ईशनिंदा के आरोप में आसिया बीबी ने पाकिस्तान की जेल में आठ साल बिताए हैं, 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा का कानून बहुत सख्त है.
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पाकिस्तान की जेल में दयनीय हाल में आठ साल तक पल-पल मौत की सजा का इंतजार करने वाली ईशनिंदा की दोषी आसिया बीबी ने जेल और निर्वासन के अनुभव पर एक किताब लिखी है. पाकिस्तान की एक अदालत ने आसिया बीबी को 2010 में मौत की सजा सुनाई थी लेकिन 2018 में नाटकीय तरीके से उन्हें रिहा कर दिया गया था. आसिया अब कनाडा में एक अज्ञात जगह पर रहती हैं. आसिया के साथ जो सलूक हुआ था उसकी पूरी दुनिया में आलोचना हुई थी. आसिया बीबी ने जेल में बिताए दिनों की याद में जो किताब लिखी हैं उसकी सह-लेखिका फ्रेंच पत्रकार ऐन इजाबेल तोले हैं. तोले एक जमाने में पाकिस्तान से रिपोर्टिंग करती थीं और उन्होंने आसिया बीबी के लिए समर्थन अभियान चलाया था.
ऐन इजाबेल तोले एकमात्र पत्रकार हैं जिन्हें कनाडा में आसिया बीबी से मुलाकात करने दिया गया था. किताब "एनफिन लिबरे!" ("आखिरकार आजादी") फ्रेंच भाषा में प्रकाशित हुई और इसका अंग्रेजी संस्करण इसी साल सितंबर में आएगा. आसिया बीबी ने इस किताब में अपनी गिरफ्तारी, जेल के हालात, रिहाई के बाद मिलने वाली राहत और नई जिंदगी में आ रही दिक्कतों के बारे में लिखा, "आप पहले से ही मीडिया के जरिए मेरी कहानी जानते हैं. लेकिन जेल में मेरी रोजाना की जिंदगी या नई जिंदगी के बारे में नहीं जानते हैं." आसिया बीबी किताब में कहती हैं, "मैं कट्टरपन की कैदी बन गई थी." जेल के अनुभवों के बारे में आसिया कहती हैं, "जेल में आंसू ही मेरे साथी थे."
आसिया ने अपनी किताब में पाकिस्तानी जेल की भयावह तस्वीर पेश की है. आसिया को जेल की कोठरी में जंजीरों से बांध कर रखा गया था और साथी कैदी उसका मजाक उड़ाते थे. किताब में आसिया लिखती हैं, "मेरी कलाइयां जलने लगती थीं. सांस लेना मुश्किल हो जाता था. मेरी गर्दन में लोहे की पट्टी बंधी थी जिसे वहां मौजूद जेल का गार्ड नट के जरिए कस सकता था." आसिया किताब में आगे लिखती हैं, "गर्दन और हाथ की जंजीरें एक लंबी चेन से जुड़ी थी, जो गंदी जमीन पर पड़ी रहती थी, चेन को ऐसे खींचा जा सकता था जैसे किसी कुत्ते को खींचा जाता है."
आसिया का दर्द यहीं नहीं खत्म होता है, वह लिखती हैं, "मेरे भीतर गहराई में, एक मंद खौफ मुझे अंधेरे में ले जाता है. एक ऐसा खौफ जो मुझे कभी नहीं छोड़ने वाला है." अन्य कैदी भी आसिया पर रहम नहीं दिखाते थे. वह आगे लिखती हैं, "एक महिला ने रोते हुए कहा, 'मारो' इसने मुझे हैरत में डाल दिया, अन्य महिलाएं भी उसके साथ कहने लगीं, फांसी दो, फांसी दो."
पाकिस्तान में रहने वाले ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय देश में कानूनी और सामाजिक भेदभाव की शिकायत करते रहे हैं. इस लिहाज से ईशनिंदा के आरोप खासतौर से विवादित रहे हैं. मुस्लिम बहुल देश में सिर्फ ईशनिंदा के आरोप लगने पर भीड़ आरोपी को मौत के घाट के उतार सकती है.
आसिया ने अपने ऊपर लगे आरोपों से हमेशा इनकार किया है और अपनी किताब में भी लिखा है कि पाकिस्तान में अब भी ईसाई समुदाय उत्पीड़न का सामना कर रहा है. किताब में आसिया लिखती हैं, "मेरी आजादी के बाद भी ईसाइयों के लिए माहौल नहीं बदला है और ईसाई प्रतिशोध की अपेक्षा करते हैं." अपने नए ठिकाने पर आसिया किताब में लिखती हैं, "इस अनजाने देश में, मैं एक नई मंजिल, शायद नई जिंदगी के लिए तैयार हूं लेकिन किस कीमत पर? मेरा मन उस वक्त टूट गया जब मुझे अपने पिता या परिवार के अन्य सदस्यों को अलविदा कहे बिना देश छोड़ना पड़ा. पाकिस्तान मेरा देश है. मैंने अपने देश से प्यार करती हूं लेकिन मैं हमेशा के लिए निर्वासन में हूं."
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
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पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
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मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
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हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
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न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
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अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. K. Bangash
बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.