रूस की मुख्य सुरक्षा एजेंसी फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (एफएसबी) के प्रमुख अलेक्जेंडर बोर्तनिकोव के मुताबिक अब तक कम से कम 4,500 रूसी नागरिकों ने आतंकवादियों के साथ लड़ने के लिए देश छोड़ दिया है.
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एक अखबार से बातचीत के दौरान बोर्तनिकोव ने बताया कि अब तक कम से कम 4500 ऐसे नागरिकों की पहचान की जा सकी है जो आतंकवादियों से कंधा मिलाने के लिए विदेशों में गए हैं. उन्होंने बताया कि कैसे सुरक्षा एजेंसी ने मध्यपूर्व, उत्तरी अफ्रीका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से रूस में आतंकियों को आने से रोका है साथ ही इन जगहों पर रूसी नागरिकों को जाने से रोकने का काम भी किया है. उन्होंने बताया कि पिछले महीने करीब 200 से भी अधिक लोगों को इन क्षेत्रों की यात्रा करने से रोका गया. इसके अलावा रूस ने इस साल तकरीबन 23 आतंकी हमलों को नाकाम कर दिया. वहीं पिछले पांच सालों के दौरान तकरीबन 9,500 लोगों पर आतंकवाद और उग्रवाद के आरोप लगे. बोर्तनिकोव ने कहा कि सुरक्षा एजेंसी की प्राथमिकता आतंकी स्लीपर सेल का पता लगाना और संभावित हमलावरों की पहचान करना है.
रूसी सेना की रीढ़ बनते आर्मी स्कूल
बच्चों को जंगल में अकेले छोड़ दिया जाता है. उन्हें खुद जिंदा रहना सीखना होगा. आखिर में उन्हें हवाई जहाज से कूद मारनी होगी. देखिए कैसे सैनिक तैयार करते हैं रूस के आर्मी स्कूल.
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आर्मी स्कूल की होड़
रूस में जो माता पिता तेजी से अपने बच्चे को सफल होते देखना चाहते हैं, वे आम तौर पर बच्चों को आर्मी स्कूल भेजते हैं. देश भर से 200 से ज्यादा बच्चे आर्मी स्कूल तक पहुंचते हैं. आम पढ़ाई के साथ साथ बच्चों को यहां मिलिट्री ट्रेनिंग दी जाती है. सफल बच्चों के लिए रूस की सेना का दरवाजा सीधे खुलता है.
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फादरलैंड की खातिर
2001 में रूस सरकार ने नई पीढ़ी के लिए देशभक्ति से भरा सिलेबस तैयार किया. यह सिलेबस मिलिट्री स्कूल और पैरामिलिट्री कैंपों में चलता है. आर्मी ड्रिल के दौरान देशभक्ति साबित करना बच्चों के लिए मददगार होता है.
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जनरल की याद में
जेरमोलोव कैडेट स्कूल 2002 में शुरू हुआ. स्कूल रूसी सेना के जनरल अलेक्सी पेत्रोविच जेरमोलोव की स्मृति में बनाया गया. 19वीं सदी में जेरमोलोव ने नेपोलियन के खिलाफ युद्ध लड़ा. जेरमोलोव को युद्ध का हीरो माना जाता है. इस कैडेट स्कूल के बच्चों के पास रूसी सेना में जाने का सबसे बढ़िया मौका होता है.
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अनुशासन और अभ्यास
रूसी सेना का अगला नायक बनने के लिए बच्चे यहां कड़ी मेहनत करते हैं. बचपन से ही उन्हें बॉक्सिंग और एशियन मार्शल आर्ट सिखायी जाती है. कई दिनों के कैंप के दौरान बच्चों को अपनी फिटनेस भी साबित करनी पड़ती है. लोग इन स्कूलों को कुलीन "रसियन नाइट्स" क्लब भी कहते हैं.
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शूट करने लायक
कड़े शारीरिक अभ्यास के अलावा बच्चों को हथियार चलाना भी सिखाया जाता है. बच्चे खाली समय में खेलकूद के तौर पर भी हथियार चला सकते हैं. कैंपिंग के दौरान रूसी सेना के अधिकारी बच्चों से मिलते हैं और हथियारों के बारे में उन्हें नयी बातें सिखाते हैं.
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लड़कियों का भी स्वागत
जेरमोलोव कैडेट स्कूल में लड़कियां भी जाती हैं. लड़कों की तरह वे भी हर तरह की मिलिट्री ट्रेनिंग करती हैं. इस दौरान उन्हें अस्थायी बंकर बनाना और जंगल में अकेले जिंदा रहना भी सिखाया जाता है.
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स्काईडाइविंग
फिट, इंटेलिजेंट और साहसी युवाओं को स्काईडाइविंग टेस्ट भी पास करना होता है. सेना के मुताबिक विमान या हेलिकॉप्टर से छलांग मारना मौजूदा दौर में सैनिकों के लिए जरूरी है. (रिपोर्ट: यूलिया वर्जिन/ओएसजे)
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इससे पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोवियत संघ में शामिल रहे देशों के सुरक्षा प्रमुखों का रूस का साथ देने के लिए आभार जताया. पुतिन ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया. साथ ही कहा कि रूस, सीरिया में हो रही आतंकी गतिविधियों पर नजर बनाये हुए है. सीरिया में जारी गृह युद्ध में रूस की सेना सीरियाई राष्ट्रपति बशर-अल-असद की तरफ से लड़ रही है.
रूस की सेनाएं सितंबर 2015 से सीरिया में सक्रिय हैं, इसके चलते रूस, इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूह के निशाने पर बना हुआ है. इन सब खतरों के बीच अप्रैल 2017 रूस को सेंट पीटर्सबर्ग पर हुई बमबारी सहित कई हमलों का सामना करना पड़ा. इस हमले में 15 लोग मारे गए थे.
इसके साथ ही रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को भी धन्यवाद कहा. धन्यवाद की वजह पिछले सप्ताह अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी की ओर से की गई वो मदद थी जिसके चलते सेंट पीटर्सबर्ग की ऐतिहासिक इमारत पर योजनाबद्ध हमले को विफल किया जा सका. पुतिन, सोवियत संघ की पहली गुप्त पुलिस की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर अपनी ये बात कह रहे थे.
दुनिया भर की सेनाओं के पास सोवियत संघ के हथियार
सोवियत संघ भले ही सालों पहले खत्म हो गया, लेकिन उसके इंजीनियरों के बनाये और युद्धों में इस्तेमाल किये गए हथियार आज भी दुनियाभर की सेनाएं इस्तेमाल कर रही हैं.
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मिखाईल कलाश्निकोव की राइफल
30 राउंड वाली एके 47 दुनिया की सबसे ज्यादा पहचानी जाने वाली राइफल है. सोवियत इंजीनियर मिखाईल कलाश्निकोव ने यह ऑटोमैटिक राइफल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बनाई थी. सस्ती और भरोसे लायक होने की वजह से यह राइफल कई सेनाओं में बहुत जल्दी लोकप्रिय हुई. आज की तारीख में कई गुरिल्ला समूह और आपराधिक गिरोहों समेत दुनिया भर की कई सेनाएं इस बंदूक को इस्तेमाल कर रही हैं.
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बंदूक जो पहुंची अंतरिक्ष
9 एमएम की मार्कोव पिस्तौल का इस्तेमाल 1951 में हुआ. यह पिस्तौल सोवियत सेना, पुलिस और विशेष बल में प्रयोग की जाती थी. यहां तक कि सोवयत के अंतरिक्ष यात्री इसे अपनी खास किट में रख कर स्पेस की यात्रा पर गए. ये पिस्तौल उन्हें इसलिए दी गयी थी कि अगर वे किसी मुसीबत में फंस जायें तो इसका इस्तेमाल कर सकें
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अब भी उड़ रहा है मिग-29
मिग-29 1980 के शुरुआती सालों में बनना शुरू हुआ और इसकी गतिशीलता और चुस्ती की वजह से इसे खूब तारीफें मिलीं. हालांकि नाटो फाईटर्स और सुखोई ने अब इसे पीछे कर दिया है, लेकिन इसके कई विमान अब भी युद्धों में इस्तेमाल हो रहे हैं. रूसी वायुसेना सीरिया में इस्लामिक स्टेट को निशाना बनाने के लिए मिग-29 का इस्तेमाल कर रही है.
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द्वितीय विश्व युद्ध से अब तक
रेड आर्मी ने द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मन सैनिकों के खिलाफ विनाशकारी प्रभाव के लिए कत्युशास ट्रक का इस्तेमाल किया था. इन आर्मी ट्रकों में कई रॉकेट लॉन्चर जुड़े हुए थे. ये ट्रक काफी सस्ते थे और इन्हें आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता था. इन ट्रकों को आज भी इस्तेमाल में लाया जा रहा है. ईरान-इराक युद्ध, लेबनान युद्ध, सीरियाई गृह युद्ध समेत कई लडाइयों में अब भी कई सेनाएं इसका इस्तेमाल कर रही हैं.
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विशालकाय एस-300 वायु रक्षा तंत्र
साल 2016 में रूस ने ईरान को उन्नत हवाई रक्षा प्रणाली बेची थी. शीत युद्ध-युग संस्करण के एस-300 150 किलोमीटर दूर तक वार कर सकते थे. इसके नए संस्करणों को और सक्षम बनाया गया है, जो 400 किलोमीटर दूर तक वार कर सकते हैं. भारत और चीन दोनों एडवांस एस-300 को खरीदने का विचार कर रहे हैं.
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ड्रैगुनोव स्नाईपर राइफल
ड्रैगुनोव स्नाईपर राइफल सोवियत आर्मी में पहली बार 1963 में इस्तेमाल होना शुरू हुई थीं. तब से अब तक ये दुनिया भर के कई देशों में जा चुकी हैं. इन राइफलों का कथित तौर पर वियतनाम में अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था. 2015 में कुछ तस्वीरें सामने आई थीं, जिसमें इस्लामिक स्टेट की सेना के पास ड्रैगुनोव स्नाईपर राइफल दिख रही थीं.
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टी -34, एक युग का प्रतीक
रेड आर्मी की जर्मनी पर जीत के श्रेय का एक बड़ा हिस्सा टी-34 के नाम जाता है. टी-34 का लड़ाईयों में पहली बार 1941 में इस्तेमाल किया गया था. युद्ध में आजमाई गयी टी-34 तोपें बाद में दुनियाभर में सबसे ज्यादा बनाए जाने वाले टैंक साबित हुए. रूसी सेना अब भी इस तोप को विजय दिवस परेड में सबसे आगे खड़ा कर इसे सम्मान देती है.