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आत्महत्या करते किसानों की स्वराज यात्रा

११ दिसम्बर २०१०

भारत के 20 राज्यों के किसानों की किसान स्वराज यात्रा साबरमती से होती हुई राजघाट पर समाप्त हुई. किसानों की सैकड़ों समस्याएं हैं. बीते 13 साल में भारत में दो लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

तस्वीर: UNI

किसान स्वराज यात्रा, 70 दिन की यह यात्रा बापू की आराध्य स्थली साबरमती से उनके जन्म दिवस पर आरंभ हुई और उनकी समाधी राजघाट पर संपन्न हुई. गांधी के स्वराज आन्दोलन की तरह देश भर में कृषि और खाद्य में स्वराज लाने के लक्ष्य पर केन्द्रित थी यह यात्रा.

यात्रा का एक पड़ाव राजस्थान था और किसानों तथा खेती की समस्याओं को जानने की जिज्ञासा मुझे भी यात्रा में ले गयी. सैंकड़ों किसान शामिल थे यात्रा में अपनी सैंकड़ों समस्याओं के साथ.

यात्रा की सयोंजिका कविता कुरूगंदी कहती हैं की देश के सभी किसानों के लिए न्यूनतम मजदूरी की गारंटी, प्राकृतिक संसाधनों की किसानों को प्रचुर उपलब्धता और सभी देशवासियों के लिए पौष्टिक भोजन मुहैयां कराना, यात्रा के मुख्य उद्देश्य हैं.

उनका यह भी कहना था कि सरकार द्वारा किसानों और कृषि की लगातार अनदेखी की जा रही है जिसके चलते वर्ष 1991 से 2001 के बीच 80 लाख किसानों ने खेती करना छोड़ दिया.

मजदूर बन रहे हैं किसानतस्वीर: AP

यात्रा में मध्य प्रदेश के किसान भोला भी शामिल रहे. भोला पिछले दिनों अपने एक किसान रिश्तेदार द्वारा की गयी आत्महत्या से काफी दुखी थे. उनका कहना था कि बढ़ता क़र्ज़, खाद की कमी और फसल का चौपट होना, उसकी आत्महत्या का प्रमुख कारण था.

यूं भी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1997 से अब तक दो लाख किसान ख़ुदकुशी कर चुके हैं. किसान यात्रा में सबसे ज्यादा बवाल देश के किसानों पर थोपे जा रहे विदेशी कम्पनियों द्वारा उत्पादित बीजों को लेकर था.

फागी की महिला किसान श्रीमती आशा देवी शर्मा का तो कहना था कि राज्य सरकारें विदेशी कम्पनियों के साथ अनर्गल कृषि समझौते कर रहीं है जिसके फलस्वरूप यह कम्पनियां देश के कृषि, कृषि अनुसंधान और भावी कृषि व्यापारों को नियंत्रित करने की स्थिति में आ जाएंगीं.

राजस्थान सरकार द्वारा हाल में 'मोसेन्टों' नाम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ किये गए समझोते के खिलाफ तो जैसे सभी किसान लामबंद थे.

तस्वीर: AP

उनका कहना था इस से प्रदेश में मक्का, कपास और सब्जियों के संकर बीजों को प्रवेश मिल जायेगा जो न किसानों के हित में होगा और ना ही उनका उपयोग करने वालों के.

आशा देवी का कहती हैं कि संकर बीजों की फसलें स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल है जिनका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव औरतों और बच्चों पर पड़ता हैं.

यात्रा में मौजूद कृषि और विकास वैज्ञानिक सरदार सुरजीत सिंह ने कहा कि कृषि क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया में मौलिक बदलाव की ज़रुरत है और खेती ऐसी होनी चाहिए जो प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान न करे. जंगल, जमीन, बीज और पानी पर गरीब किस्सनों का पहला अधिकार होना चाहिए और खेती का उद्देश्य लाभ नहीं, भोजन सुरक्षा होना चाहिए .

यात्रा में सम्मिलित थे जयपुर के गिरधारीपुरा गांव के किसान 'रामेश्वर मीना' जो अपने साथियों द्वारा कही गयी बातों को प्रत्यक्ष प्रमाणित करने के लिए हमे अपने गांव ले जाने पर आमदा थे.

वहां उनका आधा अधूरा खेत है. सरकार उनकी आधी ज़मीन एक आवासीय योजना के लिए अधिग्रहित कर चुकी है. उस जमीन पर पर उनके एक रिश्तेदार "राम चरण मीना" भी रहते थे जिनके सामने अब रोजगार के साथ साथ आवास भी एक समस्या बन मुहं बाये खड़ा थी.

पीढ़ियों से खेती करते आ रहे राम चरण अब अपने बेटों को खेती छोड़ नया व्यवसाय शुरू करना, वक्त की जरुरत बता रहे थे. खेत पर काम कर रही एक खेतिहर मजदूर "अवन्ती देवी" बिजली की अनुपलब्धता को लेकर खासी परेशान दिख रही थीं . उसका कहना है कि एक तो पहले ही कुंए में पानी नहीं है और जो है उसे बिजली की लुकाछिपी के चलते समय पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

इस कड़ाके की ठण्ड में रात में कब बिजली आती है पता ही नहीं चलता. हमारी बातचीत जारी थी किमेरी नज़र राम चरण के १४ वर्षिय पुत्र शंकर पर पडी. भविष्य में क्या बनोगे के सवाल पर वो सिर्फ इतना बोला "किसान" तो बिल्कुल नहीं .

रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, जयपुर

संपादन: ओ सिंह

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