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आरक्षण पर गरम हुआ यूपी

१९ दिसम्बर २०१२

उत्तर प्रदेश में ऐसी हड़ताल चल रही है, जिसका मुख्यमंत्री भी समर्थन कर रहे हैं और मंत्री भी. प्रमोशन में रिजर्वेशन का फैसला राज्य के सरकारी कर्मचारियों के गले नहीं उतर रहा है.

तस्वीर: DW

सरकारी नौकरियों में दलितों को प्रमोशन में भी आरक्षण के लिए 117 वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पास होने से यूपी के सरकारी दफ्तरों में सन्नाटा पसर गया. ऐसा लगा जैसे कुछ अशुभ हो गया है. राज्य सरकार के करीब 18 लाख कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं और जगह जगह इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. इन लोगों ने पिछले कई दिनों से काम ठप कर रखा है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया है और कहा है कि इससे कर्मचारियों के हितों का नुकसान हुआ है. उनके मंत्री भी खुल कर अपने कर्मचारियों के पक्ष में बयान दे रहे हैं.

सभी पार्टियों की निगाहें अगले लोकसभा चुनावों पर है और शायद यही वजह है कि पिछड़ों को भी प्रमोशन में आरक्षण देने का मुद्दा उछाल दिया गया है. इसे तमिलनाडु में डीएमके ने भी हाथों हाथ लिया है. कांग्रेस, बीजेपी, बीएसपी और वाम दल सब दलितों को प्रमोशन में आरक्षण के पक्ष में खड़े हो गए हैं और इन सबका मुकाबला अकेले समाजवादी पार्टी कर रही है. उसे इस मुद्दे पर गैरदलित समाज की गोलबंदी नजर आ रही है यानी 22 फीसदी दलितों को छोड़ वो शेष 78 प्रतिशत लोगों की पार्टी बनना चाहती है.

तस्वीर: DW

मुलायम सिंह यादव ने ये बिल पास होते ही मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग जोर शोर से उठाई. उन्होंने कहा कि मुसलमानों की स्थिति तो दलितों से ज्यादा खराब है . वे बार बार ये भी कह रहे हैं कि वे इस मुद्दे पर केंद्र को समर्थन देने पर पुनर्विचार करेंगे. उधर बीएसपी के दोनों हाथों में लड्डू है. ये व्यवस्था लागू हो गई तो पूरा श्रेय उसी को मिलेगा और नहीं हुई तो उसके पास कांग्रेस और बीजेपी पर हमला करने का एक नया हथियार होगा.

दलित और गैरदलित के बीच खाई जितनी चौड़ी होगी समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों का फायदा होगा. लेकिन समाज बंटेगा. प्रोफेसर राजेश मिश्र इसे अच्छा संकेत नहीं मानते पर वे आरक्षण को गलत नहीं बताते. "रेलवे में कई दशकों से ये व्यवस्था है तो रेल विभाग का क्या बिगड़ गया. वे सवाल करते हैं कि केंद्र सरकार में जितने सचिव स्तर के अधिकारी हैं उनमें दलित कितने हैं. कहीं न कहीं भेदभाव तो है ही और उसे हमें स्वीकारना ही होगा."

यूपी की बीएस-4 पार्टी के अध्यक्ष आरके चौधरी इस मामले में अमेरिका का उदहारण देते हैं जहां 50 के दशक में अश्वेतों, रेड इंडियंस और हिस्पानियों के लिए त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था लागू की. उसी का नतीजा है कि वहां निजी सेक्टर तक में नौकरियों के साथ साथ ठेकों में भी आरक्षण है.

समाजवादी पार्टी के श्रीराम क्रांतिकारी के अपने तर्क हैं, "दलितों के अलावा भी उपेक्षित, वंचित जातियां हैं, जिन्हें सरकार के सहारे की जरूरत है. उन्हें आरक्षण के बजाए दलितों को कदम कदम पर आरक्षण देने का कोई औचित्य नहीं है. उनकी मुफ्त पढ़ाई, पढ़ने के लिए वजीफा, फिर नौकरी में कोटा और अब प्रमोशन में भी आरक्षण, इससे समाज में वैमनस्य बढ़ रहा है." इसी पार्टी के विधायक राधेश्याम जायसवाल कहते हैं कि इससे पिछड़ों का हक मारा जा रहा है और इसका किसी भी हद तक विरोध किया जाएगा.

रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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