आम लोगों की चिंता बढ़ाते कोरोना के डेटा ट्रैकिंग ऐप
२० मई २०२१कोरोना ट्रैकिंग के ज्यादातर ऐप की शर्तों में यह साफ नहीं है कि जमा किए जा रहे डाटा का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा. इससे उनकी गोपनीयता सवालों के घेरे में है. एप्पल ने अपने आईफोन उपभोक्ताओं के लिए जारी एक नए अपडेट में उनको विकल्प दिया है कि वे चाहें तो ऐसे ऐप को अनुमति देने से इंकार कर सकते हैं. लेकिन फेसबुक ने इसके खिलाफ विज्ञापन के जरिए अभियान छेड़ दिया है. इस बीच, कोरोना की पहली लहर में जिस आरोग्य सेतु ऐप की सबसे ज्यादा चर्चा थी, दूसरी लहर में उसकी कहीं कोई चर्चा तक नहीं हो रही है.
ऐप की भरमार
कोरोना की दूसरी लहर तेजी से फैलने के साथ ही देश में इस महामारी पर निगाह रखने वाले ऐप भी उसी तेजी से विकसित हुए हैं. बीते साल पहली लहर के दौरान जहां सिर्फ एक आरोग्य सेतु ऐप ही था, वहीं अब ऐसे कम से कम 19 ऐप आ गए हैं. अब बिहार और केरल समेत ज्यादातर राज्यों ने अपने अलग ऐप बनाए हैं. बीते साल आरोग्य सेतु ऐप का बड़े पैमाने पर प्रचार किया गया था. इसी वजह से पहले कुछ महीनों के दौरान इसे 17 करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया था. हालांकि आंकड़ों की गोपनीयता का सवाल उस समय भी उठाया गया था. लेकिन महामारी से जान बचाना इस चिंता पर भारी पड़ा था और इसकी कहीं कोई खास चर्चा नहीं हुई थी.
लेकिन अब ऐसे ऐप की बढ़ती तादाद ने आंकड़ों की गोपनीयता के सवाल को एक बार फिर सतह पर ला दिया है. मिसाल के तौर पर केरल में पुलिस क्वारंटीन में रहने वाले मरीजों पर निगाह रखने के लिए अनमेज ऐप का इस्तेमाल कर रही है. इसी तरह कासरगोड पुलिस बीते 25 मार्च से कोविड सेफ्टी ऐप का इस्तेमाल कर रही है. इसके जरिए 20 हजार लोगों पर निगाह रखी जा रही है. यह ऐप क्वारंटीन में रहने वालों की लोकेशन पुलिस मुख्यालय में भेजता है. कोच्चि पुलिस का दावा है कि इसके जरिए क्वांरटीन नियमों का उल्लंघन करने वाले तीन हजार लोगों का पता चला है. केरल सरकार स्वास्थ्य पर ताजा अपडेट्स देने के लिए गो-के-डाइरेक्ट केरल ऐप का इस्तेमाल कर रही है.
लोकेशन और ट्रैवल हिस्ट्री
केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्रालय ने भी आम लोगों के इलाज और जांच से संबंधित आंकड़े जुटाने के लिए कोविड-19 फीडबैक ऐप लॉन्च किया है. सरकार का दावा है कि इन आंकड़ों से उन इलाकों की शिनाख्त करने में मदद मिलती है जहां जांच और इलाज में सुधार जरूरी है. इसके अलावा सर्वे ऑफ इंडिया ने भी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए सहयोग नामक ऐप बनाया है. इसके लिए राज्य स्तर पर आंकड़े जुटाए जाते हैं. बाद में सर्वे ऑफ इंडिया इन आंकड़ों का विश्लेषण कर सरकार को रिपोर्ट देता है.
कोरोना पर काबू पाने के लिए फिलहाल देश के ज्यादातर राज्यों में आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लागू है. ऐसे में कमोबेश तमाम राज्यों ने अलग-अलग ऐप बनाए हैं. कहीं इनके जरिए ई-पास जारी किए जा रहे हैं तो कहीं क्वारंटीन में रहने वालों पर निगाह रखी जाती है. इसके अलावा अब ताजा मामले में वैक्सीन के लिए भी कोविन जैसे ऐप शुरू हुए हैं. ऐसे तमाम ऐप डाउनलोड करने के बाद लोगों को उसमें अपना आधार नंबर, मोबाइल नंबर और दूसरे जरूरी आंकड़े भरने पड़ते हैं. कोरोना की दूसरी लहर इतनी घातक है कि लोग बिना सोचे-समझे ऐसे ज्यादातर ऐप डाउनलोड कर रहे हैं.
कर्नाटक ने तो कोरोना वाच नामक एक ऐसा ऐप विकसित किया है जिसके जरिए इसे डाउनलोड करने वाले मरीजों की लोकेशन और ट्रेवल हिस्ट्री का पता चल जाता है. इस ऐप को भी अब तक एक लाख से ज्यादा लोग डाउनलोड कर चुके हैं. शायद ही ऐसा कोई राज्य है जिसने कोरोना के आंकड़े जुटाने और मरीजों पर निगाह रखने के लिए ऐसे एक से ज्यादा ऐप विकसित नहीं किए हों.
आंकड़ों की सुरक्षा पर चिंता
साइबर विशेषज्ञों ने ऐसे ऐपों के जरिए जुटाए जाने वाले आंकड़ों की सुरक्षा पर चिंता जाहिर की है. डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में काम करने वाले दिल्ली स्थित सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर का कहना है कि ऐसे ज्यादातर ऐप उपभोक्ता से नाम, लिंग और पेशे के अलावा बीते कम से कम एक महीने का यात्रा विवरण मांगते हैं. आरोग्य सेतु ऐप में लोगों से उनके स्वास्थ्य की तमाम जानकारियों के साथ ही यह भी पूछा जाता है कि वे सिगरेट पीते हैं या नहीं. दिल्ली स्थित एक अन्य संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन का कहना है कि ऐसे ऐप सामूहिक निगरानी को संस्थागत स्वरूप देने का खतरा बढ़ा रहे हैं. संगठन का कहना है कि ऐसे ज्यादातर ऐप कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के नाम पर लोगों की गतिविधियों के नियंत्रण की प्रणाली के तौर इस्तेमाल हो सकते हैं.
हालांकि सरकार ने इस चिंता को निराधार करार दिया है. सूचना तकनीक मंत्रालय के प्रवक्ता राजीव जैन ने कहा है कि इसमें निजता के उल्लंघन का कोई खतरा नहीं है. आरोग्य सेतु ऐप के जरिए जुटाए जाने वाले आंकड़ों का इस्तेमाल सिर्फ कोरोना से मुकाबले के लिए किया जाता है, आम लोगों की गतिविधियों की निगरानी के लिए नहीं. इसके जरिए कोरोना के मरीजों पर निगाह रखी जाती है ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.
एप्पल की पहल
स्मार्ट फोन बनाने वाली टेक कंपनी एप्पल ने हाल ही में अपने उपभोक्ताओं के लिए एक अपडेट जारी किया है जिसमें कई सुरक्षा फीचर्स दिए गए हैं. इनके जरिए उपभोक्ता यूजर्स आसानी से यह जान सकते हैं कि कोई भी ऐप कौन यूजर का कौन सा डाटा ले रहा है. इसके साथ ही वे ऐप को डाटा ट्रैक करने से रोक भी सकते हैं. इसी कड़ी में गूगल ऐप ने भी नया फीचर जोड़ने का ऐलान किया है जिसमें उपभोक्ता यह जान सकेंगे कि ऐप उनका कौन सा डाटा इकट्ठा या इस्तेमाल कर रहे हैं. इस फीचर को 2022 की दूसरी तिमाही में लॉन्च किया जाएगा. गूगल नए ऐप सबमिशन और ऐप अपडेट डेवलपर्स को यह जानकारी शामिल करने के लिए कहेगा कि उनके ऐप किस तरह के डाटा ऐप के जरिए एकत्र करते हैं और इनका इस्तेमाल कैसे किया जाता है.
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ ऋद्धिमान चटर्जी कहते हैं, "ऐसे तमाम ऐप धड़ाधड़ तैयार हुए हैं. लेकिन उनमें से कहीं इनके जरिए जुटाए जाने वाले आंकड़ों की सुरक्षा को लेकर कोई भरोसा नहीं दिया गया है. ऐसे में कोरोना महामारी खत्म होने के बाद उन आंकड़ों का क्या और कैसा इस्तेमाल होगा, इसकी आशंका जस की तस है. केंद्र सरकार को आंकड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए. ऐसे ऐप पर निगरानी के लिए साइबर विशेषज्ञों की एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन भी किया जा सकता है.”