1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आधा गांव भारत में आधा बांग्लादेश में

४ जनवरी २०११

देश के विभाजन को भले छह दशक से ज्यादा बीत गए हों, एक गांव ऐसा भी है जहां भौगोलिक विभाजन रेखा आज तक लोगों के दिलों को नहीं बांट सकी है. यह गांव है पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले का सरदारपाड़ा.

सरदारपाड़ा गांवतस्वीर: DW

राजधानी कोलकाता से लगभग छह सौ किलोमीटर दूर सरदारपाड़ा गांव में देश का विभाजन छह दशकों बाद भी कोई असर नहीं डाल सका है. इस गांव में विभाजन के पत्थर तो जरूर लगे हैं. लेकिन दिलों में न तो दूरी पैदा हुई है और न ही दिमाग पर इन पत्थरों का कोई बोझ है.

इस गांव का आधा हिस्सा जलपाईगुड़ी जिले में है तो आधा बांग्लादेश के तेंतुलिया थाना इलाके में. मुस्लिम बहुल इस गांव को शांति का द्वीप कहा जा सकता है. गांव के 80 वर्षीय मेहरुल आलम कहते हैं, ‘हमने दिल से अब तक राजनीतिक तौर पर हुए विभाजन को कबूल नहीं किया है. गांव के 55 परिवारों ने पत्थर के कुछ खंभों को अब तक विभाजन रेखा नहीं माना है. हम सुख-दुख में यहां एक-दूसरे की सहायता करते रहे हैं. इस गांव में अपराध का नामोनिशान तक नहीं है.'

सैनिक भी खुशतस्वीर: DW

बांग्लादेश के पचागढ़ कालेज के छात्र मोहम्मद सलीम भी कहता है कि गांव के लोग यहां किसी भी तरह आपराधिक गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं कर सकते. वह बताता है, ‘भारत के सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) व बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) के जवान भी इस गांव में लोगों के मेलजोल और सांप्रदायिक सद्भाव से बेहद खुश रहते हैं. वे यहां बहुत कम आते हैं.'

गांव में एक कुआं ठीक विभाजन रेखा पर स्थित है. इसका आधा हिस्सा भारत में है और आधा बांग्लादेश में. भारत व बांग्लादेश दोनों के नागरिक इसी कुएं का पानी पीते हैं.

आधा कुआं इधर आधा उधरतस्वीर: DW

गांव की एक महिला फरीदा बीबी सवाल करती है कि ‘आप यहां क्यों आए हैं? हम यहां बाहरी लोगों को नहीं आने देते. इसकी वजह यह है कि वे लोग हमें बांटने का प्रयास करते हैं.' वह सवाल करती है कि वर्ष 1940 से ही जिस गांव में हर घर के लोग एक ही कुएं का पानी पी रहे हैं आप उसे बांट कैसे सकते हैं?

सीमा सुरक्षा बलों का रवैया कैसा है? इस सवाल पर मोहम्मद सलीम का कहना है कि वे अपना काम करते हैं. लेकिन उनसे हमें कोई परेशानी नहीं है. वह बताता है कि ‘हम सरदारपाड़ा में अपराधियों को नहीं बसने देते. आप बीएसएफ या बीडीआर से इस बात की पुष्टि कर सकते हैं.'

सरदारपाड़ा के बांग्लादेशी हिस्से में रहने वाले रहीम चाचा बताते हैं, ‘हम लोग चीनी, नमक और कपड़ों के लिए भारत पर निर्भर हैं. बांग्लादेश में इन वस्तुओं की कीमत बहुत ज्यादा है.' दिलचस्प बात यह है कि इस गांव के लोग, भले ही वे कहीं के नागरिक हों, इलाज के लिए सिलीगुड़ी के पास उत्तर बंगाल मेडिकल कालेज अस्पताल को ही तरजीह देते हैं. इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश का नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र यहां से 15 किमी दूर है. दूसरी ओर, गांव के भारतीय नागरिक अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पागलीरहाट (बांग्लादेश) के बाजार पर निर्भर हैं. वह बेहद नजदीक जो है.

मोहम्मद आलम कहते हैं, ‘विभाजन के छह दशकों के दौरान गांव के किसी भी नागरिक ने कभी किसी कानूनी का उल्लंघन नहीं किया है. दोनों देशों के नागरिक ही यहां सीमा प्रहरी की भूमिका निभाते हैं.'

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा एम

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें