ्रांस दाएश का.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Raqqa Media Center
दाएश
दौलत अल इस्लामिया फ-अल इराक वा अल-शाम. अरबी मीडिया आईएस को इस नाम से पुकारता है. इसे छोटा करके बनता है दाईश. फ्रांस समेत कई पश्चिमी देशों ने इसे एक शब्द बना कर दाएश के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया है. हालांकि अरबी में दाएश जैसा कोई शब्द नहीं है.
तस्वीर: Imago/Xinhua
खिलाफत
संगठन का दावा है कि वह एक इस्लामिक खिलाफत स्थापित कर चुका है. संगठन ने अपने नाम के आगे से इराक और सीरिया हटाने का भी यही कारण बताया. इस तर्क से दुनिया की सभी इस्लामी सरकारें नाजायज हैं और केवल आईएस ही सही है.
तस्वीर: Getty Images/K. Cucel
अल बगदादी
केवल दुनिया की सरकारें ही इस आतंकी संगठन को "इस्लामिक" मानने से इंकार नहीं करतीं, खुद आतंकवादी भी करते हैं. अल कायदा ने इसे अल बगदादी का नाम दिया है और इस्लाम के नाम पर इस संगठन द्वारा की जा रही हरकतों की निंदा भी कर चुका है.
तस्वीर: Getty Images
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"दाबिक" में छपे इस लेख के साथ आईएस ने एक बात तो मान ली है, कि लोग उसे छोड़ कर जा रहे हैं. अगर यह वाकई एक "इस्लामिक स्टेट" होता, तो भला लोग ऐसा क्यों करते? इसे तो दुनिया भर के मुसलामानों के लिए आकर्षण का केंद्र होना चाहिए था. लेकिन ऐसा क्यों है कि लोग इसे हर कीमत पर छोड़ कर भाग रहे हैं?
जर्मनी के पूर्व सांसद और लेखक युर्गेन टोडेनहोएफर दस दिन इस्लामिक स्टेट में बिता कर आए हैं. लौट कर उन्होंने वहां के हालात पर एक किताब भी लिखी. उनका कहना है, "दिलचस्प बात यह है कि सभी लोग एक ही दिशा में जा रहे हैं. सीरिया में कोई भी असद के इलाके से भाग कर अपनी मर्जी से आईएस के इलाके में नहीं जा रहा है, बल्कि इसका उल्टा हो रहा है. लोग आईएस के इलाके से निकल कर सरकार के कब्जे वाले इलाकों में जा रहे हैं."
हमें छोड़ कर मत जाओ
खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वालों और कथित रूप से एक खिलाफत स्थापित करने वालों की नजर में यह गलत दिशा है. "दाबिक" में छपे उस दो पन्ने के लेख के अनुसार मुसलमानों को आईएस की ही शरण में आना चाहिए. ना तो उन्हें अलावियों के पास जाना चाहिए, ना शियाओं के पास और ना कुर्दों के. और यूरोप और अमेरिका जैसी नापाक जगहों में जाने का तो सवाल ही नहीं उठता, "इस्लामिक स्टेट वाले इलाके को अपनी मर्जी से छोड़ कर जाना न केवल एक बहुत बड़ा जोखिम, बल्कि एक बेहद बड़ा पाप है."
कहां से आ रहे हैं शरणार्थी
यूरोप को अप्रत्याशित संख्या में आ रहे शरणार्थियों के व्यवस्थित पंजीकरण में कामयाबी नहीं मिली है. जर्मनी द्वारा सितबंर में शरणार्थियों के लिए सीमा खोलने से पहले अगस्त तक करीब छह लाख लोगों ने ईयू में शरण का आवेदन दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V.Shevchenko
1. सीरिया
यूरोपीय सांख्यिकी दफ्तर के अनुसार सबसे ज्यादा शरणार्थी सीरिया से हैं. इस साल सीरिया के करीब सवा लाख लोगों ने शरण का आवेदन दिया है जो कुल आवेदन का 20 फीसदी है.
तस्वीर: Getty Images/AP Photo/D. Vranic
2. कोसोवो
दूसरे नंबर पर सर्बिया से अलग होकर देश बनने वाला कोसोवो हैं जहां से करीब 66 हजार लोगों ने शरण का आवेदन दिया है. वे आर्थिक मुश्किलों की वजह से यूरोपीय देशों में बसना चाहते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Plesch
3. अफगानिस्तान
पिछले साल पश्चिमी सेनाओं की वापसी के बाद अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ी है और शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है. इस साल करीब 63 हजार लोग यूरोप में शरण का आवेदन दे चुके हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/W. Kohsar
4. अलबानिया
यूरोपीय देशों में शरण चाहने वालों में चौथे नंबर पर अलबानिया के लोग हैं जहां के करीब 43 हडार लोगों ने आवेदन दिया है. अलबानिया के लोग भी आर्थिक मुश्किलों से भाग रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/T. Lohnes
5. इराक
जिन देशों के लोगों को शरण मिलने की सबसे ज्यादा संभावना है उनमें सीरिया और एरिट्रिया के अलावा इराक भी है. इराक के करीब 34 हजार लोगों ने शरण के लिए आवेदन दिया है.
तस्वीर: Reuters/A. Saad
6. एरिट्रिया
अफ्रीकी देश एरिट्रिया के करीब 27 हजार लोग यूरोपीय संघ के देशों में शरण लेना चाहते हैं. वे बेहतर जिंदगी की चाह में भूमध्य सागर के रास्ते जान की बाजी लगाकर यूरोप पहुंचने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: DW/Yohannes G/Egziabher
7. सर्बिया
कभी सर्बिया की वजह से शरणार्थी यूरोप आ रहे थे. अब सर्बिया के लोग भी ईयू में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं. और रास्ता नहीं होने के कारण करीब 22 हजार लोगों ने शरण पाने के लिए आवेदन दिया है.
तस्वीर: DW/L. Scholtyssyk
8. पाकिस्तान
आतंकवाद और पिछड़ेपन में उलझे पाकिस्तान के बहुत से लोगों के लिए भी देश से भागना बेहतर जिंदगी का एकमात्र रास्ता है. शरण के आवेदकों में करीब 20 हजार पाकिस्तान से हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
9. सोमालिया
यूरोप आने वाले शरणार्थियों में चोटी के दस देशों में सोमालिया भी शामिल है. सोमालिया जहां सरकार का तंत्र पूरी तरह खत्म हो चुका है, वहां से 13 हजार लोगों ने शरण पाने के लिए आवेदन दिया है.
तस्वीर: Reuters/F. Oma
10. यूक्रेन
यूरोप में गृहयुद्ध झेल रहा यूक्रेन भी लोगों के भागने की समस्या से जूझ रहा है. वहां से भी करीब 13 हजार लोगों ने यूरोपीय संघ में शरण पाने की इच्छा जताई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V.Shevchenko
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अब तक कितने लोग इस इलाके को छोड़ कर जा चुके हैं, यह कहना मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अकेले सीरिया में ही 80 लाख लोग विस्थापित हैं. इनके अलावा और 40 लाख सीरियाई लोगों ने आस पड़ोस के मुल्कों में पनाह ली हुई है. टोडेनहोएफर बताते हैं, "आईएस की नजरों में यह सब हराम है."
हालांकि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जाने के बावजूद अब तक आईएस ने अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं किया है. पूरे लेख में एक बार भी कहीं यह बताने की कोशिश नहीं की गयी है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में लोग आईएस को छोड़ कर क्यों जाना चाह रहे हैं. कट्टरपंथियों के आतंक का कोई अंत नहीं दिखता. लेकिन एक बात तो साफ हो गयी है, खुद आईएस भी शरणार्थियों के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं कर पा रहा है. आखिर जब लोग ही नहीं रहेंगे, तो वह राज किस पर करेगा?