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आर्थिक मंदी से बचने के लिए चीन सरकार की मदद

१० नवम्बर २००८

अपने देश को आर्थिक संकट की मार के बचाने के लिए चीन सरकार ने लगभग 600 अरब डॉलर के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है जिसका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने स्वागत किया है.

चीन की जनता के लिए राहत की उम्मीदतस्वीर: AP

चीन दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त है लेकिन यूरोप और अमेरिका के आर्थिक संकट से वह भी अछूता नहीं है. इस साल के तीसरी तिमाही में चीन की आर्थिक प्रगति 9 प्रतिशत रही जबकि पिछले साल यह आंकड़ा लगभग 12 प्रतिशत था. यह अंतर चीन जैसे देश के लिए काफी गंभीर है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अध्यक्ष डॉमिनीक श्ट्राउस-कान ने चीन सरकार के इस क़दम का स्वागत किया और उन्होंने आशा जताई कि और देशों पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा.

चीन की सरकारी वेबसाइट पर एक बयान के मुताबिक़ कैबिनेट ने 586 अरब डॉलर की योजना को मंज़ूरी दे दी है. बयान में कहा गया है कि कैबिनेट ने सक्रिय वित्तीय नीति और अपेक्षाकृत आसान मुद्रा नीति अपनाने का फ़ैसला किया है. करबी 600 अरब डॉलर की राशि आवासीय, निर्माण और भूकंप के बाद पुनर्निर्माण कार्यों में लगाई जाएगी. कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने की. घोषणा के मुताबिक़ अगले दो वर्षों के भीतर यह राशि विभिन्न क्षेत्रों में लगाई जाएगी.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अध्यक्ष डॉमिनिक श्ट्राउस-कान ने इस क़दम का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि और देशों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ेगा. यह घोषणा एक ऐसे समय पर आई है जब चीन के राष्ट्रपति हू जिन ताओ, 15 नवंबर को जी-20 देशों की बैठक में भाग लेने के लिए वॉशिंगटन रवाना हो रहे हैं.

विकासशील देशों की बढ़ती भूंमिका

इस बीच विश्वव्यापी वित्तीय संकट से निपटने की कोशिशों के तहत ब्राज़ील के शहर साओ पाउलो में शनिवार को जी-20 देशों के नेताओं के बीच बैठक हुई. भारत भी इस ग्रुप का एक प्रमुख सदस्य है. बैठक में 15 नवंबर को इन देशों की वाशिंगटन में होने वाली शिखर भेंट की तैयारी की गई. बताया गया कि अगले हफ्ते इस बैठक में ही प्रस्तावों पर राजनीतिक फैसले लिये जा सकेंगे.

जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंकों के प्रतिनिधियों की साओ पाओलो की बैठक में कोई ठोस उपाय तो सामने निकल कर नहीं आ पाए लेकिन विकासशील देशों की तरफ से एक साफ संकेत तो मिल ही गया है कि विकासशील देशों को शामिल करना आवश्यक है.

इससे पहले ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइस इनासियो लूला दा सिल्वा ने कहा था कि सबसे अमीर औद्योगिक देशों का समुह, यानि जी-7 अब अकेले काम करने में सक्षम नहीं रह गया है और वैश्विक संकट के लिए वैश्विक समाधान ढूंढ निकालने होंगे. लुला दे सिलवा ने मांग की कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में विकासोन्मुख देशों का प्रभाव बढ़ाया जाए.

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