यूक्रेन में अधिकारियों ने घोषणा की है कि चेर्नोबिल इलाके में लगी आग पर अब काबू पा लिया गया है. एक सप्ताह पहले लगी आग 3,500 हेक्टेयर में फैल गई थी.
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यूक्रेन के चेर्नोबिल में एक सप्ताह से भी ज्यादा से चल रही जंगली आग का प्रकोप अब थमता नजर आ रहा है. अधिकारियों ने मंगलवार 14 अप्रैल को घोषणा की है कि उस इलाके में अब आग जलते रहने का कोई भी बड़ा प्रकरण नहीं है. यूक्रेन की स्टेट इमरजेंसी सर्विस ने एक स्टेटमेंट में कहा, "अब कहीं पर भी खुले में आग नहीं जल रही है. जंगल की जमीन थोड़ी सी सुलग रही है." स्टेटमेंट में यह भी बताया गया कि उस इलाके में आग बुझाने के काम में 400 से भी ज्यादा दमकलकर्मी लगे थे. हाल में हुई बारिश ने भी उनकी मदद की.
पर्यावरण विशेषज्ञों को डर था कि आग की वजह से वहां जमीन पर पड़ी रेडियोएक्टिव राख उड़ने ना लगे. अगर ऐसा हो जाता तो वहां से एक किस्म का हानिकारक धुंआ उड़ कर राजधानी कीव पहुंच जाता. 1986 में चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में रिएक्टर दुर्घटना हुई थी और विस्फोट हुआ था, जिसे इतिहास का सबसे बड़ी न्यूक्लियर आपदा माना जाता है. यह स्थान कीव से उत्तर की ओर 100 किलोमीटर दूर है. स्टेट इमरजेंसी सर्विस के स्टेटमेंट के अनुसार सरकारी संस्थाओं ने आश्वासन दिया है कि कीव में रेडिएशन का स्तर सामान्य बैकग्राउंड स्तर से ऊपर नहीं गया."
वरिष्ठ पर्यावरण अधिकारी एगोर फिरसोव ने एक सप्ताह से भी पहले ही कहा था कि चेर्नोबिल इलाके में रेडिएशन का स्तर साधारण बैकग्राउंड लेवल से 16 गुना ज्यादा पाया गया. यह तब की बात है जब आग शुरू ही हुई थी. इलाके मुख्य रूप से खाली ही हैं और वहां फायरमेन 10 दिनों से भी ज्यादा से आग पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं. हाल के दिनों में हवाएं तेज हो गई थीं जिससे उनका काम मुश्किल हो गया था.
सरकार ने विस्तार से नहीं बताया है कि आग की फिलहाल क्या स्थिति है. वीकेंड पर अधिकारियों ने कुछ आंकड़े दिए थे लेकिन वो कुछ दिन पुराने थे. उनमें कहा गया था आग कुल 3,500 हेक्टेयर में फैल गई थी. अधिकारियों का कहना था कि ये आग मौसम में आए सूखेपन की वजह से लगी थी. इस बार सर्दियों में भी पर्याप्त बर्फबारी नहीं हुई थी. पिछले सप्ताह अधिकारियों को कम से कम दो ऐसे व्यक्तियों का पता चला था जिनकी वजह से दो जगह आग लगी थी. एक ने सूखी घास को बस मस्ती करने के लिए जलाया था लेकिन वो आग फिर हवा की वजह से फैल गई और उसके काबू से बाहर हो गई.
दूसरे ने कचरा जलाया था लेकिन उससे सूखी घास में आग लग गई और वो आग भी फैल गई. यहां इस तरह की आग अकसर लग जाती है. बसंत की शुरुआत में सूखी घास को जलाना यूक्रेन, रूस और कुछ और पूर्ववर्ती सोवियत देशों में एक आम चलन है.
जलवायु परिवर्तन से समुद्र तेजी से गर्म होते जा रहे हैं. इनका सिर्फ समुद्री जीवन पर ही बुरा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसका मतलब भविष्य में मौसम में और तेज परिवर्तन, समुद्री तूफान का आना और जंगलों में आग लगना होगा.
तस्वीर: NGDC
दक्षिणी ध्रुव पर कैलिफोर्निया
अंटार्कटिका पर तैनात वैज्ञानिकों ने वहां का तापमान मापा तो लॉस एंजेलेस के बराबर निकला. फरवरी में रिकॉर्ड 18.3 डिग्री तापमान और वह भी उत्तरी अंटार्कटिक में अर्जेंटीना के रिसर्च स्टेशन पर. नासा के अनुसार यह वहां अब तक का सबसे ज्यादा तापमान था.
तस्वीर: Earth Observatory/ NASA
नियमित रूप से आता तूफान
समुद्रों के गर्म होने से ट्रॉपिकल तूफानों की तादाद बढ़ रही है. हरिकेन या टायफून का सीजन लंबा होने लगेगा और खासकर उत्तरी अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत में उनकी संख्या भी बढ़ेगी. मौसम बदलने का असर भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाने वाले तूफान के रूप में सामने आएगा.
तस्वीर: AFP/Rammb/Noaa/Ho
समुद्र का बढ़ता जलस्तर
धरती के वातावरण में तापमान बढ़ता है तो सागर भी गर्म होने लगते हैं. इसका नतीजा पानी के बढ़ने के रूप में दिखता है. पानी बढ़ेगा तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और बाढ़ आएगी या समुद्र तट पर स्थित इलाके डूबने लगेंगे.
पानी की सतह के गर्म होने से उसका वाष्पीकरण होगा और बरसात के बाद बाढ़ आएगी. कुछ इलाके डूब जाएंगे तो दूसरे इलाकों में सूखा पड़ेगा. नतीजा होगा फसल का न होना या जगलों में आग लगने से उसका नष्ट होना. भविष्य में आग का मौसम लंबा खिंचेगा और जंगलों पर खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
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इकोसिस्टम में बदलाव
गर्म सागर का मतलब होगा समुद्री जीव अपने पुराने घरों से भागने लगेंगे और आखिर में सारा समुद्रूी जलजीवन ठंडे इलाकों में चला जाएगा. मछलियां और समुद्री जानवर समतल से ध्रुवीय इलाकों की ओर चले जाएंगे. उत्तरी सागर में तो मछली का भंडार पहले से ही सिकुड़ने लगा है.
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समुद्रों का अम्लीकरण
गर्मी की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड पानी में घुल जाता है, समुद्री पानी का पीएच वैल्यू बढ़ जाता है और पानी का अम्लीकरण हो जाता है. पानी में अम्ल की मात्रा बढ़ने से स्टारफिश, शीप, कोरल और झींगों का बढ़ना रुक जाता है. नतीजा ये होगा कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा.
चारे की कमी
कार्बन डाय ऑक्साइड के समुद्री पानी में घुलने से पीएच वेल्यू घटेगी तो छोटे अल्गी आयरन को सोख नहीं पाते. अल्गी यदि आइरन को नहीं सोखेंगे तो उनका विकास नहीं होगा और समुद्री जीवों को चारा नहीं मिलेगा. इस तरह वे भी पानी के अम्लीकरण से प्रभावित होंगे.
तस्वीर: picture alliance / dpa
ऑक्सीजन की कमी
गर्म पानी कम ऑक्सीजन का संग्रह करते हैं. इस तरह गर्म होते समुद्र का मतलब ये भी है कि ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वाले इलाके कम होते जाएंगे. बहुत सी नदियों, झीलों और तालाबों में अभी ही कम ऑक्सीजन वाले मौत के कुएं मौजूद हैं. यहां कम ऑक्सीजन के कारण जीवों का रहना मुश्किल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Schmidt
अल्गी का बढ़ना
गर्म और कम ऑक्सीजन वाले पानी में जहरीले अल्गी तेजी से बढ़ते हैं. उनका जहर मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों को मार डालता है. पानी पर अल्गी या शैवाल के कालीन बहुत सारी जगहों पर मछली उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहीं चिली के तट की एक तस्वीर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Marquez
सफेद कोरल का कंकाल
पानी के गर्म होने से समुद्री कोरल का सिर्फ रंग ही खत्म नहीं होता बल्कि ब्लीचिंग की वजह से बढ़ने की उसकी क्षमता भी खत्म हो जाती है. कोरल रीफ मरने लगते हैं और समुद्री जीवों को न तो सुरक्षा दे पाते हैं और न ही खाना. समुद्री जीवों के शिकार करने की जगह भी खत्म हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Naupold
बदलती समुद्री लहरें
यदि समुद्र के गर्म होने से उत्तरी अटलांटिक लहर की धारा बाधित होती है तो इसका मतलब पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में शीतलहर होगा. यही लहर समुद्री पानी के प्रवाह को निर्धारित करती है और इसी से सतह का घना पानी घूमकर गहरे ठंडे इलाके की ओर जाता है.