ब्रिक्स समूह का 13वां शिखर सम्मेलन भारत की अध्यक्षता में हो रहा है. विकास के सामूहिक एजेंडे के बावजूद ब्रिक्स देशों के बीच कई आपसी मतभेद हैं. क्या ये देश इन मतभेदों से आगे बढ़ एक दूसरे से सहयोग कर पाएंगे?
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सम्मेलन वर्चुअल तौर पर हो रहा है और इस बार इसकी मेजबानी कर रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. उनके अलावा बैठक में ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा भाग ले रहे हैं.
इससे पहले 2012 और 2016 में भी भारत ने शिखर सम्मेलनों की मेजबानी की थी. समूह के 15 साल पूरे होने के मौके पर इस साल के सम्मेलन में हो रही चर्चाओं का विषय "निरंतरता, एकजुटता और सहमति" रखा गया है.
भारत की प्राथमिकताएं
भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान चार प्राथमिकताएं रखी थीं. इनमें बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार, आतंकवाद का मुकाबला, 'सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स' की प्राप्ति में डिजिटल और तकनीकी तरीकों की मदद और सदस्य देशों के आम लोगों के बीच संबंधों को बढ़ाना शामिल था.
सम्मेलन की तैयारी के सिलसिले में बीते कुछ दिनों में और भी कई बैठकें हुई हैं. इनमें ब्रिक्स के व्यापार मंत्रियों की बैठक और ब्रिक्स के शेरपाओं की बैठक महत्वपूर्ण थी. इसके अलावा बांग्लादेश, यूएई और उरुग्वे को ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक के नए सदस्यों के रूप में शामिल किया गया.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि बैंक की सदस्यता के विस्तार से उसका महत्व बढ़ेगा और वो खुद को उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के प्रमुख विकास संस्थान के रूप में दुनिया के सामने रख पाएगा.
अफगानिस्तान की चुनौती
शिखर सम्मेलन के दौरान पहले से तय अजेंडा के अलावा दूसरी मौजूदा चुनौतियों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है. इनमें कोविड-19 महामारी का असर और अफगानिस्तान के ताजा हालात मुख्य विषय रहेंगे.
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार के गठन के बाद हालात और ज्यादा गंभीर हो गए हैं. तालिबान ने 33 सदस्यों की एक अंतरिम सरकार की घोषणा की है, जिसके कम से कम 17 सदस्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी हैं.
ब्रिक्स बैठक के ठीक एक दिन पहले नई दिल्ली में रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पात्रुशेव और अमेरिका की गुप्तचर संस्था सीआईए के प्रमुख विलियम बर्न्स ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ अलग अलग बैठकें कीं.
माना जा रहा है कि तालिबान की इस सरकार के लिए नेताओं के चुनाव के पीछे पाकिस्तानी सेना की गुप्तचर संस्था आईएसआई का हाथ है. 15 अगस्त को ही काबुल पर कब्जा कर लेने के बावजूद तालिबान अपनी सरकार नहीं बना पाया था. आईएसआई के प्रमुख फैज हमीद पांच सितंबर को काबुल गए थे और उसके तुरंत बाद ही तालिबान की सरकार बन गई.
ब्रिक्स सदस्यों के बीच तालिबान को लेकर कई विरोधाभास हैं. लंबे समय से चीन और रूस ने तालिबान को लेकर एक नरम रुख अपनाया हुआ है, जबकि भारत के लिए अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार का बन जाना एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है.
ऐसे में देखना होगा कि ब्रिक्स के बैनर तले भारत, चीन और रूस के बीच तालिबान को लेकर कोई सहमति बन पाती है या नहीं. यह स्थिति बदलती अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मद्देनजर ब्रिक्स के सामने चुनौतियों का एक उदाहरण भी है. जानकारों का मानना है कि ऐसी कई चुनौतियां इस समूह के सामने हैं.
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वित्तीय मुद्दों पर साथ
वरिष्ठ पत्रकार संदीप दीक्षित कहते हैं कि सुरक्षा के मुद्दों पर ब्रिक्स के सदस्य देशों के लिए एक साझा रवैया अपनाना बहुत मुश्किल है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि इसलिए संभावना यही है कि वो वित्तीय मुद्दों और महामारी के प्रति एक साझा स्टैंड पर ही काम करेंगे.
कुछ जानकार महामारी के खिलाफ ब्रिक्स देशों की साझा प्रतिक्रिया में काफी संभावनाएं देख रहे हैं. रिसर्च ऐंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कन्ट्रीज के दो शोधकर्ताओं ने हाल ही में छपे एक पेपर में लिखा कि ब्रिक्स देश महामारी के खिलाफ एक विचारणीय प्रतिक्रिया देने में सफल रहे हैं.
संस्था के महानिदेशक सचिन चतुर्वेदी और एसोसिएट प्रोफेसर सब्यसाची साहा ने लिखा है कि महामारी ने बड़े स्तर पर आने वाले झटकों को झेलने की अलग अलग देशों की क्षमताओं में अंतर को रेखांकित किया है.
उनका कहना है कि "बहुपक्षवाद की त्रुटियों" को ठीक करने की उम्मीद "पुराने शक्तिशाली देशों" से नहीं लगाई जा सकती है, जबकि ब्रिक्स जैसे विकासशील देशों के आपसी सहयोग से काफी कुछ हासिल किया जा सकता है.
एक साथ कई कूटनीतिक विवादों में फंसा है चीन
भारत के साथ सीमा-विवाद हो, हॉन्ग कॉन्ग को लेकर आलोचना हो या महामारी के फैलने के पीछे उसकी भूमिका को लेकर जांच की मांग, चीन इन दिनों कई मोर्चों पर कूटनीतिक विवादों में फंसा हुआ है. आइए एक नजर डालते हैं इन विवादों पर.
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कोरोनावायरस
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने मांग की है कि चीन जिस तरह से कोरोनावायरस को रोकने में असफल रहा उसके लिए उसकी जवाबदेही सिद्ध की जानी चाहिए. कोरोनावायरस चीन के शहर वुहान से ही निकला था. चीन पर कुछ देशों ने तानाशाह जैसी "वायरस डिप्लोमैसी" का भी आरोप लगाया है.
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अमेरिका
विश्व की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के आपसी रिश्ते पिछले कई दशकों में इतना नीचे नहीं गिरे जितने आज गिर गए हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार और तकनीक को लेकर विवाद तो चल ही रहे हैं, साथ ही अमेरिका के बार बार कोरोनावायरस के फैलने के लिए चीन को ही जिम्मेदार ठहराने से भी दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. चीन भी अमेरिका पर हॉन्ग कॉन्ग के प्रदर्शनों को समर्थन देने का आरोप लगाता आया है.
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हॉन्ग कॉन्ग
हॉन्ग कॉन्ग अपने आप में चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक समस्या है. चीन ने वहां राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करना चाहा लेकिन अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने इसका विरोध किया. हॉन्ग कॉन्ग कभी ब्रिटेन की कॉलोनी था और चीन के नए कदमों के बाद ब्रिटेन ने कहा है कि हॉन्ग कॉन्ग के ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज पासपोर्ट धारकों को विस्तृत वीजा अधिकार देगा.
चीन ने लोकतांत्रिक-शासन वाले देश ताइवान पर हमेशा से अपने आधिपत्य का दावा किया है. अब चीन ने ताइवान पर उसका स्वामित्व स्वीकार कर लेने के लिए कूटनीतिक और सैन्य दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है. लेकिन भारी मतों से दोबारा चुनी गई ताइवान की राष्ट्रपति ने चीन के दावों को ठुकराते हुए कह दिया है कि सिर्फ ताइवान के लोग उसके भविष्य का फैसला कर सकते हैं.
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भारत
भारत और चीन के बीच उनकी विवादित सीमा पर गंभीर गतिरोध चल रहा है. सुदूर लद्दाख में दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों में हाथापाई भी हुई थी.
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शिंकियांग
चीन की उसके अपने पश्चिमी प्रांत में उइगुर मुसलमानों के प्रति बर्ताव पर अमेरिका और कई देशों ने आलोचना की है. मई में ही अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने उइगुरों के उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने वाले एक विधेयक को बहुमत से पारित किया.
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हुआवेई
अमेरिका ने चीन की बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की थीं. उसने अपने मित्र देशों को चेतावनी दी थी कि अगर वो अपने मोबाइल नेटवर्क में उसका इस्तेमाल करेंगे तो उनके इंटेलिजेंस प्राप्त की जाने वाली संपर्क प्रणालियों से कट जाने का जोखिम रहेगा. हुआवेई ने इन आरोपों से इंकार किया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/J. Porzycki
कनाडा
चीन और कनाडा के रिश्ते तब से खराब हो गए हैं जब 2018 में कनाडा ने हुआवेई के संस्थापक की बेटी मेंग वानझाऊ को हिरासत में ले लिया था. उसके तुरंत बाद चीन ने कनाडा के दो नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था और केनोला बीज के आयात को ब्लॉक कर दिया था. मई 2020 में मेंग अमेरिका प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ दायर किया गया एक केस हार गईं.
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यूरोपीय संघ
पिछले साल यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों ने आपस में तय किया कि वो चीन के प्रति अपनी रण-नीति और मजबूत करेंगे. संघ हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीन की दबाव वाली कूटनीति को ले कर चिंतित है. संघ उसकी कंपनियों के चीन के बाजार तक पहुंचने में पेश आने वाली मुश्किलों को लेकर भी परेशान रहा है. बताया जा रहा है कि संघ की एक रिपोर्ट में चीन पर आरोप थे कि वो कोरोनावायरस के बारे में गलत जानकारी फैला रहा था.
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ऑस्ट्रेलिया
मई 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से जौ (बार्ली) के आयत पर शुल्क लगा दिया था. दोनों देशों के बीच लंबे समय से झगड़ा चल रहा है. दोनों देशों के रिश्तों में खटास 2018 में आई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने अपने 5जी ब्रॉडबैंड नेटवर्क से हुआवेई को बैन कर दिया था. चीन ऑस्ट्रेलिया की कोरोनावायरस की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर भी नाराज है.
तस्वीर: Imago-Images/VCGI
दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर ऊर्जा के स्त्रोतों से समृद्ध इलाका है और चीन के इस इलाके में कई विवादित दावे हैं जो फिलीपींस, ब्रूनेई, विएतनाम, मलेशिया और ताइवान के दावों से टकराते हैं. ये इलाका एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग भी है. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि चीन इस इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कोरोनावायरस के डिस्ट्रैक्शन का फाय उठा रहा है.