गर्भवती एक्टिविस्ट की हिरासत का हो रहा है विरोध
१२ मई २०२०हो सकता है 27 साल की सफूरा जरगर इस बात के लिए तैयार जरूर होंगी कि एक्टिविस्ट होने के नाते उनका पुलिस से सामना तो होता रहेगा. लेकिन पुलिस उन्हें आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले एक कानून के तहत आरोप लगा कर देश के सबसे ज्यादा भीड़ भाड़ वाली जेल में बंद कर देगी, वो भी एक वैश्विक महामारी के बीच में और ऐसे समय में जब वो गर्भवती हों, इसकी शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी.
लेकिन सफूरा जरगर के साथ इस समय यही हो रहा है. सफूरा दिल्ली के प्रतिष्ठित जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा हैं. छात्रों के समूह जामिया कोआर्डिनेशन समिति की सदस्य होने के नाते वो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में शामिल थीं और उन्होंने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. लेकिन दिल्ली पुलिस मानती है कि सफूरा का फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों को भड़काने में हाथ था.
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने सफूरा को दंगों के पीछे साजिश में शामिल होने के आरोप में 11 अप्रैल को गिरफ्तार किया था. उनकी जमानत याचिका नामंजूर होने के बाद 21 अप्रैल को उनके खिलाफ गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत आरोप लगा दिए गए. यूएपीए एक बेहद सख्त कानून है और इसे आतंकवाद और देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया है.
रिहाई की मांग
इसके तहत आरोपी को कम से कम सात साल की जेल हो सकती है. इस कानून के इतिहास में अभी तक जिन लोगों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया गया है उनमें शामिल हैं पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैय्यबा का मुखिया हाफिज सईद, उसका साथी जकी-उर-रहमान लखवी और अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम.
सफूरा इसी कानून के तहत आरोपों का सामना कर रही हैं और वो भी ऐसे समय में जब वो चार महीने की गर्भवती हैं. जाहिर है, उन्हें लेकर उनके परिवार के अलावा समाज में भी कई लोग चिंतित हैं. जामिया और जेएनयू विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के संगठनों ने और कई कई जाने माने स्कॉलरों और एक्टिविस्टों ने सफूरा और जामिया के ही एक और छात्र मीरान हैदर की गिरफ्तारी का विरोध किया है और उन्हें रिहा करने की मांग की है.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी ने भी दोनों की गिरफ्तारी का विरोध किया है और विशेष रूप से सफूरा के बारे में कहा है कि उनका गर्भवती होना उनकी हिरासत के जारी रहने के खिलाफ पर्याप्त कारण है. एमनेस्टी का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार भी गर्भवती महिलाओं के लिए सुनवाई शुरू होने से पहले गिरफ्तारी की जगह दूसरे विकल्प तलाशने चाहिए.
बंदी महिलाओं के हालात
भारतीय जेल व्यवस्था बंदियों के साथ बर्ताव के मामले में वैसे भी बदनाम है, लेकिन महिला कैदियों की दशा विशेष रूप से चिंताजनक है. जून 2018 में केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्रालय ने "जेलों में महिलाएं (भारत)" नाम से एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें भारतीय जेलों में महिला कैदियों के हालात के बारे में विस्तार से बताया गया था. रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में भारतीय जेलों में 17,834 महिला कैदी थीं और इनमें से 66.8 प्रतिशत अंडरट्रायल थीं.
इनमें से सिर्फ 17 प्रतिशत महिलाएं सिर्फ महिलाओं के लिए बनी जेलों में थीं. इसके अलावा इन जेलों में महिला कर्मचारियों की भारी कमी थी. शौचालय और बाथरूम भी पर्याप्त संख्या में नहीं थे, पानी की आपूर्ति भी पर्याप्त नहीं थी और माहवारी से संबंधित उत्पाद जैसे सेनेटरी नैपकिन इत्यादि भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे. कपड़े और अंतर्वस्त्रों की भी कमी थी और इन्हें नियमित धोने का भी प्रबंध नहीं था.
महिला चिकित्साकर्मियों और चिकित्सा के इंतजाम की भी कमी थी. विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और नई माओं के लिए पौष्टिक खाना एक चिंता का विषय था. रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि जेलों में महिलाओं को शारीरिक और यौन हिंसा से बचाने के लिए इंतजामों का भी अभाव था. जानकारों का अनुमान है कि हालात कमोबेश अभी भी ऐसे ही हैं. महामारी की वजह से स्थिति और चिंताजनक हो गई है. जेलों में महामारी के फैलने को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं.
मुंबई की दो बड़ी जेलों में कुल मिलाकर 78 कैदियों और 26 कर्मचारियों को कोविड-19 संक्रमण हो चुका है. दिल्ली की तिहाड़ जेल में, जहां सफूरा जरगर कैद हैं, इस समय कम से कम तीन कैदियों को संक्रमित होने के शक की वजह से क्वारंटाइन किया गया है. इन हालात को देखकर ही सफूरा के परिवार वाले और मानवाधिकार एक्टिविस्ट उनकी रिहाई की अपील कर रहे हैं.
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