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राफाल विवाद में वायु सेना इंतजार में

१४ सितम्बर २०१८

फ्रांस की कंपनी दासो से भारत की वायु सेना के लिए लड़ाकू विमानों का सौदा अब विवादों में है. मोदी सरकार ने इसे सरकारों के बीच समझौते के रूप में आगे बढ़ाया लेकिन विवाद फिर भी हो गया.

Kampflugzeug zum Typ Rafale
तस्वीर: picture-alliance/dpa/epa AFP

मौजूदा विवाद विमान को खरीदने के तौर तरीकों पर उठा है. भारत सरकार ने एक जांचे परखे विमान के पुराने सौदे को खारिज कर उसी विमान को खरीदने के लिए नया सौदा किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस सौदे को बड़ी कामयाबी बताती है.

दासो कंपनी के साथ 128 राफाल लड़ाकू विमानों की खरीद के पुराने सौदे को रद्द कर 36 विमानों का नया सौदा किया गया और यह सौदा कंपनी से ना हो कर सीधे भारत और फ्रांस की सरकार के बीच हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने पेरिस में इसकी संयुक्त रूप से घोषणा की.

तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar

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भारत सरकार के मुताबिक राफाल सौदे में किसी बिचौलिए की कोई भूमिका नहीं थी. सरकार ने यह भी कहा कि यह सौदा जल्दी अमल में आएगा और वायु सेना को कम समय में जहाज मिलने लगेंगे. सरकार ने इस सौदे पर दस्तखत करने में 17 महीने लगाए और तय हुआ कि तीन साल बाद पहला जहाज भारत पहुंचेगा.

हिसाब लगाएं तो यह वक्त 2019 के सितंबर में आएगा. नया सौदा ना सिर्फ जल्दबाजी में किया गया बल्कि कथित रूप से इस पर जल्दी से काम भी हुआ, तो भी उसमें साढ़े चार साल लगेंगे. ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि इससे जल्दी तो पुराने सौदे से ही जहाज पहुंच जाते. लेकिन नए सौदे पर सवाल सिर्फ इसी वजह से नहीं है.

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मौजूदा सरकार में विदेश राज्य मंत्री और वरिष्ठ पत्रकार एम जे अकबर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिख कर बताया है कि कांग्रेस पार्टी और पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से लगाए जा रहे "आरोप गलत" हैं.

एमजे अकबर ने लेख में लिखा है कि कांग्रेस सरकार ने जिन लड़ाकू विमानों का सौदा किया था उनमें हथियार और भारत के लिए खासतौर से जोड़ी गई खूबियां शामिल नहीं थीं. अगर इन खूबियों को और हथियारों के साथ ही मुद्रा विनिमय की दरों और महंगाई के कारण हुए कीमतों में बदलाव को शामिल किया जाए तो विमान की कीमत मौजूदा कीमत से करीब 20 फीसदी ज्यादा होती.

अब यहां दो सवाल उठते हैं, पहला यह कि बिना हथियारों और बिना भारत संबंधी विशेषताओँ के इन लड़ाकू विमानों को यूपीए सरकार खरीदने ही क्यों जा रही थी या फिर भारतीय वायु सेना के पास ऐसी तकनीक और हथियार मौजूद थे कि वो जहाजों में उन्हें फिट कर काम चला लेती?

वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ और सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक सी उदयभास्कर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह सोचना गलत है कि यूपीए सरकार ने हथियारों या दूसरी चीजों के बगैर जहाज खरीदने का सौदा किया था. कोई भी जहाज इस तरह से नहीं खरीदता. हां ये हो सकता है कि समय के साथ उन्हें और उन्नत किया गया हो क्योंकि इस वक्त हथियारों और विमानों के निगरानी तंत्र के साथ ही रडार सिस्टम को बेहतर बनाने पर काफी काम हो रहा है."

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दूसरा सवाल यह कि पुराना सौदा रद्द होने और नया सौदा करने के बीच मोदी सरकार को कब यह समय मिला कि उसने उन हथियारों और खूबियों का परीक्षण कर लिया जिनके साथ लैस हो कर अब लड़ाकू विमान आएंगे. या फिर इन नए हथियारों और खूबियों को विमानों में परीक्षण किए बगैर ही शामिल कर लिया गया. आखिर इन खूबियों और हथियारों की मंजूरी तो वायुसेना के परीक्षणों के बाद ही मिलती.

उदयभास्कर कहते हैं, "जब जहाजों का परीक्षण हुआ होगा तभी इनके परीक्षण कर लिए गए होंगे या फिर हथियारों का परीक्षण अलग से भी होता रहता है, हर छोटी छोटी चीज का वास्तविक परीक्षण जरूरी नहीं है, आज कल कंप्यूटर से भी बहुत कुछ परख लिया जाता है और वो नियमित रूप से हो रहे हैं."

यह सारी आशंकाएं शायद मनगढंत हैं क्योंकि भारत सरकार ने कहा है कि नए सौदे में विमान नहीं बदले गए हैं यानी वही विमान और खूबियां हैं जिनका भारतीय वायु सेना ने परीक्षण करने के बाद मंजूरी दी है तो फिर सवाल उठता है कि कीमतों में इतना फर्क क्यों?

भारत सरकार का यह भी कहना है कि सुरक्षा कारणों और फ्रांस के साथ हुए समझौते की वजह से उसके लिए पूरी जानकारी देना संभव नहीं. बकौल राहुल गांधी फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने उनसे निजी बातचीत में गोपनीयता जैसी किसी शर्त के होने से इनकार किया है. तो फिर भारत की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन आखिर किन शर्तों से बंधी हैं? विमान की तकनीकी खूबियों या फिर मारक क्षमता की जानकारी को सार्वजनिक करने में हिचकिचाहट समझी जा सकती है लेकिन उसकी कीमतों पर रहस्य बना कर रखने के पीछे क्या वजह हो सकती है?

तस्वीर: picture-alliance/dpa/Yoan Valat

चलिए थोड़ा पीछे जाते हैं, एक सवाल यह भी है कि आखिर पिछले सौदे को रद्द क्यों किया गया? उस सौदे में 126 विमान खरीदे जाने थे जिनमें से 18 विमान पूरी तरह से तैयार हो कर भारत आते जबकि बाकी के 108 विमानों को भारत में दासो के सहयोग से बनाया जाता. भारत सरकार की बहुचर्चित मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट को इससे खूब बढ़ावा मिलता, सरकार को भी यश और सम्मान मिलता. अर्थव्यवस्था से लेकर तकनीक तक में भारत का फायदा ही फायदा था तो फिर इस सौदे को रद्द क्यों कर दिया गया?

भारत सरकार ने बताया कि रक्षा नीति पर विचार के दौरान पता चला कि यह सौदा बहुत खर्चीला है. इसके साथ ही सरकार के मुताबिक दासो ने कहा कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल्स लिमिटेड के भरोसे इन विमानों को भारत में तैयार नहीं किया जा सकता. साफ है कि दासो कंपनी भारत के साथ तकनीक को बांटने के लिए तैयार नहीं थी. तो क्या पुराने सौदे को रद्द करने की भी यही वजह थी. अब तक भारत सरकार ने इस बारे में साफ शब्दों में कुछ नहीं कहा.

पुराने सौदे पर 2012 में बातचीत शुरू हुई, 2014 में यूपीए सरकार का पतन हो गया, फिर एनडीए सरकार ने बातचीत आगे बढ़ाई और करीब डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी सौदा किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा. तो क्या यह माना जाए कि इस सौदे में कोई ऐसा पेंच था जिसकी वजह से साढ़े तीन साल तक कोशिश करने के बाद भी यह अंजाम तक नहीं पहुंच सका. सौदा रद्द करने की वजह कहीं यह तो नहीं थी? भारत सरकार जितनी दिलचस्पी से यह बता रही है कि नया सौदा क्यों किया गया उसका एक छोटा सा हिस्सा अगर यह बताने में दिखाती कि पुराना सौदा क्यों रद्द किया गया तो शायद इसका जवाब मिल सकता था.

तस्वीर: picture alliance / abaca

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इस सौदे की कहानी शुरू होती है 2001 से जब देश में एनडीए की सरकार थी और रक्षा मंत्री थे जॉर्ज फर्नांडिस. वायुसेना ने विमानों की कमी का मसला उठाया और बात चली कि फ्रांस से जगुआर और मिराज विमानों का पूरा लश्कर तैयार कर लिया जाए. बड़ा ऑर्डर दे कर उनसे विमान भारत में ही तैयार कराने का सौदा हो. तब जॉर्ज फर्नांडिस ने कहा कि इस तरह किसी एक कंपनी से विमान खरीदने पर सवाल उठेंगे और भ्रष्टाचार की बात उठेगी इसलिए सभी इच्छुक कंपनियों को बुला कर पहले विमानों को परखा जाए और फिर खरीदने का फैसला हो. 2007 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने इसी प्रक्रिया के तहत विमानों की खरीद का काम आगे बढ़ाया.

सारे सवालों के बीच एक सच्चाई यह है कि भारत की वायु सेना 18 साल से विमानों का इंतजार कर रही है और उसके लश्कर से जहाज लगातार कम होते जा रहे हैं. वायु सेना को पूरे देश की सुरक्षा के लिए लड़ाकू विमानों के कम से कम 42 स्क्वॉड्रन की जरूरत है और फिलहाल उसके पास महज 31 स्क्वॉड्रन ही कार्यरत हैं. वायुसेना प्रमुख ने विवाद उठने के बाद कहा है कि परिस्थितियां कभी भी बहुत तेजी से बदल सकती हैं और हमें इसके लिए खुद को तैयार रखना होगा. इसके साथ ही राफाल को एक अच्छा विमान बताते हुए वायु सेना के लिए उपयोगी भी कहा.

क्या होगा राफाल डील का?

सरकारी प्रक्रिया, भ्रष्टाचार, राजनीति में फंसे तंत्र के लिए सारे जवाब ढूंढना आसान नहीं है लेकिन इनके बगैर काम चलाना भी बेहद मुश्किल है. सेना को साजोसामान चाहिए और इसके लिए एक तेज, पारदर्शी और भरोसेमंद प्रक्रिया की जरूरत शायद इस वक्त सबसे ज्यादा है. तमाम उठापटक और विवादों के बीच भारतीय वायु सेना को बेसब्री से विमानों का इंतजार है. वायु सेना उसके लिए जरूरी तकनीकी दक्षता हासिल करने के साथ ही रखरखाव का बेहतर इंतजाम करने में भी जुटी है, तो क्या उसे जहाज तय समय पर मिलेंगे? 

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