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आतंकवाद और बेरोजगारी से ज्यादा आबोहवा बदलने का डर

२९ नवम्बर २०१९

यूरोप के लोगों को आतंकवाद, बेरोजगारी और देश छूटने से ज्यादा डर जलवायु परिवर्तन से लगता है. यूरोपीय संघ के सांसदों ने "जलवायु आपातकाल" का एलान कर दिया है.

Deutschland Fridays for Future - Munich
म्यूनिख में फ्राइडे फॉर फ्यूचर के लिए प्रदर्शन करते आमलोगतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/A. Pohl

गुरुवार को जब यूरोपीय संसद "जलवायु आपातकाल" का एलान कर रही थी तब यूरोपियन इनवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) के एक सर्वे ने बताया कि यूरोप के लोगों को इन दिनों सबसे ज्यादा जलवायु परिवर्तन का डर सता रहा है. यूरोपीय सांसदों के इस सांकेतिक आपातकाल के एलान का मतलब है संयुक्त राष्ट्र के अगले सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदमों के लिए ज्यादा दबाव बढ़ाना.

ईआईबी के सर्वे में 30 देशों के 30 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. इनमें चीन और अमेरिका के लोग भी शामिल हैं. सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 47 फीसदी यूरोपीय लोग जलवायु परिवर्तन को अपनी जिंदगी के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं. इन लोगों ने इसे नौकरी जाने, बड़े पैमाने पर विस्थापन और आतंकवाद की चिंता से भी ऊपर माना है.

जलवायु परिवर्तन को आपातकाल घोषित करने के दौरान यूरोपीय संसद में वोटिंग तस्वीर: Reuters/V. Kessler

ईआईबी की उपाध्यक्ष एम्मा नावारो का कहना है, "यूरोपीय नागरिक जलवायु परिवर्तन और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर इसके असर और भविष्य को लेकर बेहद चिंतित हैं." नावारो का यह भी कहना है, "दिलचस्प यह है कि उनमें से ज्यादातर इस बात को लेकर आशान्वित हैं कि इसे उलटा जा सकता है लेकिन विज्ञान ऐसा नहीं कहता."

यूरोपीय संघ का ईआईबी दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक कर्ज देने वाली संस्था है. इसका काम जलवायु परिवर्तन को रोकने की परियोजनाओं में निवेश करना है जो अब यूरोपीय संघ की नई प्राथमिकता है. संस्था ने चार सर्वेक्षणों की योजना बनाई है जिनमें से अभी पहले के नतीजे आए हैं. ये नतीजे दिखाते हैं कि चीन के लोगों में यूरोपीय संघ से ज्यादा पर्यावरण की चिंता है. सर्वे में शामिल 73 फीसदी लोग इसे समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं. इसके उलट अमेरिका में महज 39 फीसदी लोग ही इसके बारे में ऐसी राय रखते हैं. अमेरिका के लोगों की सबसे बड़ी चिंता स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करना है. 

जर्मनी के ओबरहाउजेन में फैक्ट्रियों से निकलता धुआंतस्वीर: Getty Images/L. Schulze

इस सर्वे ने यह भी दिखाया है कि 15 से 29 साल की उम्र के यूरोपीय युवा ये सोचते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें किसी और देश में जाना पड़ेगा. खास तौर से दक्षिणी यूरोप के स्पेन, ग्रीस और फ्रांस जैसे देशों में. सर्वे के नतीजों में कहा गया है, "कुल मिला कर 82 फीसदी यूरोपीय लोगों ने माना है कि जलवायु परिवर्तन का उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर असर हो रहा है, ऐसी राय रखने वाले लोगों की संख्या चीन में 98 फीसदी और अमेरिका में 76 फीसदी तक है."

1 दिसंबर से काम शुरू करने वाला नया यूरोपीय आयोग पूरे यूरोपीय संघ को एक ऐसा इलाका बनाना चाहता है जहां 2050 तक कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन शून्य होगा. 2030 तक इसमें मौजूदा स्तर से 50 फीसदी तक की कटौती का लक्ष्य है. इसके लिए यूरोपीय संघ में शामिल सभी देशों की सरकारों से सहमति ली जानी बाकी है ताकि यह फैसला बाध्यकारी हो सके. हालांकि कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर पोलैंड जैसे देश इस तरह के लक्ष्य का विरोध कर रहे हैं.

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)

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