पठानकोट में वायु सेना की चौकी पर हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान स्थित संगठन जैश-ए-मुहम्मद का हाथ होने के संकेत हैं. कुलदीप कुमार का कहना है कि इस हमले ने नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
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हालांकि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार की शाम को ही घोषणा कर दी थी कि पठानकोट में भारतीय वायुसेना के ठिकाने पर हमला करेने वाले सभी आतंकवादियों को मार गिराया गया है, लेकिन पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के हमलावरों के खिलाफ अभी तक भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई चल रही है. यह वही संगठन है जिसे भारतीय जनता पार्टी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपहृत विमान के यात्रियों के बदले रिहा किए गए मौलाना मसूद अजहर ने पाकिस्तान जाकर स्थापित किया था. पठानकोट में वायुसेना के ठिकाने पर हुए हमले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की पाकिस्तान नीति और आतंकवाद-विरोधी रणनीति पर अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं.
जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता में थी, तब भाजपा के नेता लंबी-चौड़ी हांका करते थे और उनकी सरकार को कमजोर और नाकारा सरकार बताते थे. लेकिन पठानकोट में वायुसेना के ठिकाने पर हुए हमले ने मोदी सरकार की क्षमता को संदिग्ध बना दिया है और मोदी एवं सुषमा स्वराज के पिछले बयानों को याद करके लोग उनका उपहास कर रहे हैं. पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने का वादा करने वाले नरेंद्र मोदी आज तक देशवासियों को यह नहीं बता पाए हैं कि उनकी पाकिस्तान नीति क्या है जबकि वह रेडियो पर नियमित रूप से ‘मन की बात' कार्यक्रम के अंतर्गत देश की जनता को संबोधित करते हैं. हुर्रियत नेताओं से भेंट का बहाना बना कर पाकिस्तान के साथ बातचीत तोड़ने के बाद अचानक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जन्मदिन पर उनके घर पहुंच जाने के पीछे क्या कोई सुचिंतित कार्ययोजना है या सिर्फ एक क्षणिक सनक, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है.
दोस्ती की बांह पर आतंकियों के हमले
भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी शांति वार्ता की कोशिशें होती हैं, तभी कुछ ऐसा होता है कि माहौल बिगड़ जाता है. एक नजर उन घटनाओं पर जिन्होंने दोनों देशों को बार बार बातचीत की मेज से युद्ध के उन्माद तक पहुंचाया.
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कारगिल युद्ध
अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ की अगुवाई में भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती नए मुकाम पर थी. बसें चल रही थीं, आम लोग आसानी से इधर उधर आ रहे थे. तभी मई 1999 में भारत प्रशासित कश्मीर की चोटियों पर पाकिस्तानी सैनिकों का कब्जा हुआ. इसके बाद नवाज शरीफ का तख्तापलट हुआ और कारगिल के मास्टरमाइंड जनरल परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए.
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आगरा सम्मेलन
जून 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की आगरा में शिखर बैठक हुई. माना जाता है कि दोनों नेता कश्मीर विवाद को हल करने के काफी करीब पहुंच चुके थे. लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि एक झटके में सारी वार्ता विफल हो गई. इसे ऐतिहासिक चूक कहा जा सकता है.
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संसद पर हमला
13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला हुआ. हमले में छह पुलिसकर्मी, दो सुरक्षाकर्मी, एक बागवान और पांच आतंकवादी मारे गए. इस हमले के बाद भारतीय सेनाएं पाकिस्तान सीमा पर तैनात कर दी गई. पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड रोक दी गई. अमेरिका के दखल से युद्ध टला.
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समझौता एक्सप्रेस
भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती की प्रतीक बनी रेल सेवा भी आतंकवादी हमले का शिकार बनी. फरवरी 2007 में दिल्ली से लाहौर जा रही समझौता एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियों में धमाके हुए. 68 लोगों की मौत हुई. पाकिस्तान का आरोप है कि धमाके हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों ने किए.
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हमलों की बाढ़
2008 में भारत के कई शहरों में आतंकवादी हमलों की बाढ़ सी आई. रामपुर, जयपुर, अहमदाबाद, बेंगलुरू, दिल्ली और पूर्वोत्तर भारत में कई हमले हुए. तत्कालीन यूपीए सरकार लाचार सी दिखने लगी. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव उपजने लगा.
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मुंबई हमले
और 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले ने नई दिल्ली के सब्र का बांध तोड़ दिया. विदेशी एजेंसियों की मदद से बहुत जल्दी यह साफ हो गया कि आतंकी हमले के दौरान कराची से निर्देश ले रहे हैं. तब से अब तक नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच शांति वार्ता पुराने रूप में बहाल नहीं हो सकी है.
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पास आकर दूर हुए
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच एक बार शांति वार्ता की कोशिशें शुरू हुई. शुरुआत सकारात्मक हुई लेकिन कश्मीरी अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात के बाद वार्ता की कोशिशें फीकी पड़ने लगी. जम्मू कश्मीर में सरहद पर दोनों देशों के बीच समय समय पर गोली बारी होने लगी.
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गुरदासपुर और ऊधमपुर हमला
जुलाई 2015 में पंजाब के गुरुदासपुर में हुए आतंकवादी हमले और उसके हफ्ते भर बाद जम्मू के ऊधमपुर में भारतीय सुरक्षाबलों पर हमले हुए. हमलों में आतंकवादियों से ज्यादा सुरक्षाबल के जवान मारे गए. इन हमलों का असर भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य में होने वाली बातचीत पर पड़ना तय है.
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बारूद का ढेर
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल इस्लामाबाद जाकर पाकिस्तानी अधिकारियों से मिलने वाले हैं. भारत का मानना है कि पाकिस्तान भारत पर हमलों के लिए आतंकवादियों का इस्तेमाल कर रहा है. भारतीय मीडिया के मुताबिक पाकिस्तान भारत के सब्र का इम्तिहान ले रहा है.
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उच्चस्तरीय सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि भारत दोनों देशों के विदेश सचिवों की इस माह होने वाली बातचीत को टाल सकता है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार नवाज शरीफ सरकार को कुछ समय देना चाहती है ताकि बातचीत होने से पहले वह जैश-ए-मुहम्मद के खिलाफ कार्रवाई कर सके. लेकिन इस बारे में पूरा संदेह है कि नवाज शरीफ सरकार इस संगठन के खिलाफ कोई कारगर कदम उठा पाएगी क्योंकि पाकिस्तान की सेना उन्हीं आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के पक्ष में है जो पाकिस्तानी हितों के खिलाफ काम करने लगे हैं. लेकिन वह उन आतंकवादी संगठनों को पूरा समर्थन देती रही है और आज भी दे रही है जिनके निशाने पर केवल भारत है.
और भले ही पाकिस्तान कुछ भी दावा करे, यह एक कड़वी सच्चाई है कि उसकी विदेश एवं रक्षा नीति पर वहां की चुनी हुई नागरिक सरकार का नहीं, सेना का ही नियंत्रण है. इसलिए बहुत से रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की नागरिक सरकार के साथ हुई किसी भी बातचीत और समझौते का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक उसे वहां की सेना की मंजूरी न मिल चुकी हो. यूं जब पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ वहां के राष्ट्रपति भी थे, तब 6 जनवरी, 2004 को उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखित आश्वासन दिया था कि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली धरती को भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन इस आश्वासन का कितना पालन हुआ यह 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों और पठानकोट पर हुए हमलों से पता चल जाता है.
इस समय लगता है कि भारत पाकिस्तान के साथ वार्ता तोड़ना नहीं चाहता. लेकिन सत्ता में आने के पहले मोदी और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह के भड़काऊ बयान दिये थे, उन्हें देखते हुए उसके लिए वार्ता जारी रखना भी मुश्किल होगा. बहुत संभव है कि वह कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करे जिससे उनकी नाक भी बच जाए और पाकिस्तान को उचित संदेश भी मिल जाए.
किसके पास, कितने एटम बम
दुनिया भर में इस वक्त नौ देशों के पास करीब 13,865 परमाणु बम हैं. हाल के सालों में परमाणु हथियारों की संख्या घटी है. चलिए देखते हैं कि किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं.
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रूस
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) के मुताबिक परमाणु हथियारों की संख्या के मामले में रूस सबसे आगे है. 1949 में पहली बार परमाणु परीक्षण करने वाले रूस के पास 6,500 परमाणु हथियार हैं.
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अमेरिका
1945 में पहली बार परमाणु परीक्षण के कुछ ही समय बाद अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु हमला किया. सिप्री के मुताबिक अमेरिका के पास आज भी 6,185 परमाणु बम हैं.
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फ्रांस
यूरोप में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार फ्रांस के पास हैं. उसके एटम बमों की संख्या 300 बताई जाती है. परमाणु बम बनाने की तकनीक तक फ्रांस 1960 में पहुंचा.
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चीन
एशिया में आर्थिक महाशक्ति और दुनिया की सबसे बड़ी थल सेना वाले चीन की असली सैन्य ताकत के बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन अनुमान है कि चीन के पास 290 परमाणु बम हैं. चीन ने 1964 में पहला परमाणु परीक्षण किया.
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ब्रिटेन
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन ने पहला परमाणु परीक्षण 1952 में किया. अमेरिका के करीबी सहयोगी ब्रिटेन के पास 200 परमाणु हथियार हैं.
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पाकिस्तान
अपने पड़ोसी भारत से तीन बार जंग लड़ चुके पाकिस्तान के पास 150-160 परमाणु हथियार हैं. 1998 में परमाणु बम विकसित करने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ है. विशेषज्ञों को डर है कि अगर अब इन दोनों पड़ोसियों के बीच लड़ाई हुई तो वह परमाणु युद्ध में बदल सकती है.
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भारत
1974 में पहली बार और 1998 में दूसरी बार परमाणु परीक्षण करने वाले भारत के पास 130-140 एटम बम हैं. चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत ने वादा किया है कि वो पहले परमाणु हमला नहीं करेगा. साथ ही भारत का कहना है कि वह परमाणु हथियार विहीन देशों के खिलाफ भी इनका प्रयोग नहीं करेगा.
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इस्राएल
1948 से 1973 तक तीन बार अरब देशों से युद्ध लड़ चुके इस्राएल के पास 80 से 90 नाभिकीय हथियार हैं. इस्राएल के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक है.
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उत्तर कोरिया
पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की मदद से परमाणु तकनीक हासिल करने वाले उत्तर कोरिया के पास 20 से 30 परमाणु हथियार हैं. तमाम प्रतिबंधों के बावजूद 2006 में उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण किया.