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समाज

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से आत्महत्या रोकने की कोशिश

२३ अक्टूबर २०१९

जेलों में अक्सर कैदियों के आत्महत्या करने की घटना होती हैं. पिछले 20 साल में 1400 कैदियों ने अपनी जान ली है. जर्मन प्रांत नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया इन्हें रोकने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल शुरू कर रहा है.

Deutschland Geiselnahme in der Justizvollzugsanstalt Lübeck
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Scholz

पिछले 20 साल में जर्मन जेलों में सजा काट रहे करीब 1400 लोगों ने अपनी जान ली है. इनमें ज्यादातर मर्द थे. ये जानकारी 1998 से 2017 के सरकारी आंकड़ों से सामने आई है. सबसे ज्यादा 112 लोगों ने सन 2000 में आत्महत्या की तो 2013 में सबसे कम 50 लोगों ने अपनी जान ली. ज्यादातर लोगों ने फांसी लगाकर आत्महत्या की. अपराधविज्ञानी रूडॉल्फ एग का कहना है कि बंदियों की आत्महत्या जेल कर्मचारियों और दूसरे कैदियों पर भी मानसिक असर डालती है. जर्मनी के जेल कर्मचारियों के राष्ट्रीय संघ के प्रमुख रेने मुलर कहते हैं, "इसे आप कभी नहीं भूलते." जेल में काम के दौरान उन्हें 18 साल पहले एक सेल में मरा हुआ कैदी मिला था. वे कहते हैं कि आज भी जब वे किसी सेल के सामने से गुजरते हैं तो वह पूरा दृश्य उनकी आंखों के सामने से गुजरने लगता है.

आत्महत्याओं को रोकने की कोशिश

जेल का कमरातस्वीर: Benjamin Eichler

अब अधिकारी जेलों में आत्महत्या की घटनाओं को रोकने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं. आत्महत्या रोकने पर काम कर रहे एक राष्ट्रीय कार्यदल की प्रमुख कातरीना बेनेफेल्ड कैर्स्टेन का कहना है कि हर आत्महत्या को रोकना संभव नहीं. कैर्स्टेन मनोविज्ञानी हैं और एक जेल की प्रमुख हैं. वे बताती है कि जेल में अपनी जान लेने वाले 22 फीसदी अपराधी हत्या के आरोप में सजा भुगत रहे थे तो 16 फीसदी यौन अपराध की. पिछले 20 साल में आत्महत्या करने वाले 1400 कैदियों में 167 ने पहले भी आत्महत्या करने की कोशिश की थी. जेल के कर्मचारियों को इस बात की ट्रेनिंग दी गई है कि वे कैदियों में अवसाद को पहचान सकें. फिर ऐसे कैदियों पर ध्यान दिया जाता है और मनोविज्ञानी से बात की जाती है. लेकिन इसके लिए पर्याप्त कर्मचारियों की जरूरत होगी, लेकिन अभी भी जेलों में बहुल सारे पद खाली हैं. 

आत्महत्या से होने वाली मौत का असर जेल के कर्मचारियों पर खासकर जेल के उस हिस्से के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों पर तो पड़ता ही है. आत्महत्या में कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं था, इसे साफ करने के लिए मामलों की न्यायिक जांच भी जरूरी होती है. अपराधविज्ञानी एग का कहना है कि आत्महत्या के इरादों को पहचानना हमेशा मुमकिन नहीं होता. कुछ कैदी इसे छुपा जाते हैं तो कुछ मामलों में जब कोई बुरी खबर मिलती है तो उनका मूड खराब हो जाता है. ऐसा ही एक मौका होता है जब बीबी मिलने आए और तलाक देने की खबर दे जाए. हर टेलिफोन, हर चिट्ठी या हर संदेश के बाद कैदियों के मूड की जांच नहीं हो सकती. बंदियों को चौबीसों घंटे कैमरे की निगरानी में भी नहीं रखा जा सकता.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Wittek

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद

जर्मन प्रांत नॉर्थराइन वेस्टफेलिया जेलों में आत्महत्या की रोकथाम के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लेगा. एक टेस्ट के दौरान इस बात की जांच की जाएगी कि क्या आत्महत्या के इरादे का समय पर पता लगाया जा सकता है. प्रांतीय कानून मंत्रालय के अनुसार यह पता किया जाएगा कि क्या कुछ घटित होने पर ऑटोमैटिक तरीके से शुरू होने वाले वीडियो निगरानी की मदद से गंभीर स्थिति का पहले से पता किया जा सकता है. इसमें ऐसी परिस्थितियों को शामिल किया जाएगा जो आत्महत्या की चेतावनी या उस का संकेत दे सकते हैं.

इस प्रोजेक्ट के लिए पूरे यूरोप से निविदा दिए जाने के बाद पूर्वी जर्मनी के केमनित्स शहर की एक कंपनी को सॉफ्टवेयर बनाने का ठेका मिला है.अगर ये सॉफ्टवेयर टेस्ट के पहले चरण में लाभदायक साबित होता है तो नॉर्थराइन वेल्टफेलिया की जेलों में एक पाइलट के तहत आत्महत्या के खतरे वाले सभी बंदियों की वीडियो कैमरे से निगरानी की जाएगी.

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