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आईपीएस अधिकारी ने इशरत मुठभेड़ पर सवाल उठाए

२९ जनवरी २०११

इशरत जहां मुठभेड़ के मामले में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और विशेष जांच दल के सदस्य सतीश वर्मा ने सवाल उठाएं हैं. गुजरात हाई कोर्ट के सामने अपने संदेह रखते हुए उन्होंने ताजा एफआईआर की मांग की है.

2004 में हुई इशरत की मौततस्वीर: AP

मामले में सहायता करने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय ने योगेश लखानी को नियुक्त किया है. सुनवाई के दौरान वर्मा ने जस्टिस जयंत पटेल और अभिलाषा कुमारी की खंडपीठ के सामने कहा, "इस केस में दो संभावनाएं हैं- एक कि जो चार लोग मुठभेड़ में मारे गए वह गुजरात के मुख्यमंत्री को मारने आए थे. और दूसरी कि पुलिस ने बिना सोचे समझे उन्हें मार दिया. पहली की तुलना में दूसरी स्थिति के सच होने की संभावना ज्यादा है."

वर्मा ने कहा कि इस मामले में नई एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए क्योंकि सबूत संदेह पैदा कर रहे हैं कि किन हालात में (इशरत और बाकियों को) गोली मारी गई थी. 15 जून 2004 को गुजरात में पुलिस एनकाउंटर में इशरत जहां सहित तीन लोगों को गोली मार दी गई थी. कोर्ट ने बाद में विशेष जांच दल का गठन किया. एसआईटी का नेतृत्व दिल्ली के आईपीएस अधिकारी करनैल सिंह कर रहे हैं और वर्मा के अलावा मोहन झा तीसरे आईपीएस अधिकारी हैं.

वर्मा ने एसआईटी में मतभेद होने की बात भी कही. वहीं नेतृत्व कर रहे करनैल सिंह का कहना था कि एसआईटी के सदस्यों की ताकत को परिभाषित किया जाना चाहिए और साथ ही यह भी बताया जाना चाहिए कि कौन क्या करे. जबकि वर्मा का कहना था कि जांच में नियंत्रित बढ़त हो सकती है या तेजी से हो सकती है. जांच दिल्ली से नियंत्रित नहीं की जा सकती. हर कार्रवाई के लिए पहले से सहमति लेना संभव नहीं है.

24 सितंबर 2010 के दिन हाईकोर्ट ने विशेष जांच दल का गठन किया गया ताकि मुंबई की रहने वाली इशरत जहां और जावेद गुलाम शेख उर्फ प्राणेश कुमार पिल्लई, अमजद अली उर्फ राजकुमार अकबर अली राणा और जिशान जौहर अब्दुल के मारे जाने की जांच की जा सके.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम

संपादनः एमजी

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