आतंकी केस सरकार की उलझन
२३ मई २०१३अखिलेश यादव की यूपी सरकार ने कथित मुस्लिम आतंकवादियों पर से केस हटाने का फैसला किया है, लेकिन राजनीतिक पार्टी बीजेपी इससे खुश नहीं है. पिछले दिनों यूपी पुलिस की हिरासत में खालिद मुजाहिद नाम के कथित आतंकी की मौत हो गई, जिसके लिए सरकार बीमारी को जिम्मेदार बता रही है, तो मुस्लिम संगठन खुद सरकार को कसूरवार मान रहे हैं. इससे पहले राज्य में एक मुस्लिम आईपीएस अफसर की हत्या हो चुकी है, जिसमें सरकार पहले से ही बैक फुट पर है. अब दोनों मामलों की जांच सीबीआई के हवाले है.
मुजाहिद पर लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी में सिलसिलेवार धमाकों का आरोप था. पिछले दिनों अदालत में पेशी के बाद लौटते समय उसकी मौत हो गई. पुलिस ने मुजाहिद और उसके एक साथी को दिसंबर 2007 में गिरफ्तार किया था. हालांकि आरोप है कि उन्हें गिरफ्तारी दिखाने से पहले ही पकड़ लिया गया था. यहां तक कि उनके अपहरण की एफआईआर भी दर्ज हुई. राज्य खुफिया विभाग का दावा था कि देबवंद से डिग्रीयाफ्ता दोनों मौलवी कश्मीरी आतंकवादियों और उल्फा के संपर्क में थे.
रिहाई का आंदोलन
राज्य में इस तरह के युवकों की रिहाई का आंदोलन लंबे वक्त से चल रहा है. पुलिस के पूर्व आईजी एस दारापुरी कहते हैं, "मुस्लिम युवकों को प्रताड़ित करने का पुराना रिकॉर्ड है." मैगसेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय भी इस मुहिम में शामिल हैं और मुजाहिद की मौत को "एटीएस अफसरों को बचाने की साजिश" करार देते हैं. कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के राजनीतिक सदस्य भी इस मुहिम के हिस्सा हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने आतंकवादी आरोपों में बंद दो कश्मीरी सहित 15 युवकों पर से मुकदमे वापस लेने की अर्जी अदालतों में दायर की है. करीब 489 मुस्लिम युवकों और मौलवियों पर से कथित तौर पर फर्जी मुकदमे हटाने की कवायद शुरू की गई है, जबकि सत्ताधारी पार्टी का कहना है कि 200 युवकों के मुकदमे वापस ले लिए गए हैं.
सियासी भंवर में
हालांकि आतंकवाद से जुड़ा यह मुद्दा राजनीतिक मोड़ लेता जा रहा है. अखिलेश यादव की पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार में वादा किया था कि ऐसे मुस्लिम युवकों की रिहाई कराई जाएगी. पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी इस बात को शामिल किया था. दूसरी तरफ बीजेपी के राज्य प्रवक्ता डॉक्टर चंद्रमोहन इसे "राष्ट्रद्रोह" बताते हैं, "सरकार को आतंकवादियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलानी चाहिए न कि उन्हें छोड़ कर देशद्रोही ताकतों का हौसला बुलंद करना चाहिए." दूसरी पार्टियां फिलहाल चुप्पी साधने में भलाई समझ रही हैं.
मुजाहिद की रहस्यमय मौत पर बल खाए मुस्लिम संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मुकदमे वापसी के कदम को सियासी चाल बता कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. आरोपियों के वकील मुहम्मद शोएब कहते हैं, "मुजाहिद की मौत हुई और अब सरकार ने दबाव डाल कर उसके ताऊ से तब के डीजी और एडीजी समेत 42 पुलिसवालों पर हत्या और हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज करवा दिया. यह क्या साबित करता है."
दिल्ली के इमाम बुखारी भी भला इस मौके पर क्यों चूकते, "मुसलमान पुलिस कस्टडी में भी महफूज नहीं हैं."
रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ
संपादनः ए जमाल