आधुनिक गुलाम बन रहे हैं कंबोडिया पहुंचे प्रवासी मजदूर
३० अगस्त २०१९
थाईलैंड में कंबोडिया, म्यांमार और लाओस के लाखों प्रवासी मजदूर काम कर रहे हैं. वे उन क्षेत्रों में हैं जहां काम करने के लिए ज्यादा कुशल होने की जरूरत नहीं है.
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कंबोडिया के रहने वाले 22 वर्षीय लेंग लिडा सी-फूड इंडस्ट्री में नौकरी की उम्मीद में थाईलैंड के एक तटीय शहर में पहुंचे. वह उस समय कड़ी मेहनत करने को तैयार था लेकिन कर्ज और देरी के लिए नहीं. 2019 की शुरूआत में कंबोडिया पहुंचते ही वह काम करने लगे. लेकिन वर्क परमिट के बिना उन्हें तीन महीने किसी तरह मछली पकड़ने वाले जहाज के डॉक पर बिताने पड़े. उनके ऊपर कर्ज बढ़ता गया. इस दौरान उनके नियोक्ता ने उन्हें प्रवासी श्रमिक के रूप में नियुक्त करने के लिए कागजाती प्रक्रिया को शुरू कर दी. लेंग ने कहा, "मैं सिर्फ इंतजार कर सकता हूं. मेरे पास कर्ज चुकाने तक उसके पास काम करने के अलावा कोई चारा नहीं है. मुझे खुद के लिए पैसे कमाने से पहले नियोक्ता को रजिस्ट्रेशन फीस और अन्य खर्चे के लिए 30,000 थाई भात (980 डॉलर) चुकाने होंगे. मेरी किस्मत उसके हाथ में है." एक्टिविस्ट कहते हैं कि वहां की सरकार द्वारा सही तरीके से जांच नहीं होने से मजदूरों का शोषण होता है. एक तरह से यह आधुनिक गुलामी है.
दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र थाईलैंड ने पिछले साल प्रवासी मजदूरों के लिए निबंधन की प्रक्रिया को शुरू की. इसका मकसद विदेशी श्रमिक को स्थानीय मजदूरों की तरह अधिकार, स्वास्थ्य सुविधा, पेंशन योगदान और बच्चों के लिए भत्ता दिया जाना है. सुधार के पहले चरण में सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 20 लाख वैध प्रवासी श्रमिकों का फिर से निबंधन किया जाए. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे नियोक्ताओं द्वारा किया जाना चाहिए, लेकिन कम से कम 10,000 भात कमाने वाले मजदूरों को इसके लिए पैसे देने होते हैं. नए एग्रीमेंट के तहत वीजा, वर्क परमिट और स्वास्थय जांच में कुल खर्च 6,700 भात का खर्च आता है.
लद्दाख में सड़कें बनाते झारखंड के मजदूर
पैसे के लिए आदमी क्या कुछ नहीं करता. ऐसा ही उदाहरण हैं झारखंड से लद्दाख पहुंचे वे मजदूर जो सड़कों का निर्माण कर रहे हैं. हालांकि मजदूर इस बात से खुश हैं कि लद्दाख में काम करते हुए उनका पैसा बच जाता है.
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लद्दाख में सड़क निर्माण
हजारों मील दूर अपना घरबार छोड़ कर गए मजदूरों का एक समूह हिमालय के क्षेत्र में दुनिया की सबसे ऊंची सड़कों में शामिल सड़क को बनाने का काम कर रहे हैं. भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर चांग ला पास पर झारखंड से आए 13 मजदूर काम कर रहे हैं.
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टूरिस्टों के लिए
झारखंड जैसे गर्म प्रदेश से आए इन मजदूरों को ठंडे मौसम में काम करने का कोई खास अनुभव नहीं है. चार महीने के लिए इन्हें लद्दाख के टांगसे जिले में सड़क बनाने के लिए नियुक्त किया गया है. इस क्षेत्र में साल भर बर्फानी तूफान आते हैं. इन मजदूरों का मुख्य काम यह सुनिश्चित करना है कि नुबरा घाटी और पेंगोंग झील जाने वाला रास्ता बढ़िया स्थिति में रहे.
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मेहनताना बस कुछ हजार
इस कमरतोड़ काम के बाद इन मजदूरों को 40 हजार रुपये तक मिलेंगे. 1.3 अरब की आबादी वाले देश भारत में जहां 21 फीसदी लोग प्रतिदिन 170 रुपये से कम में गुजारा करते हैं वहां 40 हजार एक ठीक ठाक कमाई है. यहां काम कर रहे 30 साल के सुनील टूटू कहते हैं कि उनके गृह प्रदेश में कोई खास काम नहीं है. वहां काम ढूंढना मुश्किल है. इसलिए वे लोग झारखंड से आ गए हैं.
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हफ्ते का एक दिन
ये लोग हफ्ते के छह दिन काम करते हैं. रविवार ही इकलौता ऐसा दिन होता है जब लोग नहा पाते हैं, दाढ़ी बना पाते हैं. सड़क बनाने के काम में कुछ लद्दाखी लोग भी मदद करते हैं और महिलाएं भी सहयोग करती है.
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काम तक पहुंचने का तरीका
हर सुबह नाश्ते में ब्रेड और चाय के बाद मजदूर ट्रकों के इंतजार में बैठ जाते हैं. ट्रक उन्हें उनके कार्य स्थल तक ले कर जाते हैं.
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बिना बिजली जीवन
काम के बाद मजदूर अपने तंबू में जाते हैं और सूर्यास्त के बाद दाल-चावल खाते हैं. इन तंबुओं में कोई बिजली नहीं है. खाना बनाने के लिए स्टोव और मिट्टी के तेल बस है. इसके बावजूद ये मजदूर इस काम की शिकायत नहीं करते. सुनील टूटू कहते हैं कि अगर उन्हें मौका मिलेगा तो वे फिर यहां काम करने आएंगे.
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वापस आने का कारण
33 साल के मजदूर राजशेखर ने कहा कि यहां वह पैसा बचा पाते हैं. उन्होंने कहा कि घर में हम पैसा नहीं बचा पाते, वहां हम खाते हैं, पीते हैं और इसमें पैसे खत्म हो जाते हैं. राजशेखर ने कहा कि उन्हें सड़क बनाने का काम यहां अच्छा लगता है. हालांकि वह ठंडे माहौल को पसंद नहीं करते.
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प्रवासी मजदूर
ग्रामीण क्षेत्रों से अकसर लोग काम की तलाश में शहर की ओर आ जाते हैं. गैर सरकारी संस्था आजीविका ब्यूरो एजेंसी के मुताबिक लाखों मजदूर बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं. (स्रोत-एएफपी)
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हालांकि, प्रवासी और मजदूरों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों का कहना है कि नियोक्ता, बिचौलिए और दलालों की वजह से खर्च बढ़ जाता है. इस वजह से कई मजदूर शोषण के जाल में फंस जाते हैं और कर्ज को चुकता करने के लिए संघर्ष करते हैं. राइट्स वॉक फ्री फाउंडेशन के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के आंकड़े दिखाते हैं कि कर्ज का बंधन आधुनिक गुलामी का एक रूप है. थाईलैंड में इससे 6,10,000 मजदूर प्रभावित हैं.
थाईलैंड के पूर्वी प्रांत रायोंग में रहने वाले दर्जनों प्रवासी मजदूरों ने बताया कि नए सिस्टम के तहत रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए उनसे करीब 25,000 भात लिए गए जो कि सरकारी खर्चे से करीब चार गुना ज्यादा है. ऐसे मजदूरों को कानूनी सहायता उपलब्ध करवाने वाली संस्था रक्स थाई फाउंडेशन से जुड़े सा सारोएयुन ने कहा, ज्यादातर प्रवासी श्रमिकों को सूचनाएं उनके नियोक्ता या दलाल के माध्यम से मिलती है. इसी बात का फायदा नियोक्ता और दलाल उठाते हैं और श्रमिकों के काफी ज्यादा पैसे लेते हैं. ये श्रमिक समाज के अंतिम पायदान के लोग हैं. डरते हैं कि किसी तरह की गलती न हो जाए. इसलिए ये वही करते हैं, जो इनके मालिक बताते हैं.
देश के रोजगार मंत्रालय के इंस्पेक्टर जनरल सुवान दुआंगता कहते हैं, "श्रमिक मंत्रालय प्रवासियों को नए सिस्टम के तहत रजिस्ट्रेशन में लगने वाले उचित पैसे के बारे में बता रहा है. साथ ही उन नियोक्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने के लिए भी प्रेरित कर रहा है, जो ज्यादा पैसे ले रहे हैं." फिर भी प्रवासी कामगारों की मदद करने वाले संगठनों ने कहा कि उन्हें बहुत कम भरोसा है कि सरकार का संदेश प्रवासी श्रमिकों तक पहुंच पा रहा है.
बाल मजदूरी में सबसे आगे हैं ये देश
तमाम कानून और नियमों के बावजूद बाल मजूदरी आज भी कई मुल्कों में बड़ी समस्या बनी हुई है. वैश्विक जोखिमों जैसे विषयों पर शोध करने वाली लंदन की रिसर्च कंपनी वेरस्कि मेपलक्रोफ्ट ने ऐसे देशों की एक सूची जारी की है
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1. उत्तर कोरिया
इस सूचकांक में जिन 27 देशों को बाल श्रम के लिहाज से अत्याधिक जोखिम वाला बताया गया है उसमें सबसे पहले एशियाई देश उत्तर कोरिया का नंबर आता है.
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2. सोमालिया
साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक अफ्रीकी देश सोमालिया में पांच से चौदह साल के तकरीबन 38 फीसदी बच्चे बतौर बाल श्रमिक काम कर रहे हैं. निर्माण और खनन कार्य में इनसे सबसे ज्यादा काम लिया जाता है.
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3. दक्षिण सूडान
पांच साल तक गृह युद्ध झेलने वाले दक्षिणी सूडान में बच्चे खनन और निर्माण कार्य के साथ-साथ देह व्यापार में जाने को मजबूर हैं. बाल श्रम रोकने के लिए देश में श्रम कानून 2017 लाया गया लेकिन अब भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है.
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4. इरीट्रिया
अफ्रीकी देश इरीट्रिया में बच्चे कृषि के साथ साथ सोने के खनन में भी झोंक दिए जाते हैं. इसके अलावा बच्चों की तस्करी भी यहां की बड़ी समस्या है.
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5. मध्य अफ्रीकी गणराज्य
हिंसाग्रस्त अफ्रीकी इलाकों में बच्चों को गैर सरकारी हथियारबंद गुट भी बतौर चाइल्ड कमांडों भर्ती किए जाते हैं. इस पर संयुक्त राष्ट्र भी कई बार चिंता जता चुका है लेकिन अब तक जमीन पर कुछ भी ठोस नहीं हुआ है.
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6. सूडान
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के आंकड़ों के मुताबिक सूडान में तकरीबन 47 फीसदी बच्चे जोखिम भरे काम करने को मजबूर हैं. ग्रामीण इलाकों में करीब 13 फीसदी बच्चे कुल श्रम बल का हिस्सा हैं, वहीं शहरों में यह औसत करीब पांच फीसदी है.
दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला में अधिकतर बच्चे घरेलू काम और देह व्यापार में झोंक दिए जाते हैं. वेनेजुएला से हर साल हजारों बच्चों की तस्करी कर उन्हें कोलंबिया भी भेजा जाता है और उनसे बतौर सेक्स वर्कर काम लिया जाता है.
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8. पापुआ न्यू गिनी
एशिया-प्रशांत में बसे इस द्वीप में भी बच्चों को सेक्स कारोबार में लगा दिया जाता है. हालांकि स्थिति में बेहतरी के लिए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से नेशनल एक्शन प्लान टू एलीमिनेट चाइल्ड लेबर भी लॉन्च किया लेकिन अब तक कोई खास सफलता नहीं मिली.
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9. चाड
पिछली रिपोर्टों के मुताबिक चाड में अधिकतर बच्चों को कृषि कार्य में लगाया जाता है. हालांकि यहां बड़ी संख्या में बच्चों की खरीद-फरोख्त भी इसलिए होती है ताकि उन्हें तेल उत्पादन के कार्यों में लगाया जा सके.
तस्वीर: UNICEF/NYHQ2010-1152/Asselin
10. मोजाम्बिक
मोजाम्बिक के श्रम मंत्रालय ने साल 2017 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में सात से 17 साल के करीब दस लाख बच्चे बतौर बाल श्रमिक काम करने को मजबूर हैं. रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्चों को ट्रांसपोर्ट, खनन, कृषि कार्य के साथ-साथ सेक्स कारोबार में भी धकेला जाता है.
तस्वीर: Save the Children/Hanna Adcock
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थाईलैंड के रिकॉर्ड के अनुसार देश में करीब 30 लाख प्रवासी श्रमिक हैं लेकिन यूनाइटेड नेशन की माइग्रेशन एजेंसी (आईओएम) के अनुमान के अनुसार कम से कम 20 लाख से अधिक लोग अवैध रूप से थाईलैंड में रहकर काम कर रहे हैं. एक्टिविस्टों और श्रमिकों दोनों का कहना है कि अनौपचारिक शुल्क, सरकारी एजेंसी में जाने पर लगने वाले समय और कानूनी प्रक्रिया की समझ नहीं होने की वजह से कई सारे श्रमिक अवैध रूप से चले आते हैं.
रायोंग में एक फैक्ट्री में काम करने वाले 30 श्रमिकों को जब रजिस्ट्रेशन के नए सिस्टम के बारे में जानकारी दी गई तो मात्र 6 ने कहा कि वे रजिस्ट्रेशन के पैसे देने में सक्षम हैं. अन्य सभी ने कहा कि वे अपने मालिकों से पैसा देने का आग्रह करेंगें और वेतन से उसकी भरपाई कर देंगे. कंपनी के मालिक बड़ी संख्या में रजिस्ट्रेशन करवाने का काम दलालों को दे देते हैं और श्रमिकों से काफी ज्यादा पैसे लेते हैं. ऐसी स्थिति में कई सारे श्रमिक कर्ज के दलदल में फंस जाते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता कि परदेश में चढ़े इस कर्ज को उतारने के लिए उन्हें कितना लंबा इंतजार करना पड़ेगा.
कतर के वर्तमान और देश के आठवें अमीर हैं शेख तमीम बिन हमद अल थानी. 2013 में अपने पिता के बाद सत्ता संभालने वाले शेख थानी ने केवल 33 साल की उम्र में गद्दी संभाली. आइए जानें कतर के अमीर के बारे में कुछ और बातें.
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सबसे युवा अमीर
कतर के इतिहास में सबसे कम उम्र में अमीर बनने वालों में शेख तमीम का नाम शामिल है. उनके पिता शेख हमद बिन खलीफा अल थानी ने दो दशकों तक शासन किया था.
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बड़े भाई हटे
सातवें अमीर शेख खलीफा अल थानी ने 2003 में ही अपने चौथे बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जब उनके बड़े बेटे खुद किनारे हट गये.
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ब्रिटिश शिक्षा
शेख तमीम ने ब्रिटेन में पढ़ाई की. यूके के शेरबॉर्न स्कूल, हैरो स्कूल और फिर रॉयल मिलिट्री एकेडमी से वे सन 1998 में ग्रेजुएट होकर निकले.
कतर नेशनल ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष, कतर की सेना के उप प्रमुख और 2022 के कतर फीफा विश्व कप की आयोजन समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं शेख तमीम. तस्वीर में फीफा अध्यक्ष सेप ब्लैटर के साथ शेख हमद.
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स्वागत हुआ
सऊदी अरब, यूएई जैसे देशों के शेखों ने 2013 में शेख तमीम को कतर की गद्दी संभालने के मौके पर बधाइयां भेजीं और अपने देशों के साथ भाईचारा बनाये रखने की उम्मीद जतायी.
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गद्दी का खेल
शेख तमीम के पिता और कतर के सातवें अमीर शेख हमद बड़े अनोखे तरीके से गद्दी पर बैठे. 1995 में जब उनके पिता और छठे अमीर विदेश गये थे, पीछे से उन्होंने खुद को नया अमीर घोषित कर दिया.
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अर्थव्यवस्था और अमीर
कतर में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं जो अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं. सन 1995 के 8 अरब डॉलर से बढ़कर कतर की अर्थव्यवस्था 2010 में 174 अरब डॉलर की हो गयी.
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अरब नीति और अमीर
शेख हमद के काल में कतर ने व्यावहारिक नीति अपनाते हुए कई देशों से संबंध बनाये. फलस्तीन के आंतरिक विभाजन जैसे कई क्षेत्रीय मुद्दों पर मध्यस्थ की भूमिका में रहा. सीरियाई विपक्ष का भी समर्थन किया.
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विदेश नीति और अमीर
कई दशकों से कतर के मिलिट्री बेस से युद्धक विमान उड़ाने वाले अमेरिका से शेख हमद ने करीबी संबंध विकसित किये. दूसरी तरफ कतर ने बाकी अरब देशों से अलग रुख रखते हुए ईरान से भी सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये.
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अरब परिवार में झगड़ा
2014 में खाड़ी सहयोग परिषद में विवाद छिड़ा. सऊदी अरब, यूएई और बहरीन ने "आतंकी संगठन" मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करने के लिए शेख तमीम की आलोचना की. नाराज देशों ने कतर ने राजनयिक वापस लौटा दिये. कई महीनों बाद जाकर सुलह हुई.
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संबंधों पर भारी 2017
2017 की शुरुआत से ही नये विवाद भी शुरू हुए. कतर न्यूज एजेंसी पर हैकर्स का हमला हुआ और शेख तमीम के हवाले से अमेरिकी विदेश नीति की निंदा करते हुए कुछ बयान लीक कर दिये गये. इससे नाराज कई अरब देशों ने कतर से संबंध तोड़ लिए.
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कतर में भारतीय
कतर की 25 लाख की कुल आबादी में करीब 88 फीसदी लोग भारत, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों से पहुंचे प्रवासी कामगार ही हैं. यहां भारत के करीब 650,000 मजदूर काम करते हैं और कतर का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय हैं.