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समाज

महिलाएं वंचित हैं जमीन के अधिकार से

१२ फ़रवरी २०२१

कानूनों में कमियां हों या सामाजिक मान्यताएं, दुनिया भर में किसी ना किसी वजह से महिलाओं को जमीन का अधिकार हासिल करने में कई अड़चनों का सामना करना पड़ता है.

Indien Landwirtschaft Kartoffeln
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Adhikary

एक नए अध्ययन में इस बात के सबूत सामने आए हैं कि जमीन पर अधिकार देने से ना सिर्फ महिलाओं को बल्कि समुदायों को भी जलवायु परिवर्तन के असर से बचाया जा सकता है. दुनिया में जितने लोग जीविका चलाने के लिए जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर पूरी तरह से निर्भर हैं उनमें आधे से ज्यादा आबादी महिलाओं की है. इसके बावजूद, अपनी जमीन से जीविका चलाने वाले किसानों में सिर्फ 14 प्रतिशत महिलाएं हैं. अफ्रीका और पूर्वी एशिया में ऐसी महिलाओं की संख्या और भी कम है.

निजी संस्था रिसोर्स इक्विटी और थिंक टैंक वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार जहां महिलाओं के जमीन के अधिकारों को मान्यता मिली हुई है उन देशों में भी महिलाओं को कई तरह की रुकावटों का सामना करना पड़ता है.

डब्ल्यूआरआई के लिए काम करने वाली शोधकर्ता सेलिन साल्सेदो-ला वीना का कहना है, "महिलाओं के पास उनकी सामुदायिक जमीन के इतिहास की गहरी जानकारी होती है. उस जमीन पर काम करने के लिए जिम्मेदार होने की वजह से उन्हें यह मालूम होता है कि उसका प्रबंधन कैसे करना है और वो उपजाऊ रहे यह सुनिश्चित कैसे करना है."

भारत में एक महिला किसान खेतों में काम करती हुई.तस्वीर: DW/Catherine Davison

लेकिन उन्होंने बताया कि इसके बावजूद नीतियां अक्सर जमीन या संपत्ति का अधिकार महिलाओं को देने पर केंद्रित नहीं होती. सेलिन मानती हैं कि सामुदायिक संसाधनों पर अगर महिलाओं को अधिकार दिए जाएंगे तो इससे उनके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी और सूखे जैसे 'क्लाइमेट शॉक्स' के प्रति उन्हें मजबूती मिलेगी.

सेलिन के अनुसार, "जब महिलाओं को अधिकार दिए जाते हैं तो इससे उनके पूरे समुदायों को फायदे मिलते हैं. इन फायदों में खाद्य सुरक्षा, बच्चों के लिए स्वास्थ्य-शिक्षा में निवेश और भूमि का बेहतर प्रबंधन शामिल हैं. ये सब एक समुदाय की जलवायु परिवर्तन का मजबूती से सामना करने की क्षमता को बढ़ाने में योगदान देते हैं. 

जैसे जैसे देश अपनी अपनी अर्थव्यवस्थाओं को कोरोना वायरस महामारी के असर से निकालने की कोशिश में आगे बढ़ेंगे, वैसे वैसे पहले से ज्यादा सामुदायिक संसाधनों का निजीकरण करने की जरूरत पड़ सकती है. इससे उन ग्रामीण समुदायों को नुकसान होगा जिनके पास आधिकारिक रूप से जमीन के अधिकार नहीं हैं.

घाना में खेतों में काम करती महिलाएं.तस्वीर: Geoffrey Buta

समुदायों पर अध्ययन करने वाली सेलिन ने कहा कि इन संसाधनों पर अगर महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित किए जाएंगे तो इससे इन संसाधनों को बेहतर सुरक्षित रखा जा सकेगा. सेलिन ने कैमरून, मेक्सिको, इंडोनेशिया, नेपाल और जॉर्डन में समुदायों का अध्ययन किया है. इन सभी देशों में महिलाओं के पास ऐसे अधिकार हैं.

इंडोनेशिया के रिआऊ प्रांत में मोल्ल निवासियों का एक समुदाय है जिनके पास जंगलों का इस्तेमाल करने के अधिकार भी हैं. इस समुदाय ने युवाओं को जीविका के ज्यादा अवसर दिए हैं और जमीन को आधिकारिक रूप से महिलाओं के नाम करके जंगलों को व्यापारिक खेती से भी बचाया है.

कानूनी और सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त जमीन के अधिकार मिलने से घरों में और सामुदायिक फैसले लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका भी बढ़ जाती है. सेलिन कहती हैं, "महिलाएं सामुदायिक जमीन का इस्तेमाल कर मिल जुल कर काम शुरू कर सकती हैं जिनसे पूरे समुदाय का फायदा होगा. इस तरह के काम से समुदाय की कमाई भी बढ़ेगी जिस से सबकी स्वायत्तता और मुश्किल हालात का सामना करने की क्षमता भी बढ़ेगी."

बाली में खेतों में काम करती महिलाएं.तस्वीर: Imago/Blickwinkel

सेलिन ने यह भी कहा, "जब ऐसा होता है तब लोकों की जीविका ज्यादा सुरक्षित होती है और समुदायों की बाहरी निवेशकों को 'हां' कहने की मजबूरी घट जाती है. वो 'ना' कहने के लिए भी और सशक्त महसूस करते हैं. चिआंग माई विश्वविद्यालय के मेकॉन्ग लैंड रिसर्च फोरम में संयोजक डेनियल हेवर्ड का कहना है कि परिवार और सामुदायिक दोनों ही स्तर पर जमीन के प्रबंधन में महिलाएं जो भूमिका निभाती हैं उसे मान्यता देने की "नैतिक जरूरत" है.

उनका कहना है, "महिलाएं जमीन की कुशल प्रबंधक होती हैं और कानूनी रूप से अगर उन्हें अपने अधिकार और नियंत्रण बढ़ाने के लिए सशक्त किया जाएगा तो उन्हें बाहर के खतरों का सामना करने वाले महत्वपूर्ण नेताओं के रूप में तब्दील किया जा सकता है."

सीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

 

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