आरक्षण से क्यों कतरा रहे हैं भारत के टॉप मैनेजमेंट संस्थान
शिवप्रसाद जोशी
२ जनवरी २०२०
भारतीय प्रबंध संस्थानों (आईआईएम) ने केंद्र के ताजा फरमान के बाद उससे फैकल्टी की भर्तियों में आरक्षण लागू न करने की अपनी ‘छूट’ को जारी रखने की अपील की है. उनकी दलील है कि आरक्षण देने से उनकी गुणवत्ता पर असर पड़ेगा.
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करीब दो महीने पहले ही केंद्र सरकार ने देश के सभी 20 सार्वजनिक प्रबंध (बिजनेस) संस्थानों को कहा था कि वे अपने यहां फैकल्टी की भर्ती करते समय निर्धारित नियमों के तहत आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करें. भारतीय प्रबंध संस्थानों का कहना है कि ऐसा करने से उनके अकादमिक और शैक्षणिक स्वरूप पर असर पड़ेगा और वैश्विक कार्यनिर्वाहन क्षमता भी प्रभावित होगी.
संस्थानों ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से गुजारिश की है कि उन्हें "इन्स्टीट्यूशन्स ऑफ एक्सीलेंस” के तहत सूचीबद्ध कर दिया जाए. केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक कैडर में आरक्षण) अधिनियम के सेक्शन चार के तहत, "इन्स्टीट्यूशन्स ऑफ एक्सीलेंस” के तौर पर चिंहित संस्थानों, शोध संस्थानों, और राष्ट्रीय और सामरिक महत्त्व के संस्थानों की भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं रखा गया है. इसी सेक्शन के आधार पर आईआईएम अपने लिए छूट मांग रहे हैं, बशर्ते सरकार उनको एक्सीलेंस वाली कैटगरी में ले आए.
इन देशों में नहीं है शिक्षकों की कमी
दुनिया ने शिक्षा के तमाम लक्ष्य तय किए हैं लेकिन दुनिया के कई देश शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. हालांकि कुछ ऐसे देश भी हैं जहां ये टीचर-स्टूडेंट अनुपात सबसे अच्छा है. मतलब इन देशों में शिक्षकों की कोई कमी नहीं है.
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10. पोलैंड
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि देश में साक्षरता दर तकरीबन 99.8 फीसदी है. प्राइमरी स्कूलों में हर 10 बच्चों पर यहां एक शिक्षक है. आंकड़ों के मुताबिक देश की शिक्षा प्रणाली काफी विकसित है और स्कूलों में बच्चों पर पूरा ध्यान दिया जाता है.
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9. आइसलैंड
मानवाधिकारों के मामले में अच्छा देश माने जाने वाला आइसलैंड शिक्षा और साक्षरता के स्तर में काफी आगे है. यहां भी हर 10 स्कूली बच्चों पर 1 शिक्षक मौजूद है. देश में 6 से 16 साल तक के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. आइसलैंड में हर बच्चे को पूरी तरह से मुफ्त और अच्छी शिक्षा का अधिकार प्राप्त है.
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8. स्वीडन
स्वीडन की शिक्षा प्रणाली बेहद उन्नत और विकसित मानी जाती है जिसकी बानगी देश के उच्च साक्षरता दर में साफ झलकती है. शिक्षा प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चे को ऐसी शिक्षा मिले जिससे उसका चहुंमुखी विकास हो. यही कारण है कि स्वीडन के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या सबसे अधिक है. यहां भी तकरीबन हर 9-10 बच्चों पर एक शिक्षक होता है.
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7. एंडोरा
फ्रांस और स्पेन के पास बसे इस यूरोपीय देश की साक्षरता दर तकरीबन 100 फीसदी है. देश में 6-16 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. स्थानीय भाषा एंडोरन के अलावा फ्रेंच और स्पेनिश भाषा भी यहां के स्कूलों में पढ़ाई जाती है. यहां के प्राइमरी स्कूलों में हर 9 छात्रों पर एक शिक्षक है.
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6. क्यूबा
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि इस देश की साक्षरता दर 99.7 फीसदी है. यहां सरकार अपने बजट का 10 फीसदी हिस्सा देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित करती है. प्राइमरी स्तर तक की स्कूली शिक्षा अनिवार्य है. यहां भी हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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5. लक्जमबर्ग
पश्चिमी यूरोप के इस छोटे से देश लक्जमबर्ग में शिक्षा प्रणाली बेहद संगठित है. यहां 4-16 साल के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. देश के अधिकतर स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दी जाती है. यहां भी हर नौ छात्रों पर एक शिक्षक होता है.
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4. कुवैत
साल 2013 में जारी विश्व बैंक के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य एशियाई देश कुवैत में साक्षरता दर 96 फीसदी है. यहां प्राइमरी और इंटरमीडिएट स्तर तक की शिक्षा कानूनी रूप से अनिवार्य है. देश की नागरिकता प्राप्त बच्चों के लिए सरकारी स्कूल में शिक्षा मुफ्त है. प्राइमरी स्तर के स्कूलों में यहां हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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3. लिष्टेनश्टाइन
जर्मन भाषा बोलने वाले मध्य यूरोप के इस देश में वयस्क साक्षरता दर लगभग 100 फीसदी है. देश न केवल अपनी अच्छी स्कूली शिक्षा के लिए जाना जाता है बल्कि यहां शिक्षकों को अच्छा वेतन भी मिलता है. देश की कुल जनसंख्या साल 2013 के आंकड़ों मुताबिक महज 36 हजार के करीब है.
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2. बरमूडा
कैरेबियाई द्वीप बरमूडा भी साक्षरता के मामले में काफी आगे है. देश की वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. देश में 5-18 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. साथ ही देश के 60 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. देश के प्राइमरी स्कूलों में हर सात छात्र पर एक शिक्षक है.
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1. सैंट मैरिनो
चारों ओर इटली से घिरे इस छोटे से देश में वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. यहां हर छह छात्रों पर एक शिक्षक है. इस देश की शिक्षा व्यवस्था इटली की शिक्षा व्यवस्था पर आधारित है.
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संस्थानों का ये भी कहना है कि उनकी भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी रहती है और उसी के तहत समाज के गैरलाभान्वित तबकों के अभ्यर्थियों को भी अवसर दिया जाता है. लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उतरने के लिए घरेलू आरक्षण व्यवस्था आड़े आ सकती है. क्योंकि वहां बहुत ऊंचे और कड़े पैमानों पर गुणवत्ता का निर्धारण किया जाता है. हालांकि किसी अभ्यर्थी को आरक्षण संस्थान की गुणवत्ता में गिरावट का पैमाना कैसे हो सकता है, ये स्पष्ट नहीं है.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी आईआईएम में 90 प्रतिशत फैकल्टी भर्तियां सामान्य श्रेणी के तहत हुई हैं. आईआईएम में ये विवाद लंबे समय से रहा है और ये प्रबंध संस्थान अपनी भर्तियों में अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को साढ़े सात प्रतिशत, ओबीसी को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों (ईडब्लूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण नहीं देते हैं.
खबरों के मुताबक आईआईएम अब तक 1975 के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के एक पत्र का हवाला देते आए हैं जिसमें कथित रूप से वैज्ञानिक और तकनीकी पदों की भर्तियों में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं करने की बात कही गयी थी. आईआईएम का दावा है कि उनके शिक्षण पद तकनीकी प्रकृति के हैं लिहाजा वहां आरक्षण नहीं चलता. आईआईएम अहमदाबाद का तो इस बारे में हाईकोर्ट में वाद भी चल रहा है.
दूसरी ओर एक तथ्य ये भी है कि देश के सभी आईआईटी में तकनीकी विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर के स्तर पर आरक्षण का प्रावधान लागू है और मानविकी और प्रबंध विभागों में सभी स्तरों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है. हालांकि इसका एक पहलू ये भी है कि आईआईटी में भी आरक्षण के तहत पर्याप्त भर्तियां नहीं हो पाई हैं.
अजब गजब डिग्रियां
ये ऐसी डिग्रियां हैं कि नाम सुनकर एक बार तो आप सोचेंगे, इसकी पढ़ाई कैसे हो सकती है. पर पढ़ाई तो होती है, देखिए...
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सर्फ साइंस एंड टेक्नॉलजी
कॉर्नवल कॉलेज में दो साल का कोर्स है जिसमें सर्फिंग के बारे में पढ़ाया जाता है.
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कंटेंपररी सर्कस एंड फिजिकल परफॉर्मेंस
बाथ की स्पा यूनिवर्सिटी में यह कोर्स है. इसमें खूब थ्योरी होती है. सर्कस के दर्शन से लेकर एक्रोबेटिक्स तक की पढ़ाई होती है.
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टर्फ ग्रास साइंस
पेन्सिल्वेनिया की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में टर्फ ग्रास साइंस की डिग्री होती है. यानी घास कैसे उगाते हैं. कहां कौन सी घास उगाई जा सकती है आदि.
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इंटरनेशनल स्पा मैनेंजमेंट
डर्बी यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं कि स्पा क्या होती है, कैसे काम करती है और अच्छी स्पा कैसे चलाई जा सकती है. मालिश की तकनीक और स्वस्थ खानपान की जानकारी भी इस कोर्स का हिस्सा है.
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कुठपुतली कला
कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी में एक डिग्री कोर्स सिर्फ कठपुतलियों पर है. उनका इतिहास, विज्ञान और भूगोल सब कुछ इस कोर्स में सीख सकते हैं.
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थीम पार्क इंजीनियरिंग
कैलिफॉर्निया स्टेट लॉन्ग बीच में पढ़ाया जा रहा है कि थीम पार्क में काम कैसे होता है. झूले कैसे, कहां किस तरह लगाए जाते हैं आदि.
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द बीटल्स
बीटल्स के गृह नगर लिवरपूल की होप यूनिवर्सिटी में इस मशहूर म्यूजिक बैंड पर एमए किया जा सकता है.
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बेकिंग टेक्नॉलजी मैनेजमेंट
लंदन की साउथबैंक यूनिवर्सिटी में केक बनाने को लेकर सारी बातें आप डिग्री कोर्स में पढ़ सकते हैं.
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विटीकल्चर और ओएनोलॉजी
ब्रिटेन के प्लंपटन कॉलेज में तीन साल की पढ़ाई होती है कि परफेक्ट वाइन कैसे बनाई जाए.
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वाइकिंग स्टडीज
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में वाइकिंग्स के बारे में तीन साल की पढ़ाई होती है. वाइकिंग्स 8वीं से 11वीं सदी के बीच स्कैंडेनेवियन देशों में हमला करने वाले लुटरों को बोलते थे.
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प्रोफेशनल टेनिस मैनेजमेंट
दुनिया में कई जगह यह डिग्री होती है. जर्मनी और अमेरिका में कई यूनिवर्सिटी यह कोर्स कराती हैं जैसे मिशिगन की फेरिस स्टेट यूनिवर्सिटी.
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पिछले साल नवंबर में सभी आईआईएम को जारी केंद्र के फरमान के मुताबिक पहले के सभी आदेश या चिट्ठियां या अधिसूचनाएं निष्प्रभावी मानी जाएंगीं. नये आदेशों के मुताबिक प्रबंध संस्थानों को आरक्षण का रोस्टर बनाना होगा और उसी रोस्टर के हिसाब से भविष्य में शिक्षकों की भर्ती करनी होगी. असल में एससी और एसटी के कल्याण के लिए गठित संसदीय समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ बैठके कर इन संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था को नजरअंदाज करने का मुद्दा उठाया गया था.
एक नजर में आईआईएम की दलीलें वजनदार लगती हैं लेकिन अगर ध्यान से देखें तो आखिर सिर्फ इसलिए कि लंबे समय से वहां आरक्षण लागू नहीं था इसलिए उसे अब न लागू होने दिया जाए और ऐसा हो जाने से प्रबंध संस्थानों को कुछ हर्जा होगा, ये बात अविश्वसनीय लगती है. क्या आरक्षण से प्रतिभा का अवमूल्यन होता है, इस सवाल का जवाब भी देना चाहिए. रही बात वैश्विक सामर्थ्य में कटौती आ जाने की तो इन संस्थानों की मौजूदा वैश्विक रैंकिंग क्या है जो आरक्षण लागू करने के बाद गिर जाने की आशंका है!
और ये तो बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि आरक्षण कोई सुविधा या दया नहीं है वो संवैधानिक अधिकार है, लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है. दूसरी ओर दाखिलों से लेकर नौकरियों में आरक्षण के तहत नौकरशाही से लेकर तमाम सार्वजनिक और निजी उपक्रमों में निचली दलित जातियों और अल्पसंख्यकों की कुल आबादी के सापेक्ष नगण्य नुमायंदगी से हालात का अंदाजा लग जाता है. इसीलिए जेएनयू जैसे संस्थानों की जरूरत बहुत अधिक हो जाती है जहां गरीब पढ़ सकें, सबको शिक्षा और सबको काम मिल सके.
कहा जा सकता है कि जब आरक्षण से कोई फायदा नहीं हो रहा है तो हटा क्यों नहीं देते. अगर आरक्षण की एक संविधान प्रदत व्यवस्था दबे कुचले सह नागरिकों को पीढ़ियों की तबाही से निकाल कर किसी आने वाले समय में बराबरी का नागरिक और सामाजिक सम्मान मुहैया कराने की क्षमता रखती है तो उसे क्यों हटाया जाए. क्यों न उसे और मजबूत, व्यापक और पारदर्शी बनाया जाए. आईआईएम की चिंताएं अपनी जगह सही हो सकती हैं और ऐसी व्यवस्था जरूर बनानी चाहिए कि गुणवत्ता पर कोई समझौता न होने पाए लेकिन आरक्षण के अधिकार की अवमानना न हो.