25 जून 1975 को भारत के इतिहास में पहली बार आपातकाल लागू हुआ था. उस घटना के 40 साल पूरे होने के मौके पर बीजेपी के संस्थापकों में से एक और फिलहाल मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आडवाणी ने ऐसा फिर होने की आशंका से इंकार नहीं किया. पूर्व उप-प्रधानमंत्री आडवाणी ने भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में बताया कि संवैधानिक और कानूनी रक्षा व्यवस्था के होते हुए भी देश में लोकतंत्र को तबाह कर सकने वाली शक्तियां पहले से मजबूत हैं. आडवाणी ने कहा, "मैं यह नहीं कहता कि राजनैतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है. लेकिन मुझे यह भरोसा नहीं है कि ऐसा (आपातकाल) फिर नहीं हो सकता."
तमाम विपक्षी दलों ने आडवाणी के इस बयान को केंद्र में मोदी की एनडीए सरकार और बीजेपी पर हमला करने का मौका माना है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सत्ता चला रहे आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा, "आडवाणी जी की आशंका सही है. भविष्य में इमरजेंसी की आशंका से इंकार नहीं कर सकते. क्या दिल्ली इसका पहला प्रयोग है?" हालांकि बीजेपी प्रवक्ता एमजे अकबर ने कहा कि उनके विचार से आडवाणी की आशंका किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं बल्कि संस्थाओं की ओर लक्षित थीं. आरएसएस के विचारक एमजी वैद्या ने भी इस इंटरव्यू में मोदी की ओर इशारा नहीं होने की बात कही है.
आडवाणी ने भारत में 40 साल पहले की परिस्थितियों को आज के ही जैसा बताया. उनके इस बयान को विपक्षी दल मोदी सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण मान रहे हैं. इस समय विपक्ष मोदी सरकार में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग कर रहा है क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा है. वहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी 2011 में ललित मोदी की मदद करने के कारण इस ताजा प्रकरण में खींची जा चुकी हैं.
आडवाणी ने भारत में 1975 आपातकाल की तुलना जर्मनी में हिटलर की तानाशाही के समय से की. उन्होंने कहा कि जिस तरह हिटलर काल से सबक लेते हुए जर्मनी के पूरे तंत्र ने ऐसे लोकतांत्रिक मानदंड बनाए ताकि उसे दोहराया ना जा सके. इसमें "स्वतंत्र मीडिया की अहम भूमिका” पर जोर देते हुए आडवाणी ने कहा कि मीडिया को “लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के मूल्यों के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता" दिखाने की भी जरूरत है.
आरआर/एमजे (पीटीआई)
हार, मुक्ति और कब्जा. मई 1945 में जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ. जर्मनी मलबे में था. अमेरिकी और सोवियत सैनिक जर्मनी के सैनिकों और नागरिकों से मिले जिनके खिलाफ वे सालों से लड़ रहे थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpaनॉर्मंडी में 6 जून 1944 को मित्र राष्ट्रों की सेना के उतरने के साथ नाजी जर्मनी के पतन की शुरुआत का बिगुल बज गया. 1945 के शुरू में अमेरिकी सैनिक जारलैंड पहुंचे और जारब्रुकेन के करीब उन्होंने एक गांव पर कब्जा कर लिया. अभी तक जर्मन सैनिक हथियार डालने को तैयार नहीं थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpaहिटलर की टुकड़ियों की हार को रोकना काफी समय से संभव नहीं था, फिर भी राजधानी बर्लिन में अप्रैल 1945 में जमकर लड़ाई हो रही थी. सोवियत सेना शहर के बीच में ब्रांडेनबुर्ग गेट तक पहुंच गई थी. उसके बाद के दिनों में राजधानी बर्लिन में हजारों सैनिकों और गैर सैनिक नागरिकों ने आत्महत्या कर ली.
तस्वीर: picture-alliance/dpaपांच साल में 262 हवाई हमलों के बाद राइन नदी पर स्थित शहर कोलोन में भी मई 1945 में युद्ध समाप्त हो गया. करीब करीब पूरी तरह नष्ट शहर में कुछ ही सड़कें बची थीं जिनपर अमेरिकी सैनिक गश्त कर रहे थे. ब्रिटिश मार्शल आर्थर हैरिस के बमवर्षकों ने शहर का हुलिया बदल दिया था जो आज भी बना हुआ है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी को दो ओर से घेरने वाली सेनाओं का मिलन टोरगाऊ में एल्बे नदी पर स्थित पुल के मलबे पर हुआ. 25 अप्रैल 1945 को सोवियत सेना की 58वीं डिवीजन और अमेरिकी सेना की 69वीं इंफेंटरी डिवीजन के सैनिक एक दूसरे से मिले. इस प्रतीकात्मक घटना की यह तस्वीर पूरी दुनिया में गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpaअमेरिकी सेना के पहुंचने तक म्यूनिख के निकट दाखाऊ में स्थित नाजी यातना शिविर में बंदियों को मारा जा रहा था. इस तस्वीर में अमेरिकी सैनिकों को शवों को ट्रांसपोर्ट करने वाली एक गाड़ी पर देखा जा सकता है. दिल के कड़े सैनिक भी संगठित हत्या के पैमाने पर अचंभित थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa2 मई 1945 को एक सोवियत सैनिक ने बर्लिन में संसद भवन राइषटाग पर हसिया हथौड़े वाला सोवियत झंडा लहरा दिया. शायद ही और कोई प्रतीक तृतीय राइष के पतन की ऐसी कहानी कहता है जैसा कि विजेता सैनिकों द्वारा नाजी सत्ता के एक केंद्र पर झंडे का लहराना.
तस्वीर: picture-alliance/dpaउत्तर जर्मनी के छोडे शहर एम्डेन का त्रासदीपूर्ण दुर्भाग्य. 6 सितंबर 1944 को वहां पर कनाडा के लड़ाकू विमानों ने 18 मिनट के अंदर 15,000 बम गिराए. एम्स नदी और समुद्र के मुहाने पर स्थित बंदरगाह पर अंतिम हवाई हमला 25 अप्रैल 1945 को हुआ. युद्ध में बुरी तरह बर्बाद हुए यूरोपीय शहरों में एम्डेन भी शामिल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजो जर्मन सैनिक युद्ध में बच गया उसके लिए युद्धबंदी का जीवन इंतजार कर रहा था. सोवियत कैद के बदले ब्रिटिश और अमेरिकी सेना के कैद को मानवीय समझा जाता था. 1941 से 1945 के बीच 30 लाख जर्मन सैनिक सोवियत कैद में गए. उनमें से 11 लाख की मौत हो गई. अंतिम युद्धबंदियों को 1955 में रिहा किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयही खबर पाने के लिए अमेरिकी सैनिक लड़ रहे थे. 2 मई 1945 को अमेरिकी सैनिकों को सेना के अखबार स्टार एंड स्ट्राइप्स से अडोल्फ हिटलर की मौत के बारे में पता चला. सैनिकों के चेहरों पर राहत की झलक देखी जा सकती है. द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत करीब आ रहा था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Everett Colleपहले विश्वयुद्ध की तरह स्टील और हथियार बनाने वाली एसेन शहर की कंपनी क्रुप हिटलर के विजय अभियान में मदद देने वाली प्रमुख कपनी थी. यह परंपरासंपन्न कंपनी मित्र देशों की सेनाओं की बमबारी के प्रमुख लक्ष्यों में एक है.1945 तक क्रुप के कारखानों में हजारों बंधुआ मजदूरों से काम लिया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpaवे युद्ध को समझ नहीं सकते, फिर भी जर्मनी में हर कहीं दिखने वाला मलबा लाखों बच्चों के लिए खेलने की जगह है. मलबों से दबे जिंदा बमों से आने वाले खतरों के बावजूद वे यहां खेलते हैं. एक पूरी पीढ़ी के लिए युद्ध एक सदमा है जिसकी झलक जर्मनों की कड़ी मेहनत और किफायत में दिखती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयुद्ध में इंसान. यह जर्मन सैनिक जिंदा बच गया. लेकिन जिंदगी सामान्य होने में अभी देर है. जर्मनी में 1945 में पीने का पानी, बिजली और हीटिंग लक्जरी थी. इसमें जिंदा रहने के लिए जीजिविषा, गुजारा करने की इच्छा और मुसीबतों और अभाव से निबटने का माद्दा चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयुद्ध की समाप्ति के 70 साल बाद बर्लिन, ठीक ब्रांडेनबुर्ग गेट के सामने. वह जगह जहां अतीत वर्तमान के साथ नियमित रूप से टकराता है. मई 45- बर्लिन में वसंत के नाम वाली एक प्रदर्शनी राजधानी में जर्मनी सेना के आत्मसमर्पण और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे की याद दिला रही है.
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