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एकजुट होने की कोशिश करता विपक्ष

२८ जुलाई २०२१

किसान आंदोलन और पश्चिम बंगाल चुनावों के नतीजों के बाद अब पेगासस मामले ने विपक्ष को नई ऊर्जा दे दी है. लेकिन पुराना सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर विपक्ष का नेता कौन होगा.

Indien Westbengalen | Mamata Banerjee, Chief Minister
तस्वीर: Prabakhar/DW

जैसा कि संसद के मौजूदा सत्र में दिखाई दे रहा है, विपक्ष किसान आंदोलन और पेगासस मामलों को लेकर काफी आक्रामक हो चुका है. विशेष रूप से पेगासस मामले पर चर्चा कराने से सरकार के इंकार कर देने पर विपक्ष के सांसदों दोनों सदनों में और संसद के बाहर भी पुरजोर विरोध कर रहे हैं.

इस बीच विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कई महीनों से चल रही कोशिशें भी संसद सत्र के मद्देनजर तेज हो गई हैं. विपक्ष के कई सांसदों ने कहा है कि इस सत्र में विपक्षी पार्टियों के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिल रहा है. हालांकि इन कोशिशों के बावजूद विपक्ष अभी तक मूल मसले का हल नहीं निकाल पाया है.

कौन होगा नेता

बीते सात सालों में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कई कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार नेतृत्व के सवाल पर विपक्ष की सुई अटक जाती है. कौन बनेगा विपक्ष का चेहरा और कौन देगा सीधे मोदी को टक्कर, इन्हीं सवालों पर एकजुटता की सारी कोशिशें बेकार हो जाती हैं.

राहुल गांधी ने पहली बार संसद में विपक्ष की बैठक की अध्यक्षता की हैतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

इस बार भी विपक्ष की एकजुटता पर यही सवाल हावी नजर आ रहा है. विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस अभी भी अपने आप को इस नेतृत्व का स्वाभाविक दावेदार मानती है. अन्य विपक्षी पार्टियां भी यह तो मानती हैं कि कांग्रेस के बिना व्यापक विपक्ष बन नहीं पाएगा, लेकिन उस विपक्षी समूह का नेतृत्व कांग्रेस करेगी इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही है.

अव्वल तो कांग्रेस खुद अपने संगठन के अंदर नेतृत्व के संकट से गुजर रही है. सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष जरूर हैं लेकिन वो कब तक इस पद पर रहेंगी यह स्पष्ट नहीं है. उनके दोनों बच्चों राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को इस पद का दावेदार माना जाता है.

कांग्रेस का अपना संकट

राहुल को तो पद मिला भी था लेकिन 2019 के लोक सभा चुनावों में हारने के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और तब से सार्वजनिक तौर पर बस वो एक कांग्रेस सांसद के रूप में काम कर रहे हैं. हालांकि अब धीरे धीरे पार्टी से जुड़े सभी बड़े फैसलों के पीछे उनके हाथ नजर आ रहा है.

विपक्ष के नेताओं को नेतृत्व के सवाल का समाधान करने के लिए सोनिया गांधी से भी उम्मीद हैतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

हाल ही में पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे झगड़े का समाधान राहुल और प्रियंका के निर्णायक हस्तक्षेप के बाद ही हुआ. सिद्धू और सिंह दोनों दिल्ली गए, लेकिन राहुल और प्रियंका सिर्फ सिद्धू से मिले और उसके बाद सिंह के विरोध के बावजूद सिद्धू को पंजाब में कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया.

राहुल अब यही महत्वाकांक्षा वृहत विपक्ष को लेकर भी दिखा रहे हैं. 27 जुलाई को संसद में विपक्षी पार्टियों के फ्लोर नेताओं की बैठक पहली बार राहुल की अध्यक्षता में हुई. इसमें कांग्रेस के अलावा डीएमके, एनसीपी, शिव सेना, सीपीएम, आरजेडी, आप, केरल कांग्रेस, एनसी, आरएसपी और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियां शामिल थीं.

बैठक के बाद राहुल के साथ मिल कर इन सभी पार्टियों के नेताओं ने मीडिया को संबोधित भी किया. बैठक की तस्वीरें ट्वीट करते हुए राहुल ने वहां मौजूद सभी नेताओं के तजुर्बे और समझ को सलाम किया और उसे एक विनम्र करने वाला अनुभव बताया.

और भी हैं दावेदार

हालांकि विपक्ष का चेहरा बनने का दावेदार और भी नेताओं को माना जा रहा है. इनमें शरद पवार सबसे वरिष्ठ हैं लेकिन सबसे ज्यादा सक्रिय नजर आ रही हैं ममता बनर्जी. पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनावों में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की जंग जीतने के बाद बनर्जी का आत्मविश्वास देखते ही बन रहा है.

वो इस समय दिल्ली की पांच दिनों की यात्रा पर हैं. इस दौरान वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलीं और सोनिया गांधी से भी. इसके अलावा और भी कई पार्टियों के नेताओं से मिलने की उनकी योजना है. इस पूरी कवायद को उनकी विपक्ष का नेता बनने की चाह से जोड़ कर देखा जा रहा है.

शरद पवार विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैंतस्वीर: Hindustan Times/imago images

लेकिन यहीं पर पेंच फंसा हुआ है. पिछले कई महीनों से शरद पवार और यशवंत सिन्हा जैसे नेता विपक्ष को एकजुट करने के लिए जिस फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं, उसके तहत 200 ऐसी लोक सभा सीटें पहचानी गई हैं जिन पर सीधे बीजेपी और कांग्रेस के बीच में टक्कर है.

प्रस्ताव यह है कि इन सीटों पर कांग्रेस को अपने प्रत्याशी उतारने दिए जाएं, लेकिन इनके अलावा बाकी सीटों पर जहां जो विपक्षी पार्टी मजबूत है उसी को लड़ने दिया जाए. समस्या यह है कि फार्मूला तो अपनी जगह है, लेकिन मतभेद तो इस बात पर है कि विपक्ष का चेहरा कौन बनेगा. अब देखना यह है कि बनर्जी की दिल्ली यात्रा और कांग्रेस नेताओं के साथ बैठकों से क्या निकल कर आता है.

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