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आग पश्चिम की धुआं भारत का

रिपोर्टः शतायु, साभार वेबदुनिया (संपादनःआभा एम)८ जुलाई २०१०

जिन पर हमें गर्व है, जिन्होंने भारत का नाम दुनिया में रोशन किया है उन मुट्ठीभर भारतीय युवक-युवतियों को छोड़ दीजिए पर भारत की सड़कों पर, पब में, वाइन शॉप में, सिनेमा हॉल में, जो युवा हैं उन पर कतई गर्व नहीं किया जा सकता.

तस्वीर: AP

इस तरह के युवा सबसे खतरनाक सिद्ध हो रहे हैं. ये हमारे समाज का कल्चर और देश का माहौल बदल रहे हैं. इनकी सोच न तो भारतीय है और न ही इन्होंने खुद की कोई मौलिक सोच डेवलप की है. ना ही उसे किसी विदेशी संस्कृति में ढाला है. ये सभी एक शहरी कोलाहल और पश्चिमी चकाचौंध के बीच अंधी दौड़ का अनुसरण कर रहे हैं.

आग पश्चिम में लगी है और उसके धुएं के शिकार हो रहे हैं भारतीय युवा. आइए जानते हैं कि ये मूढ़ क्या गुल खिला रहे हैं और सच मानें तो इनमें इनका दोष भी नहीं है...

नकलचियों की ये जमात वर्तमान युग की कई खोखली चीजों से प्रभावित होती है. पहली सेक्स से भरी फूहड़ फिल्मों से, दूसरी पब संस्कृति से और तीसरी इंटरनेट से. इन तीनों का ही कल्चर कुछ इस तरह का है कि ये युवाओं में एक नई सोच की बजाय एक घातक सोच को विकसित कर रहे हैं.

मोबाइल और इंटरनेट

तस्वीर: Illuscope

इंटरनेट की दुनिया में जितनी जानकारियों का संग्रह है, उतना जंजाल भी है. युवा इंटरनेट से ज्ञानवर्धक सामग्री से ज्यादा कुछ ऐसी बातें खोजते हैं, जो उनके नैतिक पतन का रास्ता तैयार करती है. जैसेकि वेब पोर्टलों पर सुरक्षित सेक्स के उपाय क्या-क्या हैं? हार्डकोर पोर्न साइट, सेक्स वीडियो, ब्लॉग पर उपलब्ध सेक्स स्टोरीज़ ऐसे कई टॉपिक हैं, जिन्हें युवा इंटरनेट पर देखने/पढ़ने के लिए बेताब रहते हैं.

तस्वीर: DW-TV

इसके अलावा, शादी के बाद एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर, सब चलता है, पॉलीगेमी, विकृत सेक्स जैसे आर्टिकल भी युवाओं के द्वारा इंटरनेट पर खोजे जाने वाले हॉट टॉपिक्स हैं. इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिये नए दोस्त बनाना बेहद आसान है और फिर इन दोस्तों के साथ सारी हदें पार करने की सीख और प्रोत्साहन भी इंटरनेट से ही मिलता है.

अब एसएमएस के द्वारा खुल के कहो और नजर भी न आओ, जब मामला जम जाए तो सामने भी आ जाओ. मजा यह है कि अब एक से नहीं बहुतों से 'लव, सेक्स और धोखा' किया जा सकता है.

पब कल्चर का प्यार

बड़े शहरों में बढ़ते पब कल्चर ने लड़कों और लड़कियों का काम और आसान कर दिया है. डिस्को और काम करके खिसकों के कल्चर ने सब कुछ लचर-पचर कर दिया है. पब ने लड़कों के साथ लड़कियों को भी नशे में झूमने की सुविधा उपलब्ध करा दी है. यह सब चलता है एडवांस एज और मॉर्डननिटी के नाम पर. देर रात तक घर आना तो अब आम चलन हो चला है.

कुछ कॉलेजों की करतूत?

माना जाता है कि कुछ कॉलेज अब सक्सेस इसलिए हैं, क्योंकि वह को-कॉलेज तो हैं ही साथ ही उन्होंने वेस्टर्न कल्चर्स के अनुसार एज्यूकेशन और संस्कार की आड़ में कुछ ऐसे झाड़ लगा रखे हैं, जहां लड़के और लड़कियाँ छिपकर 'हॉट किस' का मजा ले सकें. कॉलेज ट्रिप तो पुरानी परंपरा है, अब तो धूम-धड़ाके के साथ कॉलेजों की डीजे पार्टी का मजा लिजिए और शर्म हया को दूर भगाइए. जरूरी है इसका दूर भागना अन्यथा आप भोंदू,, फस्ट्रू या टेपा, ट्रेडिशनल कहलाएंगे.

आफत में ऑफिस

काल सेंटर, फैशन, एड, ग्लैमर वर्ल्ड, बैंकिंग, आई-टी सेक्टर या फिर कोई भी प्रॉइवेट कंपनियों में अब लड़के और लड़कियों का अनुपात लगभग समान हो चला है. इनमें से कुछ नवविवाहित हैं तो कुछ नहीं भी, लेकिन हैं सभी युवा. सभी उस कच्चर का हिस्सा बनते जा रहे हैं, जहां काम से ज्यादा लोग चापलूसी, दिखावा, रणनीति और प्रेम संबंधों में ज्यादा रत रहते हैं और इनकी आड़ में अपना-अपना मतलब साधने की फिराक में रहते हैं.

नौकरी बचाए रखने की जुगत, इंक्रीमेंट या प्रमोशन के चलते लड़के और लड़कियां दोनों ही अपने-अपने स्तर पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. इस सब के चलते लगभग सभी ऑफिसों में आफत में बने रहने की मानसिकता घुस गई है. प्रत्येक व्यक्ति अपने कलीग के कारण असंतुष्ट है और इसलिए उससे आगे बढ़ने की खातिर हर तरह का 'समझौता' करने को तैयार है. इन सभी बातों और क्रियाकलापों का असर ऑफिस के कामकाज पर पड़ना स्वाभाविक है.

शीशा लाऊंज-

तस्वीर: dpa

इन दिनों बरसों पुराना हुक्का आधुनिक रूप धरकर सामने आ गया है. बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स के अलावा अलग से ऐसे रेस्टोरेंट खुल गए हैं जो सरेआम धुएं में बहकते युवाओं को 'स्पेस' मुहैया करा रहे हैं. इस आधुनिक नशे को शीशा लाऊंज नाम दिया गया है. लड़कियाँ भी बड़ी संख्या इसकी शिकार हो रही है. इस शीशा लाऊंज से 'दम मारो दम' की तर्ज पर ग्रुप में मजा लिया जाता है. यह धुआं सिगरेट और अन्य नशे से ज्यादा घातक है क्योंकि पानी के जरिए पहुंचा निकोटिन फेफड़ों में स्थायी रूप से जम जाता है. उससे कहीं अधिक घातक लगता है किसी भी शीशा लाऊंज का वह माहौल जिसमें लड़के-लड़कियां बेसुध से नशीली हालत में एक दूसरे को घूरते रहते हैं.

आखिर क्यों अखरता है

तस्वीर: picture-alliance / Bildagentur Huber

खुली संस्कृति की वकालत करने वाले और इसकी मुखालिफत करने वाले दोनों ही उस तूफान में बह रहे हैं जो कि पश्चिम से उठा है. पश्चिम तो उस तूफान से निजात पाने के तरीके ढूंढ रहा है, लेकिन भारत को अभी तूफान का मजा चखना है. पाश्चात्य कल्चर की वकालत करने वाले कह सकते हैं कि आखिर आपको अखरता क्यों है, हमारी मर्जी चाहे हम निर्वस्त्र नाचें.

दिशाहीन युवा

पश्चिम को मालूम है कि हम कहां जा रहे हैं और हमें कहां जाना है. चीन जानता है कि उनकी दिशा क्या है, लेकिन भारत के युवा किसी चौराहे पर खड़े नजर आते हैं. उक्त बातों के खिलाफ लोग हाथ खड़े कर सकते हैं, लेकिन बहुसंस्कृति, बहुधर्मी और दुष्ट राजनीतिज्ञों के इस देश में वही होता है जो विदेशी चाहते हैं.

युवा अंधी दौड़ का हिस्सा

हमारे देश में युवा रेंडमली या कहें, दूसरों की आंधी में जी रहा है. उसका लक्ष्य या उसका गोल मार्केट तय करता है. वह दूसरों से ज्यादा खुद से भयभीत है. वह संघर्ष चाहता भी है और नहीं भी. सवाल यह है कि आखिर वह चाहता क्या है?

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