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आदमी के करीब आता बंगाल टाइगर

२२ सितम्बर २०१२

जितना चालाक, उनता ही खूंखार लेकिन जब जीवन पर संकट की हो तो खुद को बदलने में ही भलाई है. ये बात बाघ भी जानते हैं. रिसर्च में पता चला है कि बाघ खुद को बचाने के लिए अपनी आदत बदल रहे हैं, वो आदमी के करीब आ रहे हैं.

तस्वीर: AP

ये बदलाव वाकई आश्चर्यचकित करने वाला है. रिसर्च में पता चला है कि जो बाघ पहले इंसानी इलाके से दूर भागते थे अब वो उसी इलाके में रहने की आदत डाल चुके हैं. बस, फर्क समय का है. ये नतीजा सामने आया है दक्षिणी नेपाल के चितवन नेशनल पार्क में बाघों पर किए गए एक शोध में. यहां के बाघ दुनिया में बंगाल टाइगर के नाम से मशहूर हैं.

रिसर्च के दौरान पता चला कि पार्क के जिन रास्तों से दिन में इंसान गुजरते हैं उन्ही रास्तों पर रात में बाघ टहलते हैं. दो साल तक चले शोध के नतीजों को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में भी प्रकाशित कराया गया है. शोध से जुड़े रहे मिशिगन स्टेट युनिवर्सिटी के नील कार्टर का कहना है,"इस शोध के बाद बाघों की अनुकूलन छमता के बारे में नये सवाल पैदा हो गए हैं. रात के समय ज्यादा सक्रिय होने की उनकी आदत बताती है कि वो इंसान के आसपास के इलाकों में रह सकते हैं. बशर्ते वहां पर शिकार मिलने की संभावना पर्याप्त हो."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पर्यटकों के बीच मशहूर चितवन में इस समय 125 जवान बाघ रहते हैं. ये जंगल चारों ओर से इंसानी बस्तियों से घिरा है जिसमें 5 लाख 60 हजार लोग रहते हैं. कभी कभार ऐसा भी होता है कि बाघ किसी जानवर को मार देता है. 1998 से लेकर 2006 के बीच 65 लोगों पर बाघों ने हमला किया.

चीते की आदतों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए कार्टर और उनकी टीम ने जंगल में 80 जगहों पर कैमरा लगाया था. कैमरों में दर्ज हुई गतिविधियों के बाद पता चला है कि बाघ उन इलाकों में दिन और रात दोनों वक्त सक्रिय रहते हैं जहां इंसानी गतिविधि कम रहती है. इनकी तुलना में इंडोनेशिया और मलेशिया के बाघ दिन के वक्त ज्यादा सक्रिय होते हैं.रिसर्च के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि ये शायद ये इसलिए हुआ है कि चितवन में लोग लकड़ी काटने के लिए बार बार आते जाते रहते हैं.

तस्वीर: dapd

रिसर्च के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है, "करीब 80 फीसदी बाघ संरक्षित इलाकों से बाहर निकल कर ऐसे इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं जहां इंसान कई तरह के कामों के लिए आता जाता रहता है. यह जंगल संरक्षित इलाकों की सीमा से बाहर हैं और लंबे समय के लिए बाघों को बचाने के लिहाज से जरूरी. इसके साथ ही यह जंगल इकोसिस्टम और स्थानीय मानव समुदाय के लिए भी अच्छे हैं."

दुनिया भर में बाघों की संख्या पिछले 100 सालों में बेहद तेजी से कम हुई है. इन्हें बचाने के लिए कई संस्थाएं आम लोगों और सरकार को जागरुक करने के अभियान में जुटी हैं. पशुओं की भलाई के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन वर्ल्ड वाइल्ड फंड के मुताबिक पिछले 1900 में जहां बाघ की संख्या पूरी दुनिया में करीब 1 लाख थी जब अब घट कर कोई 3200 के आस पास आ गई है.

वीडी/एनआर (एएफपी)

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