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आपदा में आसमान से राहत

४ अप्रैल २०१३

आम लोगों को पता भी नहीं कि उपग्रहों का एक समूह उनके सिर के ऊपर लगातार चक्कर लगा रहा है और किसी भी देश में आंधी, भूकंप, सूनामी या बाढ़ का संकट हो तो महज एक फोन पर यह अपनी सेवा देने पहुंच जाते हैं.

तस्वीर: ESA – P. Carril

कैमरों और रडार से लैस निगरानी करने वाले इन उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में वैज्ञानिक और कारोबारी कामों के लिए भेजा गया है. हालांकि अंतरराष्ट्रीय संधि के मुताबिक इन्हें किसी मानवीय सहायता के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. आपदा प्रभावित इलाकों के ऊपर से उड़ान भरने का संदेश मिलने के बाद ये उपग्रह वहां की साफ तस्वीरें भेजते हैं जिससे राहत कर्मचारियों के लिए प्रभावित इलाके में जरूरत के हिसाब से सही जगह पर पहुंचना संभव हो पाता है.

कौन सा मुहल्ला, गली या गांव सबसे ज्यादा खतरे की जद में है? अगर बाढ़ में पुल बह गए हैं तो राहत के ट्रक किस रास्ते से संकट वाली जगह पर पहुंच सकते हैं और पीड़ित लोगों के लिए कहां शिविर बनाने के लिए सुरक्षित जगह है? इन सब सवालों के जवाब उपग्रहों की मदद से आसानी से मिल जाते हैं.

दुनिया की 14 अंतरिक्ष एजेंसियों या राष्ट्रीय संगठनों ने आपस में मिल कर 20 उपग्रहों को इस काम में लगाया है. इसमें फ्रांस के व्यवसायिक उपग्रह स्पॉट(SPOT) से लेकर अमेरिका का वैज्ञानिक उपग्रह लैंडसैट शामिल हैं. इनका आपसी सहयोग इंटरनेशनल चार्टर ऑफ स्पेस एंड मेजर डिजास्टर्स नाम के समझौते के तहत है. आपदा आने पर चुनिंदा अधिकारियों में से कोई एक यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक नंबर पर बस फोन करता है. यहां अंतरिक्ष के तकनीशियन चौबीसों घंटे काम पर मौजूद रहते हैं. अनुरोध की पुष्टि होने के बाद यह टीम देखती है कि कौन से उपग्रह इस वक्त मौजूद है और उनमें से इस काम के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त कौन है. उपग्रह चुनने के बाद इसके ऑपरेटर को प्रोग्रामिंग के लिए अनुरोध भेजा जाता है. पेरिस में चार्टर का सचिवालय है, वहां यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के प्रतिनिधि फिलिपे बाली बताते हैं कि तीन घंटे के भीतर एक उपग्रह को प्रभावित इलाके से गुजरने के दौरान तस्वीर लेने का निर्देश मिल जाता है. आमतौर पर 24 घंटे में आंकड़े मिलने लगते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

यह सेवा बिल्कुल मुफ्त है. सिर्फ इतना ही नहीं इलाके से गुजर रहे जहाज भी अपना रास्ता बदल कर प्रभावित लोगों को मदद देने के लिए उधर चल पड़ते हैं. फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर स्पेस स्टडीज ने 1999 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ मिल कर इस चार्टर के लिए पहल की. सेंटर से जुड़ीं कैथरीन प्रॉय ने बताया, "हम उपग्रह का चुनाव जरूरत के आधार पर करते हैं. हमें विजुअल तस्वीर चाहिए या रडार तस्वीर चाहिए और यह इस बात से तय होता है कि आपदा कैसी है." इसके अलावा टाइम जोन और वहां से गुजर रहे उपग्रहों को भी ध्यान में रखा जाता है.

उपग्रह से मिले आंकड़ों को इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए उन्हें मानचित्रकारों के पास भेजा जाता है जो आपदा के इलाकों को उभार देते हैं और फिर ताजा तस्वीरों से उनकी तुलना कर बदलाव के बारे में जानकारी दे देते हैं. 2000 से अब तक चार्टर को 110 देशों में 369 बार इस्तेमाल किया गया. इनमें से आधे से ज्यादा बार बाढ़ और सूनामी की वजह से इसे इस्तेमाल में लाया गया. इसका फायदा उठाने वाले ज्यादातर ऐसे गरीब देश हैं जिनके पास धरती की निगरानी करने वाला खुद का उपग्रह नहीं है. 2010 में जब हैती में भूकंप आया तो इन्हीं उपग्रहों की मदद से पता चल सका कि कहां साफ पानी मौजूद है और किन इलाकों में भूस्खलन का खतरा है. चार्टर के 41 अधिकृत यूजरों में संयुक्त राष्ट्र है जो सदस्य देशों की ओर से इसे सक्रिय कर सकता है. अमीर देश भी इसे सक्रिय करने के लिए कह सकते हैं. जर्मनी ने 2003 में ईरान के लिए चार्टर को सक्रिय करने का अनुरोध किया था. तब वहां बाम में आए भूकंप में 35000 लोगों की मौत हुई थी.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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