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समाज

आखिर कहां गायब हो रहे हैं पूर्वोत्तर के लोग

प्रभाकर मणि तिवारी
२६ नवम्बर २०१९

पूर्वोत्तर राज्यों में लोग तेजी से गायब हो रहे हैं. केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 से 2017 के बीच यानी महज तीन साल में इलाके के आठ राज्यों के लगभग 28 हजार लोग लापता हो गए.

Wahlen in Indien
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

लापता हुए लोगों में महिलाओं व बच्चों की तादाद ही ज्यादा है. इस दौरान अकेले असम से ही 19 हजार से ज्यादा लोग गायब हुए. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने हाल में संसद में यह आंकड़ा पेश किया था. लेकिन गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि गायब होने वाले लोगों की असली तादाद कहीं ज्यादा है. इन संगठनों का कहना है कि खासकर बच्चों व महिलाओं के लापता होने में इलाके में सक्रिय मानव तस्कर गिरोहों का हाथ है. विडंबना यह है कि सरकार के पास वर्ष 2018 और 2019 के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. खुद मंत्री ने संसद में यह बात स्वीकार की है.

गुमशुदा लोगों की बढ़ती तादाद

पूर्वोत्तर में साल-दर-साल लापता होने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है. ऐसे लोगों के राज्यवार आंकड़े संसद में पेश करने के बावजूद सरकार इसकी वजहें गिनाने में नाकाम रही है. गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि वर्ष 2015 से 2017 के बीच 27,967 लोगों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज हुई है. इनमें से 19,344 लोग अकेले असम के ही हैं.

केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि इस दौरान 5,130 बच्चों को तलाशने में भी कामयाबी मिली है. मंत्री का कहना था, "इस दौरान त्रिपुरा से 4,455, मेघालय से 1385, मणिपुर से 999, सिक्किम से 974, अरुणाचल प्रदेश से 457, नागालैंड से 343 और मिजोरम से 10 लोग लापता हुए हैं. लेकिन वर्ष 2018 और 2019 की जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है.” असम से लापता होने वालों में बच्चे और महिलाएं ज्यादा हैं. साल 2015 में इस राज्य से 2,169 बच्चे, 2,613 महिलाएं और 1,528 पुरुषों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई. इसके अगले साल यानी 2016 में 2,413 बच्चे, 3,439 महिलाएं और 2,130 पुरुष लापता हुए. वर्ष 2017 में 1,651 बच्चे, 2,453 महिलाएं और 948 पुरुषों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज हुई थी.

इस मामले में मिजोरम को सबसे सुरक्षित माना गया. यहां साल 2017 में सिर्फ एक बच्चे के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई. जबकि 2016 में यहां ऐसा एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ. इसी तरह वर्ष 2015 में महज तीन बच्चों, एक महिला और सिर्फ पांच पुरुषों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई.

कितने होते हैं बरामद

असम में लोगों के लापता होने की समस्या बहुत पुरानी और गंभीर है. राज्य सरकार के आंकड़ों की बात करें तो यहां हर साल लापता होने वाले लोगों में से पुलिस आधे को भी तलाश नहीं कर पाती. राज्य में हालांकि जिलावार आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन पुलिस और जांच एजेंसियों का कहना है कि नलबाड़ी, मोरीगांव, नगांव और कामरूप जिलों से ऐसे सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. इन जिलों से हर महीने औसतन 10 युवतियों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है.

बीते कुछ वर्षों के दौरान इन जिलों से लापता होने वाली युवतियों की तादाद हजारों में हैं. इनमें से कुछ को देश के विभिन्न वेश्यालयों से बरामद किया गया है. लेकिन यह तादाद गायब होने वाली युवतियों की तादाद के मुकाबले बेहद मामूली है. एक पुलिस अधिकारी बताते हैं, "युवतियों के लापता होने की कई अन्य वजहें भी हैं. कई युवतियों के माता-पिता लड़की के अपने प्रेमी के साथ घर से भाग जाने के बाद उनके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं.”

दूसरी ओर, गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि लापता होने वाली महिलाओं और बच्चों की तादाद कहीं ज्यादा है. इलाके में सक्रिय मानव तस्करी करने वाले गिरोह बेहतर जीवन और नौकरी का लालच देकर उनको साथ ले जाते हैं. उसके बाद ऐसी ज्यादातर महिलाएं यौन व्यापार में धकेल दी जाती हैं. इसी तरह लापता होने वाले बच्चे देश के किसी शहर में होटलों व ढाबों में या घरेलू नौकर के तौर पर काम करने लगते हैं. इन संगठनों का कहना है कि इलाके के खासकर पिछड़े जिलों में मानव तस्कर गिरोहों की सक्रियता हाल के वर्षों में बढ़ी है. इसका लापता होने वाले लोगों की तादाद से सीधा संबंध है.

जबरन देह व्यापार में धकेला जाना

एक सामाजिक संगठन के संयोजक राजीव शर्मा बताते हैं, "देश के विभिन्न वेश्यालयों से हाल में बरामद युवतियों ने बताया था कि मानव तस्करों ने उनको बेहतर नौकरी का लालच दिया था. लेकिन इलाके से बाहर जाते ही उनको देह के सौदागरों के हाथों बेच दिया गया. शर्मा बताते हैं कि गरीबी और रोजगार की कमी ही लोगों के लापता होने की सबसे बड़ी वजह है.” असम-बंगाल सीमा पर मानव तस्करी रोकने की दिशा में काम करने वाले एक अन्य संगठन के महासचिव सुमित कुमार दास बताते हैं, "मानव तस्कर पूर्वोत्तर के सबसे पिछड़े इलाके के लोगों की गरीबी का फायदा उठा कर उनको बेहतर जीवन के रंगीन सपने दिखा कर अपने साथ दिल्ली या कोलकाता ले जाते हैं. वहां कुछ महिलाओं और बच्चों को शुरुआत में भले ही घरों और होटलों में काम मिलता हो, ज्यादातर महिलाओं को देर-सबेर देह व्यापार में धकेल दिया जाता है.”

इन संगठनों का दावा है कि इलाके में जिन घरों से लोग गायब होते हैं उनके परिजन डर के मारे पुलिस में रिपार्ट भी दर्ज नहीं कराते. इन तमाम मामलों को ध्यान में रखा जाए तो तस्वीर और भयावह नजर आएगी. शर्मा कहते हैं कि इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाना जरूरी है. इसके साथ ही सरकार को नौकरी के लिए बाहर जाने वाली इन महिलाओं या पुरुषों का रिकार्ड रखना होगा. पंचायतों के जरिए यह काम किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है. सुमिता दास कहते हैं, "सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा. तमाम सरकारें और राजनीतिक दल इस मामले में उदासीन हैं. ऐसे में इस समस्या के और गंभीर होने का अंदेशा है.”

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