शेका का जंगल इथियोपिया के पहाड़ी जंगलों का हिस्सा है. यहां पौधों और पशुओं की बहुत सारी प्रजातियां हैं. इस अद्भुत इकोसिस्टम को यहां रहने वाले लोगों की मदद के बिना बचाना मुश्किल है
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दक्षिण पश्चिम इथियोपिया में 2300 वर्ग किलोमीटर में फैला शेका जंगल देश के चुनिंदा हरे भरे इलाकों में से एक है. यह अफ्रीका का सबसे संकटग्रस्त इकोसिस्टम है. यहां बहुत सी दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनके लुप्त होने का खतरा बना हुआ है. हालांकि जंगल की जैविक विविधता को बचाने की जी जान से कोशिश हो रही है. जंगल का एक सेंट्रल जोन है, जहां जाने की मनाही है. और एक डेवलपमेंट जोन भी है जिसमें 50,000 की आबादी वाला माशा शहर भी शामिल है. यह इलाके का सबसे बड़ा शहर है. यहां की आबादी बढ़ रही है.
यूनेस्को के बायो स्फेयर रिजर्व फॉरेस्ट के आधे हिस्से में फैले विकास जोन को टिकाऊ तरीके से इस्तेमाल करने की योजना है. लेकिन ज्यादा खेत का मतलब है कम जंगल. तो फिर जंगल की सुरक्षा कैसे की जाए? यहां रहने वाले असेसो कबीले के मुखिया डाकीटो अटेस्टा कहते हैं, "हम स्थानीय और सरकारी प्रतिनिधियों से परामर्श करते हैं. इस तरह हम जंगल की सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं." सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां जंगल के इलाके में रहने वाले आदिवासियों को पशुपालन जैसे जीवनयापन के नए साधनों से परिचित करा रहे हैं.
मसलन मधुमक्खी पालन उनके लिए अतिरिक्त आय का जरिया हैं. इथियोपिया के राहत संगठन मेलका ने मधुमक्खी पालन के डब्बे किसानों के लिए खरीदे हैं और उन्हें मधुमक्खी पालने की ट्रेनिंग दी है. राहत संगठन के कार्यकर्ता अडूंगा शावेना कहते हैं, "इस तरह हमने किसानों को जंगल की निर्भरता से आजाद किया है और वे साथ दे रहे हैं. इसका फायदा यह है कि यदि वे ग्रुप में आधुनिक मक्खीपालन करते हैं तो पेड़ काटने की ज़रूरत नहीं है." मधुमक्खीपालक आएले अलेमायेहू भी इस अभियान में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं, "शहद बेचकर हम बच्चों के लिए कपड़े खरीद सकते हैं, स्कूल के लिए किताबें, हम कर चुकाते हैं और कमाई से घर बनाते हैं."
आमदनी का एक और जरिया चाय और कॉफी के बागान हैं. पहले इसके लिए जंगल के बड़े इलाकों में पेड़ काट दिए जाते थे. अब उसकी अनुमति नहीं मिलती. लेकिन बीच का रास्ता निकल ही आता है. एक सऊदी निवेशक का चाय बागान 10 वर्गकिलोमीटर में फैला है. टी एस्टेट के अंदर एक शहर बस गया है. नौजवान लोगों को यहां काम मिला है. वे महीने में लगभग तीन हजार रुपये कमा लेते हैं जो इथियोपिया में औसत कमाई है. कॉफी के पौधों को छांव की जरूरत होती है. इसलिए पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं है.
कुदरत को समझते आदिवासी
कुदरत की सबसे ज्यादा अहमियत समझने वाले आदिवासी दुनिया भर में अनूठे तरीकों से इसकी रक्षा कर रहे हैं.
तस्वीर: Toby Nicholas/ Survival
पालतू बंदर
ब्राजील की आवा जनजाति की महिलाएं बंदरों के अनाथ हो गए बच्चों का खयाल रखती हैं. इन दिनों उनके जंगलों में गैरकानूनी ढंग से पेड़ों की कटाई हो रही है. यहां तक कि जमीन की बढ़ती चोरी और हमलों के बीच उनका खुद का अस्तित्व खतरे में आ गया है.
तस्वीर: Domenico Pugliese/Survival
आत्मनिर्भर समुदाय
अर्जेंटीना की विची जनजाति के लोग नदी की सतह पर होने वाली मामूली हलचल के आधार पर मछली का शिकार करते हैं. आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था सरवाइवल इंटरनेशनल का मानना है कि आदिवासियों ने समय के साथ अपना हुनर भी बढ़ाया है.
तस्वीर: John Palmer/Survival
पारदर्शी जुगाड़
आदिवासी जातियों को प्रकृति के संकेतों का पता होता है. अंडमान में रहने वाले मोकेन आदिवासियों की नजर आम लोगों की नजर से काफी तेज होती है. समुद्र तल में बैठी मछलियों और जीवों को खाने के लिए ढूंढ निकालने की उनमें अलग ही क्षमता है.
तस्वीर: James Morgan/Survival
प्रकृति के इशारे
प्रमोकेन समुदाय का इतिहास समुद्र, वायु और चन्द्रमा के चक्र की जानकारियों से भरा है. उन्हें समुद्र की खतरनाक लहरों के बारे में पता चल जाता है. 2004 में सुनामी से पहले ही मोकेन के बड़े बूढ़ों ने इस खतरे से आगाह कर दिया था और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले गए थे.
तस्वीर: Cat Vinton
जंगलों में जीवन
जंगलों में रहना मुश्किल तो है लेकिन इन्हें शिकार करने की जुगत पता है. बोर्नियो के वर्षा वनों में रहने वाले आदिवासी जंगली सुअर के शिकार के लिए इस तरह के पाइप का इस्तेमाल कर खास पेड़ों से निकला जहर फूंकते हैं, जिससे जानवरों के दिल की धड़कन रुक जाती है.
तस्वीर: Victor Barro/Survival
अनूठा संचार
1960 तक बोर्नियो के आदिवासी जंगलों में खानाबदोश जीवन जीते थे. वे पत्तियों और पेड़ों की डंठलों का इस्तेमाल कर एक जटिल सिग्नल सिस्टम के जरिए एक दूसरे को संदेश भेजा करते थे. उनकी भाषा में इसे ऊरू कहते हैं. खेती और पनबिजली बनाने के लिए जंगल काट दिए गए हैं.
तस्वीर: Sophie Grig/Survival
देसी इलाज
समय के साथ आदिवासियों ने अपने इलाज के देसी तरीके और दवाइयां भी खोज निकाली हैं. पेड़ की छाल से आंखों का इलाज और खुशबूदार पत्तियों से जुकाम का इलाज. पश्चिमी चिकित्सा की कई औषधियों में इस्तेमाल होने वाले तत्वों की खोज आदिवासियों ने ही की है.
तस्वीर: William Milliken/Survival
पक्का हुनर
तंजानिया के हजदा आदिवासी समुदाय के हथियार उनके माहौल और जरूरतों के अनुकूल बनाए गए हैं. अपने धनुष का तार वे पशुओं के ऊतकों से और बाण लकड़ी से बनाते हैं. बाण की नोक को वे झाड़ियों से निकाले गए जहरीले अर्क में डुबोते हैं.
तस्वीर: Joanna Eede/Survival International
जानवरों से दोस्ती
कुछ पशु पक्षियों से हजदा जाति के लोगों ने दोस्ती भी कर ली है. ये चिड़ियां पेड़ों पर फुदक फुदक कर उन्हें मधुमक्खियों के छत्ते का पता बताती हैं. मधुमक्खियों को धुएं से भगाकर शहद निकाला जाता है. इन चिड़ियों को इनाम में बचा हुआ शहद मिलता है.
तस्वीर: Joanna Eede/Survival International
खूब नकलची
आदिवासियों को अपने आसपास के पशुओं की आदतों और आवाजों का भी खूब अंदाजा होता है. जानवरों को झाड़ियों से बाहर बुलाने के लिए वे अक्सर इसी हुनर का इस्तेमाल करते हैं. साइबेरिया के शिकारी बारहसिंघे के बच्चे की ऐसी आवाज निकालते हैं कि जैसे वह अपनी मां को पुकार रहा हो.
तस्वीर: Kate Eshelby/Survival
पोषक शिकार
साइबेरिया के आदिवासियों के बीच बारहसिंघा सबसे पसंदीदा शिकार है. वे इसे कच्चा, उबालकर या ठंडा करके भी खाते हैं. खून को भी अलग नहीं करते जिसमें अच्छी मात्रा में विटामिन होता है. बारहसिंघे के दूध में भैंस के दूध के मुकाबसे 6 गुना ज्यादा वसा होती है.
तस्वीर: Steve Morgan
भविष्य पर नजर
आवा आदिवासी इस बात का भी खयाल रखते हैं कि वे संसाधनों का जरूरत भर ही इस्तेमाल करें.
तस्वीर: Toby Nicholas/ Survival
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बागान के मजदूर कहते हैं कि कॉफी की खेती पर्यावरण सम्मत तरीके से होती है, लेकिन यहां भी समझौतों की जरूरत होती है. कृषि मंत्रालय के लिए काम करने वाले अतानाफु डेग्फे कहते हैं, "अगर साया बहुत ज्यादा है और वह फसल पर असर डालता है तो कुछ पेड़ों को काट दिया जाता है. उत्पादकता और इकोसिस्टम के बीच संतुलन की कोशिश होती है."
पेड़ के बदले बैल
लूले पेड़ पौधों की खतरे में पड़ी प्रजातियों की लिस्ट पर है. यह इलाके का महत्वपूर्ण पेड़ है, इसलिए यह कबीले के प्रतिष्ठित सरदार के गार्डन में भी दिखता है. सरदार का सम्मान भी है और उनसे डर भी. इसलिए लोग उनसे आदरपूर्ण दूरी दिखाते हैं. यहां वन संरक्षण सामाजिक नियंत्रण के जरिए भी होता है. जो बिना अनुमति के पेड़ काटता है, उसे उसके बदले में एक बैल देना पड़ता है. लूले एक पवित्र पेड़ भी है जिसकी पीपल की तरह पूजा होती है. इसलिए भी उसे काटना मना है. डाकीटो अटेस्टा कहते हैं, "हमारी पवित्र जगहें पीढ़ियों से हैं. हमारे पूर्वजों ने उन्हें खोजा. हम वहां जाते हैं और बरसात और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं. ये ऐसी जगहें हैं जहां देवता हमारी बात सुनते हैं."
जंगल के सेंट्रल जोन में आने जाने की मनाही है. लेकिन वहां भी चोरी होती है. चोरी से काटी गई लकड़ी से लोगों की थोड़ी बहुत अतिरिक्त कमाई हो जाती है. सिर्फ सूखे पेड़ों की लकड़ी इतनी ज्यादा नहीं कि लोगों को खाना पकाने के लिए जरूरी लकड़ी मिल जाए. जंगल में मेंजा कबीले के लोग भी रहते हैं. वे खेती नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने लकड़ी जलाकर कोयला बनाना शुरू कर दिया. यहां भी राहत संगठन मेलका ने विकल्प चुनने में मदद दी है. उसने पुरुषों को बैल खरीद कर दिया है. वे उन्हें पाल पोस कर बेचकर कमाई करते और अतिरिक्त कमाई और बैल खरीदने में लगाते. मेंजा जनजाति के जेलेके एंडेशाने अपनी नई हालत से संतुष्ट हैं, "मैं ताकतवर हूं और कड़ी मेहनत करता हूं. अब समाज ने हमें स्वीकार लिया है."
ओरांग उटान का दम घोंटती जंगल की आग
सुमात्रा और कालीमंतन (बोर्नियो) द्वीपों पर जंगल की भीषण आग ने इंसानों ही नहीं पेड़ पौधों और जानवरों के लिए भी भारी मुश्किलें पैदा की हैं. ओरांग उटान की जिंदगी जंगल की आग ने दूभर कर दी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Fully Handoko
घर और आबादी दोनों पर खतरा
ओरांग उटान के लिए जंगल में लगने वाली आग उनके घर की बर्बादी और संख्या में कमी का कारण बन रही है. 2008 के आंकड़ों के मुताबिक बोर्नियो के जंगलों में करीब 56,000 ओरांग उटान थे. हालांकि जंगलों के कटने और लगभग हर साल होने वाली आग की घटनाओं से उनकी आबादी अब 30,000 से 40,000 के बीच ही रह गई है.
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सेहत पर असर
बोर्नियो ओरांग उटान सर्वाइवल फाउंडेशन के मुताबिक न्यारु मेंतेंग इलाके में स्वास्थ्य लाभ केंद्र में रह रहे ओरांग उटान के 16 बच्चे धुएं के कारण स्वास्थ्य समस्याओं के जूझ रहे हैं. जंगल की आग में कितने ओरांग उटान मारे गए हैं, इसकी ठीक जानकारी अभी नहीं है.
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सोने का समय
ओरांग उटान सामान्य दिनों में शाम पांच बजे सोते हैं और सुबह 4 से 5 के बीच उठ जाते हैं. लेकिन आग की स्थिति में धुएं और धुंध के रहते वे ज्यादा सोने लगते हैं. ऐसे में वे दोपहर दो-ढाई बजे सो जाते हैं और सुबह 6 बजे उठते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Burgi
कम ऊंचाई पर घर
धुंध के समय ओरांग उटान अपने बसेरे भी सामान्य से कम ऊंचाई पर बनाते हैं. साथ ही देखा गया है कि उनके खानपान के तरीके में परिवर्तन आने लगता है.
तस्वीर: picture-alliance/WILDLIFE
घर से जुदाई
आग लगने और धुंध बढ़ने की स्थिति में ओरांग उटान जिंदा रहने और पेट भरने के लिए अक्सर जंगल छोड़कर इंसानी बस्तियों की तरफ बढ़ने लगते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Fully Handoko
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शेका के लोग जंगल में रहते हैं और जंगल की मदद से जीते हैं. उसकी रक्षा उनकी जिंदगी के लिए भी जरूरी है. असेसो कबीले के मुखिया डाकीटो अटेस्टा अपनी परंपराओं को बचाने में भरोसा करते हैं, "अगर पवित्र जगहों को नष्ट कर दिया जाएगा और पेड़ काट डाले जाएंगे तो इंसान भी जिंदा नहीं रहेगा. बरसात के बिना फसल नहीं होगी. प्रलय आ जाएगा." यही वजह है कि शेका के लोगों को उम्मीद है कि जंगल अभी सालों तक यहां रहेंगे.