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समाज

आत्महत्या को मजबूर बुंदेलखंड के किसान

२ जनवरी २०१८

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों से बने बुंदेलखंड में इन दिनों किसानों का बुरा हाल है. रोजगार के अभाव में यहां के किसान और उनके परिवार आत्महत्या को मजबूर हैं. साथ ही जो बचे हैं वह पलायन कर रहे हैं.

Indien - Bauern-Suizide
तस्वीर: IANS

किसान का बेटा आत्महत्या कर लेता है, कर्ज के चलते किसान खुदकुशी कर लेता है, फसल बर्बाद होने पर बुजुर्ग महिला किसान दुनिया छोड़ देती है, तो बेटी का इलाज कराते-कराते थक चुका बाप फांसी के फंदे पर झूल जाता है. यह कहानी है उस बुंदेलखंड की, जहां के लोग कभी हालात से लड़ने में पीछे नहीं रहे, मगर व्यवस्था की मार ऐसी कि उन्हें अब मृत्युराग ही रास आने लगा है. इस क्षेत्र को न तो सरकारों का साथ मिला है और प्रकृति की ओर से इन्हें जो मार पड़ रही है वह भी कम नहीं. बुंदेलखंड का इलाका सूखा, अति वर्षा, पाला पड़ने जैसी समस्याओं से जूझता रहा है. ऐसे में थक हार के किसान आत्महत्या का रास्ता चुन रहा है.

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मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर बने बुंदेलखंड में दोनों ही राज्यों की स्थिति कमोबेश एक सी है. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के बाबाखेरा गांव में 28 साल के हजारी लाल आदिवासी ने फांसी लगाकर शनिवार रात जान दे दी. इसी जिले के पृथ्वीपुर थाने के बरगोला खिरक धनीराम कुशवाहा ने 29 दिसंबर को आत्महत्या कर ली. इसके परिवार के पास डेढ़ एकड़ जमीन है लेकिन सूखा पड़ गया और खेती नहीं हुई.

झांसी के उल्दन थाना के बिजना गांव में 67 साल की बुजुर्ग किसान महिला धनकुंवर कुशवाहा ने 25 दिसंबर को फांसी के फंदे से लटककर सिर्फ इसलिए जान दे दी, क्योंकि फसल चौपट हो गई थी. बैंक का कर्ज था. परिवार में शादी सिर्फ इसलिए टूट गई थी कि उसके परिवार पर कर्ज था. फसल चौपट हो चुकी थी और दूसरा कोई कारोबार नहीं था जिसके चलते धनकुंवर तनाव में थी.

तस्वीर: IANS

बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह जिले- छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिलों- झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) को मिलाकर बनता है. सूखे के चलते यहां के खेत मैदान में बदल चुके हैं, यहां के मजदूर अमूमन हर साल दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर तक काम की तलाश में जाते हैं. इस साल यहां पलायन बीते वर्षो से कहीं ज्यादा है.

मध्य प्रदेश में वर्ष 2017 में 760 किसान और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की. विधानसभा में जुलाई, 2017 में मध्यप्रदेश सरकार ने बताया था कि राज्य में सात माह में खेती से जुड़े कुल 599 लोगों ने खुदकुशी की, जिनमें 46 बुंदेलखंड से थे. वहीं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों का हाल और भी बुरा है.

जल-जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने बताया, "बुंदेलखंड में किसान की आर्थिक तौर पर कमजोर हो गया है. झांसी जिले के बबीना विकास खंड का एक किसान अपनी बेटी के इलाज के लिए झांसी से बेंगलुरू तक चक्कर लगाता रहा. इसके लिए साहूकार से कर्ज लिया लेकिन डेढ़ एकड़ जमीन में कुछ पैदावार नहीं हुई और उसने आत्महत्या कर ली." इस इलाके में लगातार तीसरे वर्ष सूखा पड़ा है.

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आम किसान यूनियन के संस्थापक सदस्य केदार सिरोही ने कहा, "सरकार किसानों की आमदनी दो गुना करने का वादा करती है, फसल के डेढ़ गुना दाम देने की घोषणा होती है. कर्ज माफी की बात कही जाती है, मगर जमीन पर कुछ नहीं होता. खेती की लागत बढ़ती जा रही है, वह हर बार नई संभावना के चलते कर्ज लेकर खेती करता है, मगर उसके हिस्से में घाटा आता है. पढ़ाई और स्वास्थ्य का इंतजाम भी उसके लिए आसान नहीं. यही कारण है कि जब किसान हताश हो जाता है, तो आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर होता है."

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्य सरकारें फसल नुकसान और कर्ज जैसी बातों को आसानी से नहीं स्वीकारती. सरकारें चाहे जो दावे करें, मगर हकीकत तो यह है कि बुंदेलखंड से किसान सूखे के कारण पलायन कर रहे हैं, कर्ज बढ़ने और फसल चौपट होने से आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हैं

आईएएनएस

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