आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण की गाथा लिखती 'रानी मिस्त्री'
१ मार्च २०१९
झारखंड के लातेहार में उदयपुरा गांव में राजमिस्त्री का काम करने वाली सुनीता देवी महिलाओं के सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रही हैं.
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झारखंड के लातेहार जिले के उदयपुरा गांव की रहने वाली सुनीता देवी ने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस काम को उन्होंने मजबूरी में शुरु किया, एक दिन वही काम उन्हें न केवल राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार दिलाएगा बल्कि समाज में सम्मान भी.
गांव की पगडंडियों पर पैदल चलकर महिलाओं के बीच जागरूकता की अलख जगाने वाली रानी मिस्त्री ने अब तक पुरूषों का कार्यक्षेत्र माने जाने वाले राज मिस्त्री के काम में एक नई क्रांति का आगाज किया है. चापानल मिस्त्री और राज मिस्त्री के कार्यो में पारंगत रानी मिस्त्री आज न केवल महिलाओं को इन दोनों कार्यों में प्रशिक्षित कर रही हैं बल्कि इस क्षेत्र में अनूठी मिसाल पेश कर महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा बन चुकी हैं.
उदयपुरा ग्राम में रहने वाली सीधी सादी आदिवासी महिला सुनिता देवी का चयन भारत की महिलाओं को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान नारी शक्ति पुरस्कार के लिए किया गया है. आठ मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक समारोह में यह उपाधि एवं पुरस्कार स्वरुप एक लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे.
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा यह सम्मान महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में असाधारण कार्य करने के लिए प्रत्येक वर्ष देश भर की चुनिंदा महिलाओं को दिया जाता है.
सुनीता आईएएनएस को बताती हैं कि दो साल पहले उदयपुरा में कार्यरत स्वयं सहायता समूह को स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक सौ शौचालय निर्माण कराने का काम सौंपा गया था. परंतु राज मिस्त्री के नहीं मिलने या इस छोटे कामों से उनके इंकार करने के कारण उसने खुद कर्णी और सुत्ता संभाल लिया. उन्होंने बताया कि इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा मामूली प्रशिक्षण दिया गया और फिर खुद मिस्त्री बन गईं.
इसके बाद सुनीता ने 20-25 महिलाओं के साथ मिल कर शौचालय का निर्माण कर दिया. इसके बाद तो फिर इससे कमाई भी होने लगी और आनंद भी आने लगा.
लातेहार के सांसद प्रतिनिधि मुकेश कुमार पांडेय ने आईएएनएस से कहा कि महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता के ज्वलंत मुद्दों से प्रेरित होकर एक गृहिणी और राजमिस्त्री सुनीता ने बड़ा बदलाव लाया है. वे आगे कहते हैं कि उन्होंने इस गांव के सभी को स्वच्छता के दायरे में लाने के अभियान का नेतृत्व किया तथा गांव को खुले में शौच से मुक्त कराने में लोगों को प्रोत्साहित किया.
सुनीता कहती हैं कि प्रारंभ में इस कार्य के लिए न केवल पुरूष समाज के ताने सुनने को मिले बल्कि कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. सुनीता अब तक 1,500 से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को राजमिस्त्री का प्रशिक्षण दे चुकी हैं.
वे कहती हैं, "पहले इस जिले में निर्माण के क्षेत्र में महिलाओं को अकुशल मजदूर के रूप में ही मान्यता मिली थी, जो राजमिस्त्री के लिए सीमेंट, ईंट, बालू और पानी का प्रबंध करती थी. परंतु आज 1,500 से ज्यादा महिलाएं खुद राजमिस्त्री बनकर न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनी हैं बल्कि सशक्त भी हुई हैं."
रानी अपनी इस सफलता के पीछे अपने परिवार का भी योगदान मानती हैं. उदयपुरा करीब 300 घरों का गांव है. इस गांव के अधिकांश पुरूष और महिला खेतिहर मजदूर हैं या आसपास के क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं.
लातेहार के झारखंड राज्य लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी (जेएसएलपीएस) के कार्यक्रम प्रबंधक हरेंद्र कुमार कहते हैं, "यह सामूहिक परिवर्तन सामुदायिक परिवर्तन का प्रतिफल है. सुनीता ने अधिक मेहनत की जिसका यह परिणाम है." उन्होंने कहा कि हम लोगों का ध्यान केवल शौचालयों के निर्माण करने पर ही नहीं था बल्कि यह भी सुनिश्चित करना था कि गांव सामूहिक रूप से परिवर्तन की राह पर अग्रसर होते हुए खुले में शौच से मुक्त हो.
मनोज पाठक (आईएएनएस)
ऐसा कौनसा काम है जो औरतों के बस का नहीं?
आज हर तरह की नौकरी और कामकाज में महिलाएं और पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं. पुरुषों का काम समझे जाने वाले कई क्षेत्रों में महिलाओं ने पुरानी धारणा को तोड़ नई पीढ़ी के लिए मिसालें छोड़ी हैं.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
"माचोवाद है कायम"
दुनिया भर में कामकाज की जगहों पर बेहतर लैंगिक संतुलन बनाने यानि अधिक से अधिक महिलाओं को वर्कफोर्स में शामिल करने का आह्वान हो रहा है. फायरफाइटर का काम करने वाली निकारागुआ की योलेना टालावेरा बताती हैं, "जब मैंने अग्निशमन दल में काम शुरू किया था, तब पुरुषों को लगता था कि सख्त ट्रेनिंग के चलते मैं ज्यादा दिन नहीं टिक सकूंगी. हालांकि मैंने दिखा दिया कि मैं भी कठिन से कठिन चुनौती संभालने के लायक हूं."
तस्वीर: Reuters/O. Rivas
"अपनी काबिलियत में हो यकीन"
खावला शेख जॉर्डन के अम्मान में प्लंबर का काम करती हैं और दूसरी महिलाओं को प्लंबिंग का काम सिखाती भी हैं. शेख का अनुभव है, "हाउसवाइफ महिलाएं अपने घर में मरम्मत के लिए महिला प्लंबर को बुलाने में ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं." इसके अलावा वे, "लैंगिक असामना को कम करने के लिए सभी ऐसे सेक्टरों में महिलाओं और पुरुषों दोनों को काम सीखने के बराबर मौके दिए जाने की वकालत करती हैं."
तस्वीर: Reuters/M. Hamed
"लड़कों को भी औरतें ही बड़ा करती हैं"
फ्रांस के ऑइस्टर फार्म में अपनी नाव पर खड़ी फोटो खिंचवाती वैलेरी पेरॉन कहती है कि लैंगिक बराबरी की सीख बचपन में जल्द से जल्द दे देनी चाहिए. वैलेरी कहती हैं, "यह तो हमारे ऊपर है कि जब लड़कों को बड़ा करें तो उनमें बचपन से ही औरतों से बराबरी का जज्बा डालें. बचपन की परवरिश को सुधारने की जरूरत है. लड़के चाहें तो गुड़िया से खेलें और लड़कियां चाहें तो खिलौना कारों से."
तस्वीर: Reuters/R. Duvignau
"मैं पुरुषों से बेहतर हूं!"
फिलीपींस की ओकॉल एक बैकहो ऑपरेटर हैं. तीन बच्चों की इस मां को अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है. वे कहती हैं, "बड़े ट्रक चलाने वाली और बैकहो चलाने वाली बहुत कम महिलाएं हैं. लेकिन अगर पुरुष कोई काम कर सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं? मैं तो पुरुषों से इस मामले में बेहतर हूं कि वे तो केवल ट्रक चलाते हैं जबकि मैं दोनों चला सकती हूं."
तस्वीर: Reuters/E. De Castro
"होता है लैंगिक भेदभाव"
चीन के बीजिंग में डेंग चियान निर्माण स्थलों पर डेकोरेटर का काम करती हैं. उनका सीधा सादा उसूल है, "कई बार लैंगिक भेदभाव होता है. इस बारे में हम कुछ कर भी नहीं सकते. आखिरकार, हमें उस अप्रिय स्थिति को भी झेलना होता है और आगे बढ़ना होता है. चियान भी तीन बच्चो की मां हैं और अपने काम से घर चलाती हैं.
तस्वीर: Reuters/J. Lee
"भेदभाव की शुरुआत दिमाग से"
इस्तांबुल, तुर्की की सेर्पिल सिग्डेम एक ट्रेन ड्राइवर हैं. वे बताती हैं, "23 साल पहले जब मैंने ड्राइवर की नौकरी के लिए आवेदन किया था, तब मुझे कहा गया कि यह पुरुषों का पेशा है. इसीलिए मुझे लिखित परीक्षा में पुरुषों से बहुत आगे निकलना था तभी नौकरी की संभावना बनती."
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
"समाज बदला है"
जॉर्जिया की सेना में कैप्टन एकाटेरीने क्विलिविडे एयर फोर्स के हेलिकॉप्टर के सामने खड़ी होकर 2007 में सेना में भर्ती होने के समय को याद करती हैं. वे बताती हैं, "शुरू में कई परेशानियां थीं, कभी ताने तो कभी लोगों का सनकी रवैया झेला. हमेशा लगा कि वे मेरा यहां होना बिल्कुल पसंद नहीं करते. लेकिन पिछले 10 सालों में समाज भी काफी बदला है और महिला पायलट होना एक सामान्य बात हो गई है.
तस्वीर: Reuters/D. Mdzinarishvili
"हर दिन होती है औरतों की परीक्षा"
स्पेन के मैड्रिड में पालोमा ग्रानेरो इनडोर स्काईडाइविंग के विंड टनेल की हवा में गोते लगाती हुई. ग्रानेरो खुद एक स्काईडाइविंग इंसट्रक्टर हैं. कहती हैं, "पुरुषों को कुछ साबित नहीं करता पड़ता, जैसे हमें करना पड़ता है. यहां भी इंसट्रक्टर का काम ज्यादातर पुरुषों को जाता है और ज्यादातर औरतों को प्रशासनिक काम ही करने को मिलता है." (नादीने बेर्गहाउसेन/आरपी)