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आम नागरिक भी भारतीय सेना में देंगे ड्यूटी!

चारु कार्तिकेय
१४ मई २०२०

भारतीय सेना आम नागरिकों को तीन साल के लिए भर्ती करने के एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है. क्या ये सेना और सेना के प्रति आकर्षण रखने वाले आम नागरिकों, दोनों के लिए लाभकारी है?

Indien Tag der Republik
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

भारतीय सेना आम नागरिकों को तीन साल के लिए भर्ती करने के जिस प्रस्ताव पर विचार कर रही है उसे लेकर कई तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. इतना तय है कि अगर यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो ये भारतीय सेना के लिए एक नया प्रयोग होगा. प्रस्ताव ये है कि तीन साल के लिए पेशेवर काम करने वाले युवाओं समेत युवा और तंदरुस्त नागरिकों को वॉलंटरी आधार पर तीन साल के लिए भारतीय सेना से जुड़ने का मौका दिया जाए.

सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने मीडिया को बताया कि इस "टूर ऑफ ड्यूटी" या "तीन साल की शॉर्ट सर्विस" योजना की शुरुआत के लिए 100 अफसर और 1,000 दूसरे रैंकों पर लोगों को भर्ती करने पर विचार किया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि चयन के मानदंडों को बिल्कुल भी ढीला नहीं किया जाएगा और जो सेना में भर्ती होने के काबिल पाए जाएंगे उन्हें ही भर्ती किया जाएगा. लेकिन आखिरकार 12 लाख फौजियों की संख्या वाली भारतीय सेना आम नागरिकों को शॉर्ट सर्विस के लिए क्यों लेना चाह रही है?

इस बारे में जानकारों की राय अलग अलग है. कुछ लोग अटकलें लगा रहे हैं कि ये कदम देश में बेरोजगारी के स्तर को देखते हुए उठाया गया है. लेकिन देश में बेरोजगारों की संख्या करोड़ों में हैं और सेना में सिर्फ 1,100 को भर्ती करने की बात हो रही है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इस समय देश में राष्ट्रभक्ति के जज्बे की एक लहर है और ऐसे में सेना उन लोगों को उससे जुड़ने का एक मौका देना चाहती है जो सेना की संस्कृति की तरफ आकर्षण महसूस करते हैं.

तस्वीर: Mohsin Javed

दो-ढाई हजार खाली पद

कुछ का यह भी कहना है कि ये कदम सेना और आम नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ाने और आम लोगों में सेना के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है. भारतीय सेना से सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल उत्पल भट्टाचार्य ने डीडब्ल्यू को बताया कि ये प्रस्ताव सेना में अधिकारी स्तर पर अफसरों की कमी को पूरा करने के लिए दिया गया है. उन्होंने बताया कि सेना में 40,000 अफसर होने चाहिए लेकिन हैं सिर्फ 37,500, यानी जूनियर रैंक अफसरों में दो-ढाई हजार पद खाली पड़े हुए हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि आजकल युद्ध की जगह कम तीव्रता वाले संघर्ष ज्यादा होते हैं और उनमें इन जूनियर अफसरों की काफी अहम भूमिका होती है. लेफ्टिनेंट जनरल उत्पल भट्टाचार्य के अनुसार सेना को इन जूनियर अधिकारियों की रैंक पर ऐसी लोगों को भर्ती करने की जरूरत है जो युवा हों, तंदुरुस्त हों और जिनमें सेना में शामिल हो कर देश की सेवा करने का जज्बा हो. कुछ जानकारों ने यह भी अनुमान लगाया है कि इस तरह की कम अवधि की भर्तियां करने से सेना के खर्च में भी भारी बचत होगी.

एक अनुमान के अनुसार सेना अभी 10 साल और 14 साल के शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत जिन लोगों को भर्ती करती है, उनके प्रशिक्षण, वेतन और दूसरे खर्चे मिला कर सेना को प्रति अफसर प्रति वर्ष 45 लाख से 50 लाख तक खर्च उठाना पड़ता है. अगर ये भर्तियां सिर्फ तीन साल के लिए होंगी तो इन अधिकारियों की पेंशन, ग्रैच्युटी इत्यादि पर खर्च नहीं करना पड़ेगा और प्रति अफसर खर्च गिर कर 25 से 30 लाख के बीच आ जाएगा.

इससे सेना 1,100 सैनिकों पर 11,000 करोड़ रुपये बचा पाएगी जिनका इस्तेमाल सेना की दूसरी जरूरतें पूरी करने के लिए किया जा सकेगा. ये उन युवाओं के लिए भी लाभकारी होगा जो बेरोजगार हैं, क्योंकि सेना के तजुर्बे की वजह से उन्हें सरकारी और कॉर्पोरेट नौकरियों में भी प्राथमिकता मिल सकती है. हालांकि अभी यह सब अटकलें हैं क्योंकि सेना ने आधिकारिक रूप से इतने विस्तार से इस प्रस्ताव के बारे में जानकारी नहीं दी है. संभव है कि आने वाले दिनों में सेना और जानकारी देगी.

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