जर्मनी की कार्ल्सरूहे यूनिवर्सिटी ने इस तरह की कार तैयार कर ली है. जाहिर सी बात है कि यह इंटरनेट से जुड़ी है और इशारों पर चल सकती है. कार के कैमरे आस पास की चीजें देख सकते हैं और कंप्यूटर खुद स्टीयरिंग घुमाने लगता है. सेंसर इतने कड़े हैं कि अगर पास से ट्रक गुजर रहा हो, तो कार का सेंसर इसे पकड़ लेता है. कार रुक जाती है, या रास्ता बदल लेती है.
कार विकसित करने वाले कार्ल्सरूहे यूनिवर्सिटी के क्रिस्टोफ श्टिलर कहते हैं कि इससे हादसे कम होंगे, "भविष्य की गाड़ी में 100 मेगाबाइट जितना डाटा प्रॉसेस करना होगा. इस वक्त तो यह इतना ज्यादा डाटा है, कि हम इसके बारे में सोच भी नहीं सकते. लेकिन कंप्यूटर तकनीक तेजी से बेहतर हो रही है और जल्द ही आप डाटा प्रॉसेस करके गाड़ी को कमांड दे सकेंगे."
कार बदलेगी तो सड़क पर चलने वाले ट्रैफिक का बर्ताव भी बदल जाएगा. सॉफ्टवेयर कंपनियां इस ताक में हैं कि कब नई गाड़ी बाजार में आए और वे कैसे नए सॉफ्टवेयर तैयार कर लें. इंटरनेट पर भविष्य की ट्रैफिक व्यवस्था की बानगी दिख सकती है. कारें आपस में संपर्क करेंगी, एक दूसरे से जुड़ी होंगी, आपस में सूचनाएं बांटते हुए आगे बढ़ेंगी, ताकि किसी तरह का हादसा न हो.
जर्मनी शानदार कारों के लिए जाना जाता है, जहां पहली कार बनाई गई थी. देखते हैं कुछ ऐसे मॉडलों को, जो बरसों पहले तैयार हुईं, लेकिन कभी पुरानी नहीं पड़ीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaवह साल था 1898, जब 23 साल के फर्डीनांड पोर्शे ने इस कार को तैयार किया. इलेक्ट्रिक कार. नाम रखा पी1, अपने नाम पोर्शे परः पोर्शे 1. तीसरी सदी में प्रवेश के बाद भी कार की चमक देखिए. कहते हैं बग्घीनुमा यह गाड़ी 25 किलोमीटर की रफ्तार से कुलांचे भर सकती थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसाल था 1937 और फोक्सवागन ने बनाया बीटल का प्रोटोटाइप 'केफर'. कहते हैं कि इसकी डिजाइनिंग में पोर्शे के संस्थापक फर्डीनांड पोर्शे ने भी अहम भूमिका निभाई. लक्ष्य था, हर किसी को कार मिले. 2003 तक इसका उत्पादन हुआ और कंपनी ने दो करोड़ से ज्यादा बीटल कारें बेचीं.
तस्वीर: Porscheजर्मनी अलग हुआ तो कार कंपनियों का नुकसान हुआ. पूर्वी जर्मनी में ट्राबांट कार बनी. यह 1958 का मॉडल है. यह कार भी आम लोगों की कार के रूप में लोकप्रिय हुई और इसे प्यार से कहा गया "ट्राबी".
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी से बाहर अमेरिका कार का गढ़ बना. फोर्ड ने 1972 में टिन लिजी कार तैयार की, जो उस वक्त दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली कार बन गई. अमेरिका में 1908 से 1927 के बीच कोई डेढ़ करोड़ कारें बन गई थीं.
तस्वीर: picture-alliance/landov14 नवंबर, 1945. दूसरे विश्व युद्ध के बावजूद जर्मनी की डायमलर बेंज कंपनी एक स्पोर्ट्स कार तैयार करने में लगी थी. मर्सिडीज के इस मॉ़डल की रफ्तार उस जमाने में भी 450 किलोमीटर प्रति घंटा थी. ये पांच टीले दिख रहे हैं, जिनमें चार पहिए हैं और पांचवां ड्राइवर के बैठने की जगह.
तस्वीर: Getty Imagesसिट्रोएन का फ्रांसीसी भाषा में मतलब होता है देवी. यह देश की सबसे बड़ी कार कंपनी है. यह मॉडल 1955-1975 के बीच बनता था और इस तरह की कारें तो उस वक्त की फिल्मों में खूब दिखाई देती थीं.
तस्वीर: picture-alliance/ASAपोर्शे 911 रफ्तार और शान की पहचान बन गई. जर्मनी की इस कार ने अपना अलग बाजार बनाया. पहली बार इसे 1963 में फ्रैंकफर्ट कार मेले में दिखाया गया. बाद में यह पूरी दुनिया में मशहूर हुई.
तस्वीर: Porscheफोक्सवागन ने भी स्पोर्ट्स कार पर हाथ आजमाया और साल 2001 में कुछ इस तरह की "डब्ल्यू 12 कूपे" तैयार हुई. इटली में इसकी टेस्टिंग हुई और 295 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत रफ्तार से कार ने दौड़ लगाई.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी की एक और मशहूर कार कंपनी बीएमडब्ल्यू ने अपने आई8 मॉडल को 2009 में फ्रैंकफर्ट मोटर शो में पेश किया. इस हाइब्रिड कार को ईंधन बचाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है.
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लेकिन सभी गाड़ियां एक दूसरे से तभी जुड़ेंगी, जब उनके बीच इंटरनेट कनेक्टिविटी हो. इंटरनेट से चलने वाली गाड़ियों का सपना बहुत जल्दी पूरा हो सकता है. जर्मन टेलिकॉम कंपनी के एक्सपर्ट हॉर्स्ट लेओनबर्गर का कहना है, "भविष्य में अलग तरह की कंपनियां भी इस उद्योग में आएंगी. गूगल तो अभी से शामिल है और यह उद्योग और सेवाएं उपलब्ध कराएगा. मेरे हिसाब से क्रांति आती दिख रही है, किस तरह कार उद्योग ऑनलाइन और इंटरनेट जगत में अपने को शामिल करेगा और अपने लिए जगह बनाएगा."
लेकिन सिर्फ सॉफ्टवेयर गाड़ी नहीं चला सकते. उसके लिए एक गाड़ी भी होनी चाहिए. यानी दोनों क्षेत्रों को ज्यादा सहयोग करने की जरूरत है. अगर ऐसा हुआ तो हो सकता है कि सड़कों पर कार अपने आप चलती जाए, और आप पिछली सीट पर बैठ कर दफ्तर के काम निपटा दें या फिर लूडो खेल लें.
रिपोर्टः मारियन ह्यूटर/एजेए
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी