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समाज

आम इंसान को खास बनाती शॉर्ट फिल्में

विनम्रता चतुर्वेदी
२३ जुलाई २०१८

कभी चिट्ठियों के जरिए दिलों के तार जुड़ते थे. आज के वर्चुअल वर्ल्ड में रियल लव कहां है? व्हाट्स्ऐप पर हम जो इमोजी भेजते हैं, क्या वे इमोशन में तब्दील होते हैं? शॉर्ट फिल्मों के जरिए इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढा जा रहा है.

Stuttgart Film Festival 2018
तस्वीर: Indian Film Festival Stuttgart

भारतीय फिल्मों में हमारे समाज की तरह ही हमेशा से रिश्तों की खास जगह रही है. आज शॉर्ट फिल्मों के दौर में कहानी किसी हीरो की नहीं, बल्कि मामूली इंसान के रिश्तों कही जा रही है. ये फिल्में बताती हैं कि भले ही भावनाओं को जाहिर करने तरीके और सलीके बदल जाएं, लेकिन रिश्ता वही रहता है. जर्मनी के श्टुटगार्ट में भी जो फिल्में आई उनमें नए भारत के रिश्तों की ऐसी ही कुछ तस्वीरें दिखीं. 15वें फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत फिल्म 'कुछ भीगे अल्फाज़' से हुई. ये कहानी उस वक्त की है जब सोशल मीडिया ने लोगों के जीवन में अहम जगह बना ली है.

बीस साल बाद स्टेज पर यूं थिरकीं रेखा

शॉर्ट फिल्मों की खासियत है कि ये बॉलिवुड की चमक से बजाए नए ट्रेंड को भांपने को तरजीह देते हैं. इन फिल्मों में प्रेम करने के नए तरीके जैसे ब्लाइंड डेट, लीक से हटकर करियर चुनने की चाहत या हीनभावना से जूझते रहने जैसे कई पहलुओं को दिखाने की कोशिश की जा रही है. आज के युवा इनसे एक जुड़ाव महसूस करते हैं. यह बॉलिवुड के स्वप्नलोक जैसा तो नहीं है, लेकिन बोरिंग भी नहीं है.

क्या आप 360 डिग्री वाली फिल्में देखने को तैयार हैं?

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शॉर्ट फिल्मों के बढ़ते क्रेज के बारे में फिल्म 'कुछ भीगे अल्फाज़' के निर्देशक ओनीर का कहना है, "वह जमाना गया जब बॉलीवुड की मसाला फिल्में और समानांतर फिल्में दो अलग दुनिया हुआ करती थीं. दोनों आपस में घुलमिल गए हैं और दर्शक भी दोनों को देखना चाहते हैं."

यूट्यूब, नेटफ्लिक्स के बढ़ते क्रेज पर उन्होंने कहा, 'शॉर्ट फिल्मों ने फिल्ममेकर को आजादी दी है कि वह अपने मनमुताबिक फिल्म बनाए. दर्शकों को आजादी है कि अगर उन्हें 15 मिनट की फिल्म पसंद नहीं आई तो वे किसी और फिल्म पर क्लिक कर सकते हैं. इंटरनेट ने दोनों का सशक्त बनाया है.'

तस्वीर: Indian Film Festival Stuttgart

'कुछ भीगे अल्फाज़' में प्रमुख भूमिका निभा रहीं अभिनेत्री गीतांजलि थापा का कहना है कि सब्जेक्ट अच्छा हो तभी लोग फिल्म देखने आएंगे चाहे फीचर फिल्म हो या शॉर्ट फिल्म. भारतीय फिल्मों को विदेशों में पसंद इसलिए किया जाता है क्योंकि कहानी अच्छी होती है. 

शॉर्ट फिल्मों की एक और खास बात है इनका कम बजट. 15 से 20 मिनट की फिल्म बनाकर अगर मैसेज पहुंच जा रहा है तो 3 घंटे की फिल्म की क्या जरूरत है. ओनीर कहते हैं, 'शॉर्ट फिल्म और वेब सीरीज का ट्रेंड बढ़ा है. अनुराग कश्यप, सुरजीत सरकार जैसे बड़े फिल्ममेकर शॉर्ट फिल्में बनाकर लोगों के हमेशा करीब रहना चाहते हैं. कम लागत में ज्यादा मुनाफा वाली थ्योरी ने भारत में शॉर्ट फिल्मों के बाजार को बढ़ाया है. आने वाले वक्त में इनकी प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी.

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