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आतंकियों के पीछे लेजर तकनीक

६ फ़रवरी २०१५

आतंकी हमलों को टालने के लिए जर्मन रिसर्चरों ऐसी लेजर तकनीक का विकास किया है जिसकी मदद से विस्फोटक तत्वों की स्थिति का ठीक ठीक पता लगाया जा सकता है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

आतंकी हमलों का खतरा बढ़ता जा रहा है. रसायनिक खाद जैसी चीजें उपलब्ध हैं, उनकी मदद से आतंकवादी कहीं भी आसानी से बम बना सकते हैं. आम तौर पर अवैध बम बनाने वाली जगह का समय से पता नहीं चल पाता, लेकिन सुरागों की कड़ी देर सबेर वहां तक पहुंचा ही देती है.

फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट आईएएफ के भौतिक विज्ञानी फ्रांक फुक्स इस तरीके को समझाते हैं, "बम बनाने के सामान को लाने जे जाने की कोशिश में कुछ बचा खुचा सामान रह जाता है, वे इन चीजों को छूते हैं, वे किसी न किसी दरवाजे को छूते हैं, दरवाजों पर अंगुलियों के निशान छोड़ते हैं. कुछ न कुछ टुकड़े सीढियों पर गिरे रह जाते हैं."

कैसे काम करती है तकनीक

एप्लाइड सॉलिड स्टेट फीजिक्स के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों ने एक लेजर तकनीक विकसित की है जो इन कचरों का विश्लेषण करता है और इससे बम बनाने वालों का सुराग मिलता है. यह तकनीक बारीक से बारीक सुराग को दूर से ही पहचान लेता है. वैज्ञानिक लेजर से उस मैटीरियल का विश्लेषण करते हैं जो सतह पर होता है. आम तौर पर संदिग्ध सामग्री कमरे में फैली होती है. कैमरे से उसे पकड़ते हैं, उसकी तस्वीर लेते हैं. इसी दौरान विस्फोटक सामग्री, अंगुलियों के निशान या दूसरी चीजों की शिनाख्त की जाती है.

इस तकनीक की जान माइक्रोस्कोपिक लेजर चिप है, जिसे इंस्टीट्यूट के खास कमरे में बनाया जाता है. तीन मिलीमीटर लंबी और पंद्रह माइक्रोमीटर चौड़ी, छोटे से बाल के बराबर. एक लेंस और दर्पण से होकर उसकी अदृश्य पराबैंगनी किरणें संदिग्ध सामान की पड़ताल करती है. चूंकि क्वांटम कासकैड लेजर इन्फ्रारेड रेंज में काम करती है, इससे आंखों को कोई खतरा नहीं होता. लेजर लाइट विस्फोटकों समेत जैविक तत्वों की समीक्षा काफी अच्छे ढंग से करती है. टीएनटी और दूसरे विस्फोटक, बेहद खास अंदाज में रोशनी को परावर्तित करते हैं.

फुक्स कहते हैं, "हम फिंगरप्रिंट स्पेक्ट्रोस्कोपी की भाषा में बात करते हैं. हमें पता है कि हर ऑर्गेनिक तत्व के लिए खास स्पेक्ट्रम होता है और इसकी मदद से इन तत्वों को एक दूसरे से अच्छी तरह अलग किया जा सकता है. सुरक्षित और असुरक्षित तत्वों को."

अपराधियों का सुराग

बम बनाने के लिए मैटीरियल को बड़ी मात्रा में वर्कशॉप तक लाना जरूरी होता है. अगर इसके ट्रांसपोर्ट के लिए कार की मदद ली जाती है तो विस्फोटक सामग्री गाड़ी में अपने सुराग छोड़ ही देती है. ऐसे बेहद बारीक सुरागों का, फ्रांक फुक्स अपनी टीम के साथ, सुरक्षित दूरी से विश्लेषण कर सकते हैं. उदाहरण के लिए ये कार. रिसर्चर इसके लॉक और डिक्की की तरफ बम बनाने के लिए जरूरी विस्फोटक या बारूदी तत्वों की खोज करते हैं.

मशीन में लगा एक कैमरा ऑब्जेक्ट की इंफ्रारेड तस्वीर बनाता है. एक सॉफ्टवेयर इस तस्वीर का विश्लेषण करता है. इस दौरान वो परावर्तित प्रकाश की समीक्षा करता है और बताता है कि इसमें विस्फोटक है या नहीं. इंस्टीट्यूट के आईटी एक्सपर्ट यान यारविस के मुताबिक, "जब मैं एल्गोरिथम को ऑन करता हूं तो यह तस्वीर की जांच करता है कि उसमें कोई विस्फोटक सामग्री तो नहीं है? और यहां हमें नतीजा मिलता है. अल्गोरिथम के इस हिस्से में, जो गहरा नीला है, यह वह रंग है जिसका मतलब अमोनियम नाइट्रेट है."

खेती में जहां खाद के तौर पर अमोनियम नाइट्रेट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है, वहीं आतंकी भी धमाकों के लिए इसका ही ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. रिसर्चरों के पास एक विजन है, भविष्य में लेजर सेंसरों का नेटवर्क पूरे शहर की हवा और सीवेज सिस्टम में विस्फोटकों का पता लगाकर.

मार्टिन रीबे/ओएसजे

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