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आपदा को अवसर में बदल रहे बिहार के प्रवासी

मनीष कुमार
२९ जनवरी २०२१

लॉकडाउन के कारण भारी संख्या में कुशल और अर्द्धकुशल कामगार बिहार लौटे. परिस्थिति अनुकूल नहीं देख कुछ तो फिर शहरों को लौट गए. हालांकि जो रह गए वे सरकार के सहारे इस आपदा को अवसर में बदल रहे हैं.

Indien Bihar | Coronavirus | Neue Jobs Migranten
तस्वीर: Manish Kumar/DW

धीरे-धीरे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. निमिकेश पांडेय ऐसे ही प्रवासियों में हैं, जो कोरोना काल में पंजाब से घर लौटे. वे लुधियाना में स्वेटर बनाने वाली कंपनी में काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान जब घर लौटे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे जीवन-यापन होगा. काफी हाथ-पांव मारा किंतु बात कुछ बनी नहीं. आखिरकार उन्होंने अपना ही काम करने का निश्चय किया.

पूंजी की समस्या आड़े आ रही थी. बीते जुलाई महीने से जुगाड़ में लग गए. सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए, योजनाओं का पता किया और फिर दस लाख का लोन लेने में सफल रहे. पिछले दो महीने से स्वेटर बना रहे हैं. दो-तीन लाख का स्वेटर प्रदेश में बेच चुके हैं. इनके बनाए स्वेटर की मांग दूसरे राज्यों की कंपनियां भी कर रहीं हैं. निमिकेश कहते हैं, ‘‘अनुभव काम आया. मैंने धैर्य बनाए रखा. हम उत्पाद की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान रख रहे हैं. फिर हमारी लागत भी तुलनात्मक रूप से कम है. इसलिए मांग बढ़ रही है.''

घर पर रहकर ही कमाई  

निमिकेश जैसी ही कहानी बक्सर के उन दो युवकों की है जो कोरोना काल में घर लौटे और मुसीबत के अंधेरे से उजाले की राह निकाली. कोरानसराय के रहने वाले प्रमोद और संत उपाध्याय पंजाब में डिटरजेंट बनाने वाली फैक्टरी में काम करते थे. लॉकडाउन में घर लौटे और फिर यहीं डिटरजेंट पाउडर बनाने का काम शुरू किया. अब वो दो दर्जन और अपने जैसे लोगों को साथ लेकर उत्पादन और मार्केटिंग का काम भी संभाल रहे हैं.

तस्वीर: Manish Kumar/DW

प्रमोद कहते हैं, ‘‘जिस दस-पंद्रह हजार के लिए बाहर भटक रहे थे, वह घर पर रहकर ही कमा रहे हैं. गाजियाबाद से कच्चा माल मंगाते हैं और स्थानीय बाजार में अपना सामान पहुंचाते हैं. जिला उद्योग केंद्र के संपर्क में हूं, कोशिश है पूंजी का जुगाड़ हो जाए तो स्थिति और बेहतर हो.'' हालांकि उन्हें शिकायत है कि ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने की बात तो की जाती है, किंतु बैंकों का रवैया परेशान करता है. वे छोटी आधारभूत संरचना वाले उद्यमियों को ऋण नहीं देना चाहते हैं.

कारगर होगा चनपटिया मॉडल 

वाकई, ऐसे कई प्रवासी कामगार हैं जो अपने घर पर रहकर ही उद्यम खड़ा करने में सफल रहे. सरकार भी पूरे मनोयोग से उनकी मदद कर रही है. पश्चिम चंपारण का चनपटिया मॉडल आजकल काफी चर्चा में है जिसके अनुरूप प्रदेश के सभी जिलों में योजना बनाई जा रही है. दरअसल यह कमाल पश्चिम चंपारण जिले के डीएम और 76 प्रवासी कामगारों ने किया है. यहां गुजरात व राजस्थान से काफी संख्या में हुनरमंद कामगार लौटे थे जिनमें कोई साड़ी तो कोई रेडिमेड कपड़े बनाने वाली फैक्टरी में काम कर रहा था तो कोई एंब्रॉयडरी में निपुण था. स्थानीय प्रशासन ने सरकार के निर्देशानुसार स्किल मैपिंग के तहत इन प्रवासियों की उद्यमिता की पहचान की. जिला प्रशासन ने किराये पर 76 कामगारों को भारतीय खाद्य निगम के बेकार पड़े गोदाम में जगह मुहैया कराई. इनलोगों ने छोटी सी पूंजी से काम शुरू किया, सरकार ने भी मदद की.

चनपटिया मॉडल देखने पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमारतस्वीर: Manish Kumar/DW

इन कामगारों ने उन कंपनियों से बात की जहां वे पहले काम करते थे और अंतत: उन्हें अपना सामान बेचना शुरू कर दिया. अब तो इनके द्वारा तैयार किए गए कंबल और टोपी जैसे सामान सेना के जवानों तक के लिए खरीदे जा रहे हैं. जाहिर है, इन प्रवासी कामगारों ने आपदा को अवसर में बदल दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इनकी कहानी सुनकर चनपटिया पहुंचे और इनकी उद्यमिता का जायजा लिया. उन्होंने कह भी दिया कि चनपटिया मॉडल को ध्यान में रखते हुए पूरे राज्य में ऐसी कोशिश की जाएगी.

राज्य सरकार भी कर रही है कोशिश

लॉकडाउन के दौरान लौटे प्रवासियों के लिए सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा),गरीब कल्याण रोजगार अभियान, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्किल मैपिंग और कुशल व अर्द्धकुशल प्रवासियों के लिए छोटे उद्यम के सहारे रोजगार सृजन की कोशिश की. किंतु वह अपर्याप्त रही. मनरेगा के जरिए रोजगार मिलने की संभावना काफी थी वह भी कारगर नहीं हो सकी.

इसमें सबसे बड़ा अवरोध स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार, भुगतान में विलंब व बिचौलियों की मौजूदगी थी. वैसे राज्य सरकार गरीब तबके के लोगों के लिए शिशु मुद्रा ऋण योजना के प्रति काफी गंभीर है जिसके तहत पचास हजार तक का लोन दिया जा रहा है. इससे खासकर ग्रामीण स्तर पर रोजगार उपलब्ध हुआ है. प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत भी जरूरतमंदों को दस हजार रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है. हालांकि, इस योजना के लिए आवेदनों के निष्पादन की रफ्तार जरूर धीमी है. उद्योग विभाग ने सभी जिला प्रबंधकों को चनपटिया मॉडल का अध्ययन करने पश्चिम चंपारण भेजा भी था. चनपटिया मॉडल पर अमल करते हुए उद्योग विभाग प्लग एंड प्ले नाम की एक योजना पर काम कर रहा है. जिसके तहत कामगारों की स्किल मैपिंग के बाद क्लस्टर तय किए जाएंगे और उद्योगों को वर्गीकृत कर उन्हें कार्यशील पूंजी व जगह दी जाएगी ताकि वे अपना उद्यम स्थापित कर सकें. उद्योग विभाग के इनोवेशन फंड से भी मदद दिए जाने की योजना है.

प्रवासी मजदूरों ने बनाया कमाई का जरिया.तस्वीर: Manish Kumar/DW

धुलेगा पलायन का कलंक

सरकारी प्रयास जो भी हों लेकिन यह भी सच है कि बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार लौट गए. दैनिक मजदूरी पर आश्रित रहे इनलोगों के लिए बहुत दिनों तक रोजगार की तलाश में इंतजार करना संभव नहीं था नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर श्रम संसाधन विभाग के एक अधिकारी कहते हैं, ‘‘कामगारों को इस बात का आश्वासन चाहिए था कि उन्हें काम कब तक मिल जाएगा. किंतु सरकारी अधिकारी इस स्थिति में नहीं थे कि उन्हें वे इस आशय का आश्वासन दे सकें. नतीजतन वे लौटने लगे.'' हालांकि, कोरोना के कारण डगमगाई अर्थव्यवस्था में वहां भी काम मिलना पहले जैसा आसान नहीं रहा.

छोटे-छोटे उद्योग धंधे बंद हो गए जहां वे मजदूरी करते थे. पत्रकार राजीव भूषण कहते हैं, ‘‘जल संसाधन, शहरी विकास, सडक निर्माण, छोटे व मंझोले उद्योग और कृषि व ग्रामोद्योग सेक्टर में अगर सरकार व्यवस्थित तरीके से काम करे तो रोजगार की अपार संभावनाएं परिलक्षित होंगी. किंतु नौकरशाही सरकार के बेहतर प्रयास को भी फलीभूत नहीं होने देती है.'' सहरसा जिले के कोपरिया गांव लौटे रामचरितर यादव कहते हैं, ‘‘लॉकडाउन के दौरान जिस तरह का बर्ताव झेला था उस कारण बड़े शहरों का रूख करने की इच्छा नहीं होती, किंतु गांव के कई लोगों को लौटना पड़ा. आखिरकार जीविका के साधनों के बिना कोई कब तक घर बैठ सकता था.''

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