ना मीनार है और ना कोई गुंबद. कोई सजावट भी नहीं, जो इस्लामिक प्रार्थना स्थलों पर होती है. बस चोकोर सा एक ढांचा है. लेकिन ग्रीक राजधानी एथेंस में रह रहे मुसलमानों के लिए यह मस्जिद है जो उनके बरसों के संघर्ष का फल है.
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ग्रीक अधिकारियों का कहना है कि राजधानी एथेंस में पहली मस्जिद सितंबर में श्रद्धालुओं के लिए खुल जाएगी. एथेंस में यह 180 सालों में पहली मस्जिद है. इसका निर्माण इस साल सितंबर तक पूरा होने की उम्मीद है और इस पर साढ़े आठ लाख यूरो का खर्च आएगा. यह मस्जिद एक पूर्व औद्योगिक क्षेत्र में बनाई जा रही है.
हालांकि ग्रीस के दूसरे इलाकों में मस्जिदें हैं, लेकिन राजधानी एथेंस 1833 में जब ओटोमान साम्राज्य से मुक्त हुई, तब से वहां कोई औपचारिक मस्जिद नहीं थी. एथेंस में मस्जिद बनाने की बात सबसे पहले 1890 में शुरू हुई. इसके लिए संसद में बिल लाया जाना था, लेकिन ऐसे प्रयास लगातार नाकाम होते गए. इनमें से एक वजह तो 2004 में होने वाले ओलंपिक खेल भी थे. आखिरकार मस्जिद बनाने के बिल को अगस्त 2016 में संसद की मंजूरी मिली और एथेंस के एक पूर्व औद्योगिक इलाके में इसे बनाया जा रहा है.
यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश ये हैं
अमेरिकी थिंकटैंक पियु रिसर्च सेंटर ने यूरोप में मुस्लिम आबादी बढ़ने का अनुमान जताया है. इसके मुताबिक 2050 तक यूरोप की आबादी में 7.5 फीसदी मुसलमान होंगे. एक नजर यूरोप के सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देशों पर.
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फ्रांस (57.2 लाख)
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जर्मनी (49.5 लाख)
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ब्रिटेन (41.3 लाख)
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इटली (28.7 लाख)
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नीदरलैंड्स (12.1 लाख)
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स्पेन (11.8 लाख)
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बेल्जियम (8.7 लाख)
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स्वीडन (8.1 लाख)
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बुल्गारिया (7.9 लाख)
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ग्रीस (6.2 लाख)
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ग्रीस के शिक्षा मंत्री कोस्तास गावरोग्लुओ कहते हैं, "जल्द ही वहां इमाम पहली नमाज कराएंगे. हमें लगता है कि यह काम सितंबर तक संभव हो जाएगा." मस्जिद के निर्माण में कई चीजें बाधा बनीं. इसमें लाल फीताशाही से लेकर वित्तीय संकट, ऑर्थोडॉक्स ईसाईयों की बहुलता, देश में मजबूत हो रहे धुर दक्षिणपंथियों का विरोध और मस्जिद के निर्माण के लिए मंजूरी हासिल करने में देरी तक शामिल हैं. ऐसे में, मुसलमानों को अलग अलग जगहों पर अस्थायी ठिकानों पर नमाज अदा करनी पड़ती थी.
एथेंस में रहने वाले शिया समुदाय के प्रवक्ता आशीर हैदर कहते हैं, "यह किसी सपने के सच होने जैसा है." एथेंस में लगभग दो लाख मुसलमान रहते हैं जिनमें पाकिस्तान, सीरिया, अफगानिस्तान और बांग्लादेश समेत कई देशों से आए लोग शामिल हैं. वैसे ग्रीस की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी दो फीसदी है जिनमें से ज्यादातर लोग देश के उत्तरी हिस्से में रहते हैं. वहां उनकी अपनी मस्जिदें हैं.
मस्जिद बनाने का सबसे ज्यादा विरोध धुर दक्षिणपंथियों की तरफ से हो रहा था. जिस जगह अब मस्जिद बनाई जा रही है, उसके करीब ही एक दीवार पर लिखा है, "इस्लाम को भगाओ." एथेंस के पास मेगारा में रहने वाले मोहम्मद इरफान कहते हैं कि देखने से बिल्कुल नहीं लगता कि वह मस्जिद है. उनके मुताबिक, "यह कतई मस्जिद जैसी नहीं दिखती. लेकिन अहम बात यह है कि यह नमाज पढ़ने की जगह है."
गावरोग्लुओ ने बताया कि एथेंस की मस्जिद किसी की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि यह एक सार्वजनिक स्थल होगी. उन्होंने कहा, "यह किसी एक की नहीं है, बल्कि यह हमारी सबकी है. इसका मालिक कोई व्यक्ति या समुदाय, या समाज या फिर कोई बाहरी देश नहीं है."
मस्जिद का निर्माण अब पूरा होने को है, जिससे मुस्लिम समुदाय ने राहत की सांस ली है. मस्जिद के इमाम जकी मोहम्मद कहते हैं, "शुक्र है अल्लाह का कि आखिरी हमारे पास अब मस्जिद है जहां हम नमाज पढ़ सकते हैं, जमा हो सकते हैं और अलग अलग विषयों पर बात कर सकते हैं."
दक्षिणपंथी लोकलुभावने आंदोलनों के विस्तार ने यह आशंका पैदा कर दी है कि क्या पश्चिमी देशों के लोकतांत्रिक माहौल में इस्लाम का पालन हो सकता है. डीडब्ल्यू ने कुछ आम भ्रांतियों पर नजर डाली है.
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भाषाई एकीकरण कितना सफल?
जर्मनी में पैदा हुए तीन चौथाई मुसलमान पहली भाषा के रूप में जर्मन के साथ बड़े होते हैं. प्रवासियों में केवल 20 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो जर्मन को अपनी पहली भाषा का दर्जा देते हों. पूरे यूरोप में नई पीढ़ी के साथ भाषाई दक्षता बढ़ रही है. इसके बाद भी जर्मनी में 46 फीसदी मुसलमान अपनी राष्ट्रभाषा को ही पहली भाषा बताते हैं. ऑस्ट्रिया में यह आंकड़ा 37 फीसदी और स्विट्जरलैंड में 34 फीसदी है.
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अंतरधार्मिक संबंध को कैसे देखते हैं मुसलमान?
2017 में रिलिजन मॉनीटर की एक स्टडी के मुताबिक 87 फीसदी स्विस मुसलमान खाली समय में दूसरे धर्मों के लोगों से मिलते हैं. जर्मनी और फ्रांस में यह आंकड़ा 78 फीसदी है जबकि ब्रिटेन में 68 और ऑस्ट्रिया में 62 फीसदी. मुसलमानों की एक बड़ी संख्या है जो सामाजिक बेड़ियों के बावजूद गैरमुस्लिमों के साथ लगातार मिलती जुलती और समय बिताती है.
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यूरोप से कितने जुड़े हैं मुसलमान?
फ्रेंच मुसलमानों में 96 फीसदी अपने देश से जुड़ा महसूस करते हैं. इस तरह की भावना रखने वाले मुसलमानों की तादाद जर्मनी में भी लगभग इतनी ही ऊंची है, जबकि स्विट्जरलैंड में ऐसा सोचने वालों की तादाद सबसे ज्यादा 98 फीसदी है. धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए संस्थागत खुलेपन का लंबा इतिहास रखने के बावजूद ब्रिटेन के कम ही मुसलमान (89 फीसदी) यूके के साथ करीबी रिश्ता महसूस करते हैं.
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रोजमर्रा में कितना जरूरी है धर्म?
प्रवासी परिवारों के मुसलमान अपने धर्म के प्रति एक मजबूत समर्पण रखते हैं जो कई पीढ़ियों तक कायम रहती है. ब्रिटेन में रहने वाले 64 फीसदी मुसलमान खुद को बेहद धार्मिक बताते हैं. ऑस्ट्रिया में ऐसे मुसलमानों की तादाद 42 फीसदी, जर्मनी में 39 फीसदी, फ्रांस में 33 फीसदी और स्विट्जरलैंड में 26 फीसदी है.
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कितने फीसदी मुसलमान डिग्री लेते हैं?
आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में पैदा हुए 36 फीसदी मुसलमान 17 साल की उम्र तक पढ़ाई खत्म कर लेते हैं और आगे पढ़ाई नहीं करते. ऑस्ट्रिया में यह तादाद करीब 39 फीसदी है. दूसरी तरफ, ज्यादा निष्पक्ष स्कूली व्यवस्था के दम पर फ्रांस में मुसलमान ज्यादा पढ़ाई करते हैं. फ्रांस में 17 साल की उम्र के मुसलमानों में 10 में से एक ही पढ़ाई छोड़ता है.
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नौकरी के बाजार में कहां हैं मुसलमान?
2010 से पहले जर्मनी आने वाले 60 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों के पास पक्की नौकरी थी. यह आंकड़ा गैरमुस्लिमों के लिए भी इतना ही था. जर्मनी में मुसलमानों के रोजगार के आंकड़े दूसरे यूरोपीय देशों की तुलना में बेहतर हैं. फ्रांस में 14 फीसदी मुसलमान बेरोजगार हैं जो गैर मुस्लिमों की 8 फीसदी तुलना में बहुत ज्यादा है.
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कितने लोग इस्लाम को खारिज करते हैं?
ऑस्ट्रिया में रहने वाले हर चार गैरमुस्लिम में से एक व्यक्ति मुसलमान पड़ोसी नहीं चाहता. यह आंकड़ा यूके में भी करीब 21 फीसदी है. जर्मनी में 19 फीसदी गैरमुस्लिम कहते हैं कि वो मुसलमान पड़ोसियों का स्वागत नहीं करेंगे. स्विट्जरलैंड में यह तादाद 17 और फ्रांस में 14 फीसदी है. कुल मिला कर मुस्लिम सबसे ज्यादा खारिज किये जाने वाला सामाजिक गुट है.
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रचे बसे लेकिन यूरोप में स्वीकार्य नहीं
यह सारी जानकारी बेर्सटेल्स मान फाउंडेशन की स्टडी से ली गई है जिसका शीर्षक है 'यूरोप में मुसलमान - रचे बसे लेकिन स्वीकार्य नहीं?'. इसके नतीजे जर्मनी, यूरोप, ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड, फ्रांस और यूके में 10,000 लोगों पर हुए एक सर्वेक्षण से लिये गये हैं. 2010 के बाद यूरोप में आये मुस्लिम शरणार्थियों को इस सर्वे में शामिल नहीं किया गया.