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आफत, दर्द और इंतजार का पहाड़

२५ जून २०१३

उत्तराखंड में भारी वर्षा और भूस्खलन से हुई तबाही के बाद बाहर से आए यात्रियों को निकालने का काम युद्धस्तर पर हुआ है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण बुरे हाल में है.

तस्वीर: Getty Images/Afp/Manan Vatsyayana

प्राकृतिक आपदाओं के पिछले डेढ़ सौ सालों के ज्ञात इतिहास में उत्तराखंड सबसे बड़ी त्रासदी का सामना कर रहा है. सबसे बड़ी इसलिए कि उत्तरकाशी से लेकर पिथौरागढ़ तक एक साथ इतनी बड़ी आफत पहले कभी नहीं आयी. करीब 600 मौतों की पुष्टि राज्य सरकार के अधिकारी कर चुके हैं, लेकिन आशंका है कि यह आंकड़ा दो हजार से ऊपर जाएगा.

टिहरी के चोपड़ियाल गांव के डबराल परिवार की दास्तान दिल दहला देने वाली हैं. 10 सदस्यों का ये परिवार केदारनाथ की यात्रा पर था. 16 जून की रात दर्शन के बाद ये लोग रामबाड़ा के एक होटल में रुके थे. प्रलय की बाढ़ होटल ही बहा ले गयी. परिवार के नौ लोग बह गए. परिवार में एक महिला शशि डबराल ही किसी तरह जीवित बच पाई. पांच बड़े और चार बच्चे थे. इस महिला का पति, उसके बच्चे, सास ससुर, जेठ जेठानी और उनके बच्चे उस भीषण बाढ़ में बह गए.

अपनों की तलाशतस्वीर: DW/Shiv Prasad Joshi

शशि डबराल घायल है और उनका ऋषिकेश के पास जौलीग्रांट अस्पताल में इलाज चल रहा है. अपनी दास्तान सुनाते हुए उनका कहना था कि होटल का कमरा हिलने की आवाज आई, अचानक दीवारें गिर गईं और और पानी का सैलाब फूट आया. सब लोग बहने लगे. वो किसी चीज को पकड़ कर थोड़ा किनारे लग गईं. लेकिन आंखों के सामने सब बह गए. अगले दिन हेलीकाप्टर ने सीढ़ी डालकर उन्हें निकाला.

इस तरह की कई दास्तानें हैं जो उत्तराखंड में आई कुदरती आफत के बाद किसी तरह जीवित बच गए लोग सुना रहे हैं. उत्तर प्रदेश के बरेली से वसीम बेग अपने दोस्त अजय शुक्ला और उनकी पत्नी की तलाश में देहरादून में डटे हुए हैं. उनका कहना है कि वे दोस्त को ढूंढकर रहेंगे. उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के राजशेखर मिश्र अपने मां पिता की खोज में भटक रहे हैं.

सेना की मददतस्वीर: DW/Shiv Prasad Joshi

सहस्त्रधारा हैलीपेड पर जैसे ही कोई हेलीकॉप्टर उतरता है वो बेसब्री और व्याकुलता से नीचे उतरने वालों को देखते हैं. मां पिता नहीं दिखते तो दौड़कर वहां बैठे अधिकारियों के पास पहुंचते हैं. बिलख कर बताते हैं कि 16 जून की रात गौरीकुंड से मां का फोन आया था, कहती थीं बहुत बारिश है. तो मैंने कहा अच्छा ठीक है तुम रुक जाओ. बस उसके बाद कोई फोन नहीं आया कोई खबर नहीं आई. कहां जाऊं, क्या करूं.

उत्तराखंड की चार धाम यात्रा में बिहार, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाड और कर्नाटक समेत कई राज्यों से श्रद्धालु आते हैं. अकेले केदारनाथ में इस साल एक दिन में करीब 14-15 हजार यात्री जा रहे थे. कई यात्री लापता हैं, उनकी खोज में उनके परिजन भटक रहे हैं. और जिन्हें जीवित न रह पाने की सूचना मिल रही है वे डबडबाई आंखों और भारी मन के साथ अपने घरों को लौट रहे हैं. जिन्हें सूचना नहीं मिल सकी है वे आस की बहुत नाजुक डोर के साथ यहां रुके हुए हैं. इस बीच दिन-रात लोगों को निकालने की कोशिश की जा रही है. सेना के ऑपरेशन सूर्या होप के तीसरे चरण के तहत पैदल मार्ग से लोगों को निकाला जा रहा है.

टूटे हैं रास्तेतस्वीर: Reuters

उधर एक बड़ी चुनौती राहत सामग्री पहुंचाने की बनी हुई है. देहरादून से बड़ी मात्रा में खाने पीने का सामान, दवाएं, ईंधन और केरोसीन तेल जा तो रहा है लेकिन कई ट्रक रास्ते में ही फंसे हुए हैं और कई जिला मुख्यालयों में ही जाकर अटक गए हैं. उनके वितरण को लेकर कोई सिस्टम मुस्तैदी से काम नहीं कर रहा है. इसकी एक वजह सरकारी मशीनरी की सुस्ती है, तो एक बड़ी वजह ये भी है कि प्रभावित इलाकों तक जाने वाले रास्ते टूट गए हैं. घोड़ों खच्चरों के जरिए भी सामान नहीं पहुंच पा रहा है.

इस बीच कुदरती आफत में मदद के लिए कई लोग आगे आए हैं. देश के दूसरे राज्यों की सरकारें तो आर्थिक मदद कर ही रही हैं, निजी कंपनियां भी आगे आई हैं. और कई संगठनों ने राहत कोष बनाए हैं. अमेरिकी दूतावास ने भी डेढ़ लाख डॉलर की फौरी मदद भेजी है. हिमालयी सूनामी कही जा रही इस आपदा को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों और संगठनों की मदद का अभी इंतजार है.

रिपोर्ट: शिवप्रसाद जोशी, देहरादून

संपादन: महेश झा

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