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क्या असर रहा पिछले 'आत्मनिर्भर' पैकेजों का

चारु कार्तिकेय
१२ नवम्बर २०२०

कोविड-19 महामारी और तालाबंदी के दुष्प्रभाव से उभरने के लिए केंद्र सरकार ने तीसरे आर्थिक पैकेज की घोषणा की है. क्या पिछले दो पैकेजों का अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ा है?

Indien Neu Delhi Minister Nirmala Sitharaman präsentiert Finanzbudget
तस्वीर: IANS/LSTV

सरकार के अनुसार तीसरा पैकेज कुल 2,65,080 करोड़ रुपयों का है. इसमें रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना, तनाव से गुजर रहे 26 सेक्टरों के लिए कुछ कदम, और संपत्ति खरीदने वालों और रियल एस्टेट डेवलपरों के लिए कुछ कदम हैं. नई "आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना" के तहत भविष्यनिधि संगठन (ईपीएफओ) के साथ पंजीकृत कंपनियां अगर नए लोगों को या मार्च से सितंबर के बीच नौकरी गंवा चुके लोगों को नौकरी पर रखती हैं तो उन्हें सरकार की तरफ से कुछ लाभ मिलेंगे.

इतिहास में पहली बार लगातार दो तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर इन नए कदमों का कितना असर हो पाएगा, यह तो कुछ समय बाद ही पता चलेगा. ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि पिछले दो पैकेजों और दूसरे छोटे छोटे कदमों का अर्थव्यवस्था पर कितना असर हो पाया. मार्च के अंत में केंद्र सरकार महामारी से होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए पहले आर्थिक पैकेज लेकर आई थी, जिसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज कहा गया था.

एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये के इस राहत पैकेज का फोकस आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर रखा गया था. इसमें गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न, मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में वृद्धि, मजदूरी में बढ़ोतरी है, अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बीमा, किसानों, विधवाओं, बुजुर्गों और विकलांगों को धनराशि, गरीबी रेखा से नीचे गुजर करने वाले परिवारों को अगले मुफ्त गैस के सिलेंडर, महिला स्वयंसेवी समूहों को और ज्यादा कोलैटरल मुक्त लोन, भविष्य निधि (प्रॉविडेंट फंड) खातों में सरकार द्वारा योगदान इत्यादि कदम शामिल थे.

अर्थव्यवस्था को जो घाटा हुआ है उसकी भरपाई के लिए जितनी रकम के स्टिमुलस पैकेज की आवश्यकता थी, उतनी धनराशि कभी सरकार ने जारी ही नहीं की.तस्वीर: Aamir Ansari/DW

अपर्याप्त स्टिमुलस

मई में कोविड-पैकेज की दूसरी किस्त आई जिसका मूल्य लगभग तीन लाख करोड़ रुपए था. इसमें किसानों, प्रवासी श्रमिकों और रेहड़ी-पटरी वालों के लिए कुछ कदम थे, जैसे गरीबों और विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों के लिए अन्न की मुफ्त आपूर्ति, रेहड़ी-पटरी वालों के लिए आसान लोन, छोटे व्यापारियों को लोन के ब्याज पर दो प्रतिशत की छूट और छोटे और मझौले किसानों के लिए लोन लेने में मदद इत्यादि.

हालांकि सरकार का दावा है कि वो अभी तक कुल 29,87,641 करोड़ रुपयों के स्टिमुलस कदमों की घोषणा कर चुकी है, जिसमें आत्मनिर्भर पैकेज 3.0 भी शामिल है. जानकारों का लगातार यह कहना रहा है कि एक तो अर्थव्यवस्था को जो घाटा हुआ है उसकी भरपाई के लिए जितनी रकम के स्टिमुलस पैकेज की आवश्यकता थी, उतनी धनराशि कभी सरकार ने जारी ही नहीं की.

दूसरी बात यह कि जिन कदमों की घोषणा सरकार ने की भी उनमें सरकारी खर्च का अनुपात बहुत कम था. ऐसे में इन पैकेजों से वास्तविक राहत मिलने की उम्मीद बहुत कम थी. हालांकि अब जानकार मानते हैं कि अगर तालाबंदी के शुरूआती असर से तुलना करें तो स्थिति में कुछ सुधार जरूर आया है. आरबीआई ने जहां अप्रैल से मई की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 24 प्रतिशत गिरावट का अनुमान लगाया था, वहीं जुलाई से सितंबर की दूसरी तिमाही में लगभग 9 प्रतिशत गिरावट का अनुमान लगाया है.

कोविड के पहले के स्तर के मुकाबले अभी भी अत्यंत चिंताजनक स्थिति है लेकिन कोविड शुरू होने के बाद की स्थिति में तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है.तस्वीर: DW

दूसरी तिमाही में थोड़ा सुधार

नई दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से जुड़े अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनके आकलन के मुताबिक पहली तिमाही में लगभग 45 प्रतिशत की गिरावट थी जो दूसरी तिमाही में थोड़ा संभल कर 30 प्रतिशत पर सिमट गई है. ये कोविड के पहले के स्तर के मुकाबले अभी भी अत्यंत चिंताजनक स्थिति है लेकिन कोविड शुरू होने के बाद की स्थिति में तुलनात्मक रूप से सुधार हुआ है.

अर्थव्यवस्था में मूल संकट मांग का है, मतलब लोग आवश्यक चीजों के अलावा और कुछ खरीद नहीं रहे हैं. अरुण कुमार कहते हैं कि मांग कुछ हद तक बढ़ी है लेकिन उतनी ही जितनी धनराशि मांग को प्रोत्साहन देने के लिए अर्थव्यवस्था में सरकार ने लगाई थी, जो अपने आप में काफी अपर्याप्त थी. इसलिए मांग में अभी भी कमी देखी जा रही है. जानकारों का कहना है कि इस समय त्योहारों का मौसम होने के बावजूद बाजारों में जितनी भीड़ है उतनी खरीद-बिक्री नहीं हो रही है.

अरुण कुमार का कहना है कि इस समय सिर्फ टेलीकॉम, फार्मा, आईटी और एफएमसीजी जैसे चुनिंदा क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी सब क्षेत्रों में गिरावट चल रही है और इसी वजह से यह नहीं कहा जा सकता कि पूरी अर्थव्यवस्था में सुधार आ गया है.

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