भ्रष्टाचार और अपराध से लड़ाई
३० अप्रैल २०१३ उस वक्त ऐसा लगता था मानो भारत से भ्रष्टाचार नाम की यह गंदगी हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी मगर जैसे ही आंदोलन ठंडा पड़ा चर्चा भी धीरे-धीरे ठंडी पड़ गई. ठीक इसी तरह दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को एक लड़की के साथ हुए बलात्कार के बाद ऐसी घटनाओं के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन खड़ा हुआ था. हर शहर और गांव की गलियों से बलात्कारी दरिंदों को फांसी के फंदे पर लटकाए जाने के लिए आवाज बुलंद हुई.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या झंडे उठाने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा या फिर कड़े कानून बनने से बलात्कार रुक जाएंगे? शायद नहीं. इसके लिए हर व्यक्ति के भीतर दीपक और अंकित-विनय जैसा जज्बा चाहिए, जो बिना डरे भ्रष्टाचारियों और बलात्कारियों से दो-दो हाथ कर सकें.
इंदौर के इन तीन लड़कों ने एक मिसाल कायम की है. दीपक बिंदोरिया नाम के एक किशोर ने जहां अंजाम की परवाह किए बिना एक भ्रष्ट बाबू को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ाया, वहीं अंकित मालवीय और विनय ने धमकियों से डरे बिना मासूम शिवानी के हत्यारों और बलात्कारियों को मौत की सजा दिलवाई. पढ़िए इन बहादुर जवानों कहानी.
बलात्कारियों को सजा दिलवाई
24 जून, 2012 की उस भयानक रात को कोई नहीं भूल पाया है, जब तीन नराधमों ने 4 साल की मासूम शिवानी को अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर बड़ी ही निर्ममता से उसकी जान ले ली. उस 'लाड़ली' को तो अब वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन इस बात का संतोष हो सकता है कि अदालत ने दोषियों को फांसी की सजा दी है. यह सजा अंकित और विनय नाम के दो जांबाजों की गवाही के कारण संभव हो सकी.
अंकित मालवीय अपने दोस्त विनय जायसवाल के साथ उस रात मामा के यहां एक कार्यक्रम में भाग लेकर लौट रहे थे. दोनों दोस्त लक्ष्मी मेमोरियल हॉल के पास जाम में फंस गए थे. अचानक उल्टी दिशा में खड़े एक ऑटो के पास रो रही बच्ची पर उनकी नजर पड़ी.
उन्होंने सोचा कि बच्ची भीड़ के कारण रो रही है. वे बच्ची को साइड में करने के लिए गए तो रिक्शा में से एक व्यक्ति वहां आया और कहा कि हमारे मोहल्ले की बच्ची को कहां ले जा रहे हो. उसने कहा कि हमारे मोहल्ले की ही बच्ची है, हम उसे घर छोड़ देंगे. तभी उसका दूसरा साथी भी रिक्शा से बाहर आ गया. एक अन्य व्यक्ति रिक्शा में ही बैठा रहा.
तीनों लोग नशे में थे. उन्होंने अंकित और विनय को गालियां दीं. वो यह सोचकर घर चले गए कि सुबह थाने में इस बदतमीजी की शिकायत करेंगे. दोनों युवकों ने बताया कि उन्हें इस बात का मलाल हमेशा रहेगा कि अगर उसी दिन पुलिस स्टेशन जाकर घटना की शिकायत कर देते और पुलिस तुरंत इस पर कार्रवाई करती तो बच्ची की जान बच जाती.
उन्होंने कहा कि इस बात का संतोष है कि फैसला सही समय पर हुआ है. जांच अधिकारी ने फोन कर फैसले के बारे में बताया था. . उन्होंने कहा कि बच्ची के इंसाफ के लिए अगर उन्हें गवाही देने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी जाना पड़ा तो वे पीछे नहीं हटेंगे. अंकित और विनय का कहना है कि उन्हें सबसे ज्यादा खुशी उस दिन होगी जब दोषियों को फांसी पर चढ़ाया जाएगा.
भ्रष्टाचारी को जेल पहुंचाया
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले मजदूर के बेटे दीपक बिंदोरिया ने अपने प्रमाण पत्र के लिए रिश्वत मांगने वाले क्लर्क को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. वो बताते हैं,
शुरू में मुझे थोड़ा डर जरूर लगा था, लेकिन मेरे बड़े पापा रामसिंह बिंदोरिया, जो एक समाजसेवी हैं, ने मुझमें साहस जगाया और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया. दीपक को इस बात की भी खुशी है कि उन्हें न सिर्फ प्रमाण पत्र मिल गए बल्कि एक भ्रष्ट बाबू को भी उन्हें सबक सिखा दिया. उम्मीद है दूसरे सरकारी कर्मचारी भी इससे जरूर सबक लेंगे.
दीपक बताते है कि कुछ लोगों ने तो उन्हें प्रोत्साहित किया, लेकिन कुछ लोगों ने ये भी कहा कि इस कार्रवाई से उस बाबू की नौकरी खतरे में आ गई है. ऐसे लोगों को दीपक ने जवाब दिया कि वह अपना फर्ज ईमानदारी से नहीं निभा रहा था. दीपक आईएएस की परीक्षा देकर कलेक्टर बनना चाहता हैं ताकि गरीब लोगों की मदद कर सकें.
इन तीनों हिम्मती नौजवानों ने यह साबित किया है कि अन्ना हजारे लोगों के भीतर बदलाव की आग तो पैदा कर सकते हैं, लेकिन हौसला लोगों को खुद ही जुटाना होगा. इच्छा खुद अपने भीतर पैदा करनी होगी और यदि हिम्मत और जीवटता अपने भीतर पैदा हो गई तो मौजूदा कानून के दायरे में ही भ्रष्टाचारियों और बलात्कारियों को न्याय के कठघरे में खड़ा कर उनके अपराध की सजा दिला सकते हैं.
वेबदुनिया से साभार