मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों से बने बुंदेलखंड में इन दिनों किसानों का बुरा हाल है. रोजगार के अभाव में यहां के किसान और उनके परिवार आत्महत्या को मजबूर हैं. साथ ही जो बचे हैं वह पलायन कर रहे हैं.
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किसान का बेटा आत्महत्या कर लेता है, कर्ज के चलते किसान खुदकुशी कर लेता है, फसल बर्बाद होने पर बुजुर्ग महिला किसान दुनिया छोड़ देती है, तो बेटी का इलाज कराते-कराते थक चुका बाप फांसी के फंदे पर झूल जाता है. यह कहानी है उस बुंदेलखंड की, जहां के लोग कभी हालात से लड़ने में पीछे नहीं रहे, मगर व्यवस्था की मार ऐसी कि उन्हें अब मृत्युराग ही रास आने लगा है. इस क्षेत्र को न तो सरकारों का साथ मिला है और प्रकृति की ओर से इन्हें जो मार पड़ रही है वह भी कम नहीं. बुंदेलखंड का इलाका सूखा, अति वर्षा, पाला पड़ने जैसी समस्याओं से जूझता रहा है. ऐसे में थक हार के किसान आत्महत्या का रास्ता चुन रहा है.
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर बने बुंदेलखंड में दोनों ही राज्यों की स्थिति कमोबेश एक सी है. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के बाबाखेरा गांव में 28 साल के हजारी लाल आदिवासी ने फांसी लगाकर शनिवार रात जान दे दी. इसी जिले के पृथ्वीपुर थाने के बरगोला खिरक धनीराम कुशवाहा ने 29 दिसंबर को आत्महत्या कर ली. इसके परिवार के पास डेढ़ एकड़ जमीन है लेकिन सूखा पड़ गया और खेती नहीं हुई.
झांसी के उल्दन थाना के बिजना गांव में 67 साल की बुजुर्ग किसान महिला धनकुंवर कुशवाहा ने 25 दिसंबर को फांसी के फंदे से लटककर सिर्फ इसलिए जान दे दी, क्योंकि फसल चौपट हो गई थी. बैंक का कर्ज था. परिवार में शादी सिर्फ इसलिए टूट गई थी कि उसके परिवार पर कर्ज था. फसल चौपट हो चुकी थी और दूसरा कोई कारोबार नहीं था जिसके चलते धनकुंवर तनाव में थी.
बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह जिले- छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिलों- झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) को मिलाकर बनता है. सूखे के चलते यहां के खेत मैदान में बदल चुके हैं, यहां के मजदूर अमूमन हर साल दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर तक काम की तलाश में जाते हैं. इस साल यहां पलायन बीते वर्षो से कहीं ज्यादा है.
मध्य प्रदेश में वर्ष 2017 में 760 किसान और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की. विधानसभा में जुलाई, 2017 में मध्यप्रदेश सरकार ने बताया था कि राज्य में सात माह में खेती से जुड़े कुल 599 लोगों ने खुदकुशी की, जिनमें 46 बुंदेलखंड से थे. वहीं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों का हाल और भी बुरा है.
जल-जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने बताया, "बुंदेलखंड में किसान की आर्थिक तौर पर कमजोर हो गया है. झांसी जिले के बबीना विकास खंड का एक किसान अपनी बेटी के इलाज के लिए झांसी से बेंगलुरू तक चक्कर लगाता रहा. इसके लिए साहूकार से कर्ज लिया लेकिन डेढ़ एकड़ जमीन में कुछ पैदावार नहीं हुई और उसने आत्महत्या कर ली." इस इलाके में लगातार तीसरे वर्ष सूखा पड़ा है.
आम किसान यूनियन के संस्थापक सदस्य केदार सिरोही ने कहा, "सरकार किसानों की आमदनी दो गुना करने का वादा करती है, फसल के डेढ़ गुना दाम देने की घोषणा होती है. कर्ज माफी की बात कही जाती है, मगर जमीन पर कुछ नहीं होता. खेती की लागत बढ़ती जा रही है, वह हर बार नई संभावना के चलते कर्ज लेकर खेती करता है, मगर उसके हिस्से में घाटा आता है. पढ़ाई और स्वास्थ्य का इंतजाम भी उसके लिए आसान नहीं. यही कारण है कि जब किसान हताश हो जाता है, तो आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर होता है."
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्य सरकारें फसल नुकसान और कर्ज जैसी बातों को आसानी से नहीं स्वीकारती. सरकारें चाहे जो दावे करें, मगर हकीकत तो यह है कि बुंदेलखंड से किसान सूखे के कारण पलायन कर रहे हैं, कर्ज बढ़ने और फसल चौपट होने से आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हैं
क्या होता है जब गांव में निकलता है सोना
बन्टाको अफ्रीकी देश सेनेगल के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बसा एक छोटा सा गांव है. 2008 तक यह एक खेती किसानी करने वालों का एक आम गांव था लेकिन फिर इस गांव में मिला सोना और गांव की स्थिति ही बदल गयी.
तस्वीर: DW/F. Annibale
सुनहरे पत्थर
बन्टाको गांव में सोने की एक छोटी सी खदान का सारा काम देखने वाले डोऊसा कहते हैं, "जब हमने 2007-2008 में सोना खोजा, गांव पूरी तरह बदल गया. गांव में हम 2 हजार लोग रह रहे थे, लेकिन अब यहां 6 हजार से भी ज्यादा लोग रहते हैं". बन्टाको की खदानों में हर रोज 3 हजार से भी ज्यादा खनिक काम करते हैं, जहां उन्हें ऐसे पत्थर मिलते हैं, जिसमें थोड़ा सा सोना होता है.
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गांव के हवाले खनन का काम
इन अस्थाई सुरंगों में काम करने वाले खनिकों पर गांव के लोग अनाधिकारिक रूप से नजर रखते हैं. वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि यहां जो भी खनन के लिए आए उनके पास खनन मंत्रालय का जारी किया हुआ कार्ड हो. डोऊसा कहते हैं,"आप देखिए यहां स्टेट पूरी तरह गायब है, तो हम, गांव के लोग खनन के काम को देखते और नियंत्रित करते हैं. वो यह भी कहते हैं कि अगर किसी ने पहले उनसे बात नहीं की है तो वे वहां काम नहीं कर सकता.
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कमाई का जुगाड़
खदान में काम करने वाले मामाडोऊ कहते हैं, "मैं यहां बस काम करने के लिए हूं. मेरे गांव में कोई काम नहीं था. वहां नौकरियां नहीं थीं. यहां मैं घर भेजने के लिए पर्याप्त पैसे बचा रहा हूं. मुझे बस इसी बात की परवाह है. यहां काम करने की परिस्थितियां बहुत कठिन हैं. स्वास्थ्य, सुरक्षा नियम और श्रमिक अधिकार को कोई अता पता नहीं हैं."
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गांव की बढ़ी रफ्तार
सोने की खानों से पहले, गांव में कोई मोटरसाइकिल नहीं थी. सोने का व्यापार करने वालों को बन्टाको से दूर के इलाकों में आने जाने की जरूरत पड़ी. इसके बाद पेट्रोल बेचने वाले, मैकेनिक और दूसरे लोग इस गांव में पहुंचे और लोगों के मूलभूत जीवन को बदल दिया.
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औजारों की दुकानें भी खुलीं
बन्टाको की मुख्य सड़क के साथ-साथ गांव के कई हिस्सों में छोटी छोटी दुकानें खुल गयी हैं. इन दुकानों में घातु के वे सब औजार बिकते हैं जो मजदूरों को खुदाई के लिए चाहिए. गांव के एक दुकानदार मलिक कहते हैं, "मैं यहां बस व्यापार करने आया हूं". वे बन्टाको से दूर दूसरे इलाके में रहते हैं. कुछ साल पहले तक यहां दूर दूर तक ऐसा व्यापार कर सकने की कोई गुंजाइश नहीं थी.
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खेती से खनन तक का सफर
इस गांव में रह रहे 45 वर्षीय वाले केईटा कहते हैं, "सोने की खोज करने से पहले इस गांव में मुश्किल से कोई पक्का घर था. यहां तक कि मेरा अपना घर भी, जो अब सीमेंट और ईंट का बन गया है. ये कभी संभव नहीं था अगर मैं खेती ही करता रहता". केईटा पहले किसान थे लेकिन सोने के बारे में पता चलने के बाद वे भी खुदाई करने लगे.
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खनन के पुराने तरीके
सोने के खनन के लिए उद्योग में बहुत अच्छी मशीने हैं जो सोने और पत्थर को अलग कर देती हैं, लेकिन ये मशीनें महंगी हैं. गांव के जो लोग सोने की खुदाई करते हैं वे इन पत्थरों को तोड़ते हैं फिर उन्हें गीला करके कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं. फिर इन्हें दुबारा पीस कर उसमें से सोना खोजने की कोशिश करते हैं.
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मेहनत का काम
दूसरी बार पत्थरों को थोड़कर बारीक किया जाता है. इसके बाद उन्हें एक छलनी से छाना जाता है और इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि उस मिश्रण में से सोने का हर टुकड़ा चुन लिया जाए. इस काम को करने में घरों में सभी लोग साथ देते हैं. गर्मियों की दिनों में जब स्कूलों में छुट्टी होती है तब बच्चे भी इस काम में हाथ बंटाते हैं.
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पर्यावरण को नुकसान
गांव की आर्थिक स्थिति में जो उछाल आया उससे गांव में काम करने वाले लोगों के साथ नयी परेशानियां भी साथ आईं. जैसे खनन से निकलने वाले कचरे की समस्या. गांव के लोग खुदाई के बाद के सारे कचरे को गांव के पास की नदी में यूं ही बहा देते हैं. गांव के कुछ लोगों को इस बात की भी चिंता है कि एक दिन जमीन से सोना निकलता बंद हो जाएगा. तब इस गांव का क्या होगा.