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आर्थिक विकास में कमी की आशंका

महेश झा१० जनवरी २००८

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अमेरिकी वित्तीय संकट के कारण अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की विकासदर अनुमान से भारी धीमी हो सकती है.

फ़्लासबेक
फ़्लासबेकतस्वीर: AP

अमेरिका में सब प्राइम संकट से दुनिया भर में होनेवाले परिणाम अब संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक विशेषज्ञों को भी परेशान कर रहे हैं. अमेरिकी भूसम्पत्ति बाज़ार में धन लगानेवाले विश्‍व के कई देशों के बैंकों को भारी घाटा हुआ है उसका असर इस वर्ष विश्‍व अर्थव्यवस्था के विकास पर भी हो सकता है.

धीमी वृद्धि दर

यह संकट विश्‍व अर्थव्यवस्था के विकास की दर को अनुमानित 3.4 प्रतिशत से 1.6 प्रतिशत पर ला सकता है. संयुक्त राष्ट्र के व्यापार विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस वर्ष विकासदर 3.4 प्रतिशत रहेगी, लेकिन नकारात्मक स्थिति में उसके मात्र 1.6 प्रतिशत होने की संभावना है.

संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार 2006 में वृद्धिदर 3.9 और 2007 में 3.7 प्रतिशत थी, लेकिन इस वर्ष अनुमानित 3.4 प्रतिशत में औद्योगिक देशों का हिस्सा मात्र 2.2 प्रतिशत होगा जबकि विकासशील देशों का 6.5 प्रतिशत. भारत जैसे विकास की देहरी पर खड़े देशों में आर्थिक वृद्धि 8 प्रतिशत से अधिक की दर से जारी रहने का अनुमान है.

अमेरिकी उपभोक्ता

पिछले साल का आर्थिक मूड दुहराया नहीं जा सकता, आशंका है संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन अंकटैड को. उसके निदेशक हाइनर फ़्लासबेक का मानना है कि सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह होगा कि अमेरिका के घरेलू उपभोक्ताओं की उतनी मांग नहीं होगी जितनी पिछले सालों में रही है.

और इसका अर्थ उन देशों के लिए,जो अमेरिका पर निर्यात पर निर्भर करते हैं, यह होगा निर्यात घटेगा, निर्यात कंपनियों में रोज़गार घटेगा. जर्मनी जैसे देशों के लिए जिनका निर्यात पिछले सालों में बढ़ा है, इसका परिणाम बढ़े घाटे के रूप में सामने आ सकता है. अंकटैड के निदेशक फ़्लासबेक का कहना है कि इसके लिए सरकारी निवेश कर अर्थव्यवस्था को मंदी में जाने से बचाना होगा, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो घाटा यूँ भी बढ़ेगा.

निर्यात पर असर

तगड़े यूरो और महँगे इंधन के कारण जर्मनी के निर्यात व्यापार में साल के अंत में कमी आने लगी है. सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार नवम्बर में निर्यात में वृद्धिदर सिर्फ़ 3.2 प्रतिशत थी जबकि साल के पहले ग्यारह महीनों में औसत वृद्धिदर 9.3 प्रतिशत थी. इसका असर उत्पादन और रोज़गार पर भी पड़ेगा

पिछले दिनों रुपए के ख़िलाफ़ डॉलर मज़बूत हुआ है, लेकिन अंकटैड का कहना है कि आनेवाले समय में डॉलर की क़ीमत और घटेगी तथा यूरोप सहित निर्यातक देशों की प्रतिस्पर्धी क्षमता भी ख़राब होगी.

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